Meenakshi Kilawat

Tragedy

5.0  

Meenakshi Kilawat

Tragedy

स्त्री के लिए अलग नियम क्यों

स्त्री के लिए अलग नियम क्यों

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इसी जमाने की बात है कोई 20 /25 वर्ष पुरानी यादें मेरे सखी ने मुझसे शेयर की ,मेरी सखी ने अपनी कहानी मुझे बताई।यह कहानी सुनकर मुझे बहुत दुख हुआ। क्या यह वही देश है जहां नारियों को पूज्यनीय तथा देवी मानते थे,लेकिन आज की परिस्थिति देखते हुए लगता नहीं कि हमें कभी संस्कारो ने पाला था। 

स्त्री पुरुष के बीच का भेदभाव तो ठीक है लेकिन जहां तक हम देख सकते हैं वहां तक देख रहे हैं कि महिला जाति को समाज में भेड़ बकरियों की तरह ट्रीट किया जा रहा है।


यहां समाज में ऐसे संस्कार है कि वह शब्द ब्रह्म लिखित हो जाते हैं,यह धर्म तथा समाज एकजुट होकर स्त्री के लिए कुछ अलग नियम बनाए गए उन नियमों से साफ जाहिर होता है कि स्त्री का कोई खास पहलू नहींं है तथा अपना हित साधने के लिए स्त्री का समाज ने फायदा ही लिया है।और बीसवी सदी में भी स्त्रियों के प्रती अपनी घिनौनी सोच को छोड़ने के लिए तैयार ही नहींं है।


 हम अपने आपको सभ्य समाज के निवासी समझते हैं लेकिन यहां की संस्कृति सभ्यता को उतना नहींं जान पाए अन्यथा ऐसी गलत धारणाएं स्त्रीके विषय में नहींं होती।इसी जमाने के दौर में कई स्त्रियों को अनगिनत दुख भोगना पड़ रहा है।कहीं ऐसा स्त्रियों को लाचारी का जीवन जीने के लिए मजबूर कर रहा है।


घरेलू स्त्रियां हो या कामकाजी महिला हो सभी को समाज ने अपने परंपरा के आधीन होने की सीख दे रखी है।अगर किसी महिला ने अगर सीमा का उल्लंघन किया तो उसे समाज प्रताड़ित करता है।यहां असंख्य नियम स्त्रियों पर ही क्यों लागू होते हैं।पुरुष पर जरा भी इस तरह की बंदिशे नहींं होती।

 

 एक महिला एक बार नहींं अनेकों बार मरती है।मर मर कर वह जीती है त्याग, तपस्या ,ममता, करुणा ,स्त्रियों के गहने होने के बावजूद भी उन्हे सम्मान नहींं मिलता।वह बच्चे पैदा करने वाली एक मशीन की तरह उसे ट्रीट किया जाता है।देखा जाए तो सही अर्थों में यह बहुत बड़ी नासमझी है।मानव को मानव की तरह रहकर दूसरे मानव तथा पशु-पक्षी को प्रेम से व्यवहार करना चाहिए।आज के दौर में ऐसा होता नहींं है।


इसका कारण बहु संख्यांक बालकों की पैदावार होती है ।इस महा जनसंख्या को देखते हुए हम क्या कह सकते हैं " समाज में भरण पोषण का भी बहुत बड़ा प्रश्न है। लेकिन दाने-दाने पर लिखा होता है खाने वाले का नाम" इस धारणा के साथ दिन गुजरता है।


इन सब बातों के विरुद्ध इक माया ममता भरी दुनिया में अक्सर एक बालक की कमी होती है लेकिन वहां पर बालक पैदा नहींं होते।ना होने का कारण भी एक स्त्री को ही ठहराया जाता है जैसे उस स्त्रीने बहुत बड़ा गुनाह किया हो यह बात एक स्त्रीपर कलंक के समान होती है।उसे यह समाज बांझ,नीपुत्रीक कहकर दुख की ज्वाला में झोंक देते हैं,और समाज में लोगबाग उससे दूर भागते हैं।जैसे उस स्त्री ने कोई बड़ा महापाप किया हो यह हमारे भारतीय संस्कृति की देन है।


