कुष्ठरोग निवारण बना आनंदवन
कुष्ठरोग निवारण बना आनंदवन
तभी आगे से एक महिला आ रही थी वह भयावह विद्रूप लग रही थी लेकिन उसका शरीर तन देख कर नयन नक्श देख कर ऐसे ऐसे लगता था महिला संभ्रांत घर की है। उस महिला की सब उंगलियों पर बैंडेज लगा हुआ था चेहरे पर बड़े-बड़े दाग धब्बे दिखाई दे रहे थे कोई उस महिला की ओर जादा देर तक नहीं देख सकता था। यह नियति का खेल अजीब लगा, मासूम लड़कियां एकदम से घबरा गई थी,मैंने उनका डर निकालने के लिए उस महीला को अपने पास बुलाया और उसकी पूरी कहानी सुनी। उसका सारांश यह था कि जब संसार दिया, घरबार दिया,बाल बच्चे भी दिए, तो यह असह्य पिडा तथा वेदना भी साथ में ही दी। यह सब नियति का खेल है। किसी को कोई बीमारी किसी को कोई दर्द सभीके ही हिस्से में आता है। मेरे दो बच्चे हैं परिवार है जब तक यह कुष्ठरोग मेरे जीवन में नहीं था तब तक घर के सभी सदस्य मुझसे बहुत प्यार करते थे। लेकिन यह बीमारी होने की वजहसे सब मुझसे नफरत करने लगे हैं। अब यही मेरी दुनिया है यही मेरा संसार है। उसकी कहानी सुनकर सभीकी आंख भर आई।
उस शांत वातावरण में मेरे पीछे प्रशिक्षणार्थी लडाकिया आपस में फुसफुसाकर बातें कर रही थी। मेरी कानों में अजीब सी आवाजे गूंज रही थी। मेरा ध्यान पूरी तरह से उस आवाज की ओर था। मगर मैंने देखा कि हमारी प्रशिक्षण केंद्र की लड़कियां बहुत ही धीरे-धीरे बात कर रही थी।
मैं बता दूं कि हम सभी प्रशिक्षणार्थी लड़कियों को लेकर आनंदवन मैं कुष्ठ रोगियों से मिलने के लिए उनके दैनंदिन कार्यकलाप देखने के लिए आए थे। हमने पूरा दिन आनंदवन में बिताया सूरज ढल रहा था शाम होने को आई तब हम अपनी राह पर निकल पड़े।
बाबा के आश्रम में ऐसे कितने ही लोग थे इसका उपचार मोफत में शुरू रहता था। थोड़ी बहुत सरकार की मदद से तथा दानकर् के सहकार्यसे यह कार्य चलता रहता है।
हमारा तालुका प्लेस भी वरोड़ा से 25 किलोमीटरपरही है हम आनंदवन के लिए हर 6 महीने में टूर आयोजन करते हैं। हर बार नई लड़कियां होती है। वहां जाने के बाद में सबका मन खिन्नता से भर जाता है फिर भी हम यह समाज को सच दिखाने की कोशिश करते हैं। वहां की अनेक वस्तुएं खरीदते हैं। थोड़ा उनके दुख सुख में सहकार्य करते हैं।
यहां दुनिया में सुकून से बहुत कम लोग रहते हैं। यह बात शोध कार्य का हिस्सा बनकर हम सभी के मन में घर कर गई। वहां कई लोग काम कर रहे थे कोई बागीचा साफ कर रहा था कोई पेड़ पौधों की देखरेख कर रहा था। कोई कलापूर्ण कुशलतासे वस्तुएं ,शो पीस बना रहे थे। वहां खेती-बाड़ी अनाज,सब्जियां भी होती थी। सभी लोग अपने अपने कार्य में लगे थे। इलाज के साथ साथ उन्हें काम भी मिलता हैं कोई भी खाली बैठकर नहीं रहता। सभी को सब काम बांटे जाते हैं। वह जो काम कर सकते हैं वही काम दिया जाता है। ऐसे ही अनेक व्यक्ति हमें यहां आश्रम में दिखाई दिए।
