STORYMIRROR

Atherva Mishra

Classics

4  

Atherva Mishra

Classics

कर्म अवतार और समुद्र मंथन

कर्म अवतार और समुद्र मंथन

2 mins
439

कई समय पुर ब्रह्मा जी को मत द्वारा वेद लौट आने के बाद कई समय तक धरती पर शांति बनी रहे।

फिर एक दिन दुर्वासा ऋषि देवराज इंद्र से मिलने के लिए स्वर्ग पधारे. ऋषि दुर्वासा भेंट स्वरूप देवराज इंद्र को देने के लिए एक पुष्पों से बनी माला लाए थे किंतु देवराज इंद्र ने अपने अहंकार में आकर उस महिला को अपने वाहन ऐरावत हाथी को पहना दिया और ऐरावत ने उस माला को अपनी शुरू से निकालकर पैरों से कुचल दिया. यह सब देखकर दुर्वासा ऋषि को अपने अपमान का अनुभव हुआ के कारण वर्ष ऋषि दुर्वासा ने श्राप दिया की समस्त संसार से लक्ष्मी तथा देवों का गौरव खिल जाएगा और क्षीरसागर की गहराइयों में लुप्त हो जाएगा ।


भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी क्षीरसागर में विश्राम कर रहे थे और जैसे ही शराब का असर होने लगा माता लक्ष्मी क्षीरसागर की गहराइयों में खो गई और उनके साथ देवों का आधा बल और सारा ऐश्वर्य भी खो गया।


इस समस्या से परेशान होकर देवराज इंद्र तथा सारे देवता सहायता मांगने के लिए भगवान विष्णु के पास पहुंचे। भगवान विष्णु ने देवताओं को समुद्र मंथन करने का सुझाव दिया। देवराज इंद्र आश्चर्यचकित होकर बोले" हे प्रभु इतने बड़े क्षीरसागर का मंथन वह भी हमारी आदिशक्ति से असंभव सा प्रतीत होता है"।

कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने समस्त देवताओं और असुरों को शीर सागर के तट पर इकट्ठा किया और उन्हें समुद्र मंथन करने को कहा। वहां वहां देवताओं और असुरों के साथ महादेव, विष्णु और ब्रह्मा जी भी थे।

शुरू का नेतृत्व असुर गुरु शुक्राचार्य कर रहे थे तथा देवताओं का नेतृत्व देवराज इंद्र को सौंपा गया। सर गुरु शुक्राचार्य नारायण से घृणा करते थे। शुक्राचार्य भोले"है तुम सबको यहां बुला तो लाइन पर इस विशाल क्षीरसागर का मंथन करोगे कैसे"। नारायण मुस्कुराते हुए बोलते हैं"कि इस विश्व का सबसे बड़ा पर्वत मंदार पर्वतीय कार्य कर सकता है"। शुक्राचार्य व्यंगभरी मुस्कान के साथ बोलते हैं"इतने बड़े और भारी मंदार पर्वत को हम देवताऔर असुर मिलकर भी नहीं उठा पाएंगे"। नारायण चमत्कार करते हुए अपने हाथ से मंदार पर्वत को उठा कर क्षीरसागर पर रख देते है।।


Follow for Part -2



Rate this content
Log in

Similar hindi story from Classics