अंजान सफर की राही
अंजान सफर की राही


जिंदगी को जब से जाना है कुछ बातों को अपनाया है। मैंने देखा है कि कुछ लोग मौत से डरते हैं। आखिर क्यों एक ऐसी घटना से डरना जिसको घटित होना ही है।मैंने मौत को इस तरह से देखा है जो आपके साथ भी साझा करना चाहूँगी.....मंज़िल का पता है मौत लेकिन अंजान सफर की राही हूँ ।
इस एक पंक्ति में सारा सार छुपा हुआ है।
हम जन्म लेते हैं और एक दिन मृत्यु को गले लगा लेते हैं। इस दौरान हमारी जिंदगी के सफर में जो भी घटनाएं घटित होती हैं वो सब अंजान होती हैं। हम कुछ भी नहीं जानते हैं कि हमारे साथ क्या घटित होने वाला है? तो इस प्रकार हम बन गए ना....... अंजान सफर के राही।
हम कुछ भी क
र लें। एड़ी चोटी का जोर लगा लें लेकिन हम अपनी मंज़िल को नहीं बदल सकते हैं।तो हुआ ना........मंज़िल का पता है मौत।
अब इस बीच हमें ये तय करना है कि हम अपने सफर को आसान बनाना चाहते हैं या मुश्किल।
अगर आसान बनाना चाहते हैं तो पाप करना बंद कर दीजिए। आप ईश्वर की पूजा करें या ना करें लेकिन किसी भी प्रकार के गलत कार्य करने से बचें।
एक गाने की पंक्ति याद आ गई लिखते लिखते.......
हँसते हँसते कट जाएँ रास्ते जिंदगी यूँही चलती रहे, खुशी मिले या ग़म बदलेंगे ना हम दुनियां चाहे बदलती रहे।
इसी के साथ हम अपने विचारों को आराम देते हुए अपना लिखाना यही पर समाप्त करते हैं।