यहां कुष्ठ रोगियों के लिए आनंदवन वरोड़ा मे स्थित आश्रमों का बहुत बड़ा नाम है। इस आश्रममें दूर-दूर के कुष्ठ रोगी आकर बसते हैं। इस कुष्ठ रोग से पीड़ित होनेके बाद उन्हें कहीं और जगह नहीं बचती,घर परिवार वालेसगे संबंधी मित्र परिवार सभी मुंह मोड़ लेते हैं। उन्हें घर से बाहर निकाल देते हैं। वहीं दुखी पीड़ित लोग आनंदवन में बसेरा करते हैं। नाईलाज से वह लोग आनंदवन में आ जाते हैं। यहां उनकी सेवा,सुश्रुषा, उपचार बहुत अच्छे ढंग से किया जाता है। यहां आनंदवन आश्रम मुरलीधर बाबा आमटे इन्होंने खड़ा किया है। आज वह महान व्यक्ति इस दुनिया में नहीं है। उनके बेटे डॉक्टर प्रकाश आमटे तथा विकास आमटे अन्य परिवार के सदस्य इस कार्य में जुटे हैं।
मुरलीधर बाबा आमटेंका जन्म महाराष्ट्राके विदर्भमे वर्धा जिल्ह्येमें 26 दिसंबर 1914 को हुआ। वह मराठी ब्राह्मण जमीनदार परिवार था। वरोडा गावसे 8 / 10 किलोमीटर गांव गोरजे की जमीनदारी आमटे घराणे की थी। उनके घर की मालगुजारी होने की वजह से उनका बालपन सुख में बीता उन्हें स्पोर्ट कार चलाने का बहुत शौक रहा। समाचार पत्रों में से सिनेमा समालोच लिखने का भी बहुत शौक रहा। उनकी महाविद्यालय से पढ़ाई हुई।
उन्होंने नागपूर विद्यापीठसे 1934 मे बी.ए. तथा 1936
एल्. एल.बी. की डिग्री हासिल की, वह खुद स्वतः डॉक्टर बनाना चाहते थे किंतु पिताजी के इच्छाके खातिर वकील बन गए। कुछ वर्ष उन्होंने वकीली भी की,1949 से 50 तक कुष्ठरोगनिदान प्रशिक्षण लिया।
1942 में बाबा रेल से वरोड़ा जा रहे थे उस रेल के डिब्बे में कुछ इंग्रज युवा सिपाही एक नव विवाहिताको सता रहे थे छेड़ रहे थे। उस नवविवाहिता का पति डरकर टॉयलेट में छुप कर बैठा था। तब बाबा आमटेने जमकर विरोध किया जीवन में पहली बार बाबा ने हाथापाई भी की। बाबा को भी सिपाही के हाथ की मार खानी पड़ी। जब वर्धामें ट्रेन रुकी तब बाबा ने हंगामा खड़ा किया था। तब बहुत लोग जमा हो गए थे। जब सिपाहियों के कमांडिंग ऑफिसर आए तभी उन्होंने राहत देने की बात कही तभी लोग शांत हुए। उस जमाने में गांधीजीने भी बाबा आमटे की बहुत तारीफ की न्याय के लिए लड़ने वाला निर्भय योद्धा का नाम दिया गया था। बाबाने अपना सारा जीवन कुष्ठरोगीयोके सेवा शुश्रूषाके लिए अर्पण कर दिया। उन्होंने चंद्रपूर, महाराष्ट्र मेंं आनंदवन आश्रम का निर्माण शुरू किया। वह महाराष्ट्र में ही नहीं पूरे देश में संत के नाम से पहचाने जाते थे।
आनंदवन आश्रम में सभी अवयवहिन ही दिखाई देते हैं। किसी की उंगलियां नहीं तो किसी के पांव की उंगलियां नहीं, किसी की आंखें नहीं तो किसी के कान नाक नहीं। पूरे शरीर पर कहीं ना कहीं जख्मों के निशान सदा रिसनेवाले जख्म ही जख्म, दर्द भरी आssहे आत्मा में सिसकियां जिधर उधर सफेद बैंडेज पट्टियां दिखाई देती है। उन्हें सुधरने में सालो लग जाते हैं। अंधश्रद्धा के चलते कुष्ठरोगियों की अवहेलना दिल दहलाने वाली सच्चाई है।