   मेरी नजदीकी फ्रेंड जाई को बहुत तकलीफ उठानी पड़ी, उसने अपनी कहानी मुझे सुनाई जब वह 16 वर्ष की थी तभी उसकी शादी 15 साल बडे व्यक्ति के साथ में कर दी गई। जाई के पती देखने में कोई खास नहींं थे। दोनों का मेल हंस और कौवे की तरह था। और जाई गोरी सुंदर खूबसूरत दिखती थी, लेकिन 16वर्ष की आयु में जाई का पसंद ना पसंद का प्रश्न ही नहींं उठता था। जैसा कहा जाए लड़कियां वैसा ही करती जाती है चाहे जबरदस्ती से प्रेम से जैसा कहते थे वैसा ही वह करती रहती है। उस मासूम लड़की को यह भी पता नहीं था कि नियती उसके साथ क्या खेल खेलने वाली है।


  जाई के पिताजी मना कर रहे थे ।यह बेजोड़ जोड़ा उन्हें पसंद नहींं था।लेकिन जाई के बड़े भाई ने बहुत प्रेशर देकर सबको यह शादी करने के लिए मजबूर किया।शायद उसका कोई इस बात से गहरा फायदा था।जाई के ससुराल वाले बहुत धनवान थे उसके घर में बहुत सी प्रॉपर्टी थी। वहां हमारी बहन खुश रह सकेगी यह कहकर अनम ने भाव से शादी की तैयारी की और शादी हो गई। यह 16 वर्षीय जाई कहां से कहां पहुंच गई , एम.पी.की उप राजधानी भोपाल से महाराष्ट्र के विदर्भ मे ब्याह कर लाई गई । जहां किस्मत हो वहां पर इंसान पहुंच ही जाता है यह नियति का खेल बड़ा निराला होता है।घर परिवार बड़ा होने से काम भी बहुत ज्यादा होते थे दिन भर कामों में व्यस्त रहती थी लेकिन रात होते-होते पति का प्यार मिल जाता तो जाई के सब गम वह भूलाकर पति को गले लगा लेती थी।यूं ही दिन बीतते चले गए।


 छोटी उम्र के तकाजे ने एक दूसरे के दिल मिला दिए।दोनों को एक दूसरे का साथ मिला वह एक दूसरे को बेहद पसंद करने लगे, प्रेम के झरने में बहने लगे दोनों ही एक दूसरे को प्रगाढ़ता से प्रेम करने लगे थे। देखते देखते शादीको पांच वर्ष हो गए।वक्त निकलते देर नहीं लगती जब कुछ जवानी का खुमार कम हो चुका तब उन्हें एहसास हुआ कि हमें अबतक नन्ना मुन्ना बालक हो जाना चाहिए था।

घर के बड़ों ने बाल बच्चों के बारे में कई बार उन्हें छेड़ने की कोशिश की,लेकिन वह अपनी दिन दुनिया में मस्त रहे।जमीदार होने की वजह सेउन्हें अपने प्रॉपर्टी का हकदार चाहिए था।तब अस्पताल मे दिखाया गया। जाई के पति में ही कमी थी ।मुंबईके डॉक्टरों ने ऑपरेशन बताया था।डॉक्टरोंकी गलती से ऑपरेशन अनसक्सेस हुआ जाई के पति का पुरुषत्व नष्ट हो गया।जीस अंग के भरोसे प्यार पनप रहा था।वहां अंगही निष्क्रिय हो गया ।दोनों के दिल में एक दूसरे के प्रति नफरत पैदा हो गई।


