कूर्म अवतार और समुद्र मंथन -2
कूर्म अवतार और समुद्र मंथन -2
मंदार पर्वत को शिव सागर में रखने के बाद एक समस्या और थी। मंदार पर्वत जैसे बड़े पर्वत को घुमाने के लिए अत्यंत विशाल रस्सी की आवश्यकता थी। तब नारायण महादेव से उनके गले पर लटका वासुकी सांप को इस कार्य के लिए उचित समझते हैं और महादेव से निवेदन करते हैं। तब नागराज वासुकी मंदार पर्वत से लिपटकर छीर सागर में लेट जाते हैं जिससे एक तरफ एक दल उनका मुख पकड़ ले और दूसरा दल उनका पूछ। किंतु समस्या यह थी कि लक्ष्मी के जाने के बाद देवताओं का बल आधा हो गया था और वासुकी की मुख से अत्यंत विशाली सास आ जा रही थ। तब नारायण युक्ति लगाते हुए असुरों को वासुकी का मुख पकड़ने के लिए मना लेते हैं।
फिर असुर और देवता समुद्र मंथन शुरू करते हैं किंतु एक समस्या उत्पन्न हो जाती है कि इतना बड़ा मंदार पर्वत समुद्र में डूबता ह जा रहा था इसके कारण समुद्र मंथन असंभव था। इस समस्या को सुलझाने के लिए भगवान विष्णु ने अपना दूसरा अवतार लिया जो कि एक कछुआ था इस अवतार को 'कुर्म' नाम मिला. भगवान विष्णु कुरमा अवतार धारण कर मंदार पर्वत को अपनी पीठ पर उठा लेते हैं.
समुद्र मंथन शुरू होता है कई वर्षों तक मरने के बाद समुद्र मंथन से सृष्टि का विनाश करने वाला हलाहल विष निकलता है को देखकर सभी देवता और असुर अत्यंत भयभीत हो जाते हैं. महादेव उस हलाहल विष को अपने कंठ में धारण कर 'नीलकंठ' कहलाए जाते हैं.
समुद्र मंथन से दूसरी चीज एक सफेद रंग का उड़ने वाला घोड़ा निकलता है इस घोड़े का नाम उच्चैश्रवा रखा गया.
नियमों के मुताबिक समुद्र मंथन से निकलने वाली अनमोल वस्तुएं देवताओं और असुरों में बराबर - बराबर बांट दी जाएगी. और इस घोड़े को असुर राजबली को सौंपा गया.
के बाद समुद्र मंथन से एक सफेद रंग का हाथी जो कि देवराज इंद्र का वाहन 'एरावत' था. और ऐरावत को इंद्र को सौंप दिया गया.
उसके बाद मंथन से कौस्तुभ मणि निकली जिसको भगवान विष्णु ने धारण किया.
इसके बाद मंथन से कामधेनु गाय निकली यह अत्यंत पवित्र गाय थी और समाज कल्याण का ध्यान रखते हुए इस गाय को ऋषि को सौंप दिया गय. के पास कल प्रश्न निकला जिसे देवताओं ने रखा.
उसके बाद समुद्र मंथन से देवी लक्ष्मी प्रकट हुई जिसके कारण देवताओं का ऐश्वर्य और ताकत वापस आ गई और देवी लक्ष्मी को नारायण को दे दिया गया। क्रमशः