कूटनीतिक निर्णय
कूटनीतिक निर्णय
"मिस्टर बोस एक बात समझ नहीं आई कि आप हिटलर में ऐसा क्या देखते है कि भारत की आजादी की जंग के लिए आपने उसकी सहायता मांगी।" इंग्लिश पत्रकार हेल्गा ने नेता जी सुभाष चंद्र बोस के साथ चलते-चलते पूछा।
"यह एक कूटनीतिक निर्णय है, इस समय हमे भारत की आजादी के लिए हर उस देश का साथ चाहिए जो ब्रिटेन के खिलाफ है।" नेता जी ने जवाब दिया।
"क्या आप हिटलर द्वारा यहूदियों पर किये जा रहे अत्याचारों का समर्थन करते है?" हेल्गा ने अगला सवाल किया।
"बिलकुल नहीं।" नेता जी ने संक्षित सा उत्तर दिया।
"हिटलर पुरे यूरोप को हथिया लेना चाहता है; क्या उसकी विस्तारवादी निति को आप आप ब्रिटेन की विस्तारवादी निति से अलग मानते है?" हेल्गा ने पूछा।
"बिलकुल नहीं।" नेता जी ने फिर संक्षित सा उत्तर दिया।
"आप हिटलर की लूट-खसोट की रकम से इंडियन नेशनल आर्मी को सुद्र्ड करेंगे?" हेल्गा ने अगला सवाल किया।
"वर्तमान में मेरा एक मात्र उद्देश्य है भारत को ब्रिटेन की गुलामी से आज़ाद कराना और एक राष्ट्र के तौर पर जर्मनी, जापान या कोई भी देश मेरी आर्थिक व कूटनीतिक सहायता करता है तो मुझे वह सहायता स्वीकार्य होगी।" नेता जी ने जवाब दिया।
"मुझे आपकी बातो में विरोधाभास नजर आ रहा है, एक तरफ तो आप हिटलर की किसी भी नीति से सहमत नजर नहीं आते है दूसरी तरफ आपको उसकी हर मदद स्वीकार्य है।" हेल्गा बोली।
"हेल्गा जब कोई ताकतवर व्यक्ति या राष्ट्र कमजोर जनता पर अपनी ताकत का प्रयोग कर अत्याचार करता है तो यह कहीं भी स्वीकार्य नहीं होना चाहिए, न ब्रिटेन के भारत की जनता पर अत्याचार स्वीकार्य होने चाहिए और न ही हिटलर के यहूदियों पर। लेकिन एक व्यवस्था कायम करने के लिए वर्तमान में मुझे हर उस व्यक्ति का सहयोग चाहिए जो मुझे मेरे देश को आजाद करवाने में मेरी मदद कर सके चाहे वो हिटलर हो या ब्रिटेन का कोई नागरिक।" कहकर नेता जी उस हवाई जहाज की तरफ बढ़ गए जो उन्हें ताइवान ले जाने वाला था।