जाई के दिल पर दुखभरा पहाड़ टूट पड़ा।ऐसे ही अनेकों वर्ष निकल गए।जाई रात दिन रोने लगी जब जाई के घर वालों को पता चला तो भाइयों ने अपनी बहन पर प्रेशर बनाया।कहने लगे छोड़ दो हम तुम्हारी दूसरी शादी करेंगे।लेकिन जाई के संस्कारआड़े आ गए।वह करुणा की मूर्ति उसे पति की दया आने लगी।क्योंकि वह जानती थी अगर मैंने उसे छोड़ दिया तो वह आत्महत्या कर लेगा।और दोनो ने एक दूसरेसे कभी सच्चा प्यार किया था। इसी कश्मकश में दिन गुजरते गए। इस बीच अगर किसी ने छोड़ने की बात कही तो जाई को सहन नहींं होता वह तडफडा़ती चिड़िया की तरह पिंजरे में हाथ पांव मार रही थी। 

 ऐसे कितने दिन बीत चुके शादी को 15 वर्ष हो गए फिर उसने टेस्टट्यूब बेबी का नाम सुना था।वहा भी कई दिनोतक ईलाज चलता रहा वहाभी लेकिन किस्मत के मारो को सक्सेस नहीं मिला।सभी तरफ से जीवन मे निराशा बादल बनकर छा गए। एकांत में रोना सिसकना चलता और लोगों के सामने हंसना हंसाना चलता रहा।


जाई यह पहले की जाई नहींं रही अब तक वहां कठोर हो चुकी थी,जाई ने फैसला किया कि वह बच्चा गोद लेगी। घर के लोगोंने उसका विरोध किया।संस्कृति से बंधे हुए लोग थे उन्हें बाहर का खून नहींं चाहिए था।जाई ने डटकर सबका मुकाबला किया सब का विरोध होने पर भी जाईने अनाथालय से बच्चा गोद लिया।उस बच्चे को अच्छे संस्कार दिए तथा अच्छा इंसान बनाया सिखाया पढ़ाया एवं उसका पूरा भविष्य संवारा।वह बच्चा आज 27/ 28 वर्ष हट्टा कट्टा जवान हो गया है। 2 वर्ष पहले उसकी शादी भी हो गई है अब जाई को नातीपोती होने वाली है। आज जाई की उम्र 65/ 66 है। जाई ने जमानेके अनगिनत घाव सहे हैं। जिंदगी में कई विषेले पड़ाव देखे हैं।


 देखा जाए तो जाई को कोई बात की कमी नहींं थी।सब सभी सुख सुविधाएं उसके दरवाजे में तैनात थी।लेकिन उसका दुख दर्द कौन देख सकता है।वह सारी जिंदगी कुमारी बनकर जीती रही शायद नियति को यही मंजूर था।आज स्त्री होकर जाई ने एक बच्चे की जिंदगी को संवार दिया।लेकिन उसके लिए भी उसे बहुत जद्दोजहद करनी पड़ी कागजों की खानापूर्ति करनी पड़ी। दुनिया में सरल पद्धति से कुछ भी नहींं मिलता हालांकि जहां बालक होने चाहिए वहां नहींं होते और जहां जरूरत नहींं होती वहां पैदा हो जाते हैं जीन्हे ना ठीक से खाना मिलता है ना ठीक से कपड़ा मिलता है ना ठीक से परवरिश होती है वहां कई बच्चे पैदा हो जाते हैं।


 यहां बड़ी हास्यास्पद बात है कि मजाक से भी अगर उन्हे बच्चा मांग लिया तो वह माता-पिता फट पड़ते हैं।हालांकि उनकी परिस्थिति गरीबी जैसी होती है।लेकिन यह नासमझ अशिक्षित माता पिता माया में फंसकर बच्चों का जीवन तबाह करते हैं।जब वह बच्चे बड़े होते हैं तब मां बाप से पूछते हैं"क्यों किया गया हमें पैदा" माता पिता के पास उस सवाल का कोई जवाब नहींं होता।






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