Meenakshi Kilawat

Others

5.0  

Meenakshi Kilawat

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निसर्ग को ताजा रखे

निसर्ग को ताजा रखे

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निसर्ग को ताजा रखने के लिए हमे सतर्क रहकर कार्य करना होगा, साफ सफाई पर ध्यान देकर प्लास्टिक पन्नियों का उपयोग बंद करना होगा। तभी हम सबको यह निसर्ग आनंद की अनुभूति देता है। यह प्रकृति की सुंदर देन हमारे दिल को प्रसन्न करती है। यह निसर्ग की किमया हमें अचंभित एवं लुभाती है।यह ऋतुचक्र कालभ्रमण निरंतर घूमता रहता है। यह प्रकृति की गोद में खिलखिलाकर हमें ख़ुशियाँ देता है। और हमें आश्चर्य चकित कर देती है। वह अपने समय पर नित्य हर साल आती है। निसर्ग की लीलाएं अपरंपार है। मनुष्य हो या पशु पक्षी बसंत ऋतु की खूब याद करते हैं। एवं स्तुति करते थकते नहीं है।यह धरती पर रंग बिरंगी आभा निर्माणकार्य होता है। सबसे ज्यादा ऋतुराज बसंत की यहां ऋषि मुनि,संत साहित्यिकार, कवि, लेखक तारीफ करते थकते नहीं है ।बेमिसाल मन को लुभाने वाले अनेक रंग धरती पर छाये होते हैं, ऐसा लगता है की आकाश सूर्य चंद्र तारे जमी पर उतर कर आए हैं। यहां बसंत ऋतु सबको ख़ुशियाँ देता है, हर जीव जंतु यहां हर एक बसंत में ख़ुशियाँ एवं शांति महसूस करते हैं। और अपना जीवन तृप्त करते हैं।

यह ऋतु चक्रों की अनंत उपकार हम पृथ्वी वासी पर है, सभी ऋतु अपना कार्य एकदम व्यवस्थित करते हैं। यह धरती पर उमंग लाती है, इधर उधर नजारा बेहद खुश रंग होता है, नदिया ,झरने भी झरझर बहकर खुशियों से कल कल कर बहते हैं,इस निसर्ग में मानवी जीवन प्रफुल्लित उल्लासमय होता है। सभी के मन को लुभाता है, इनका जितना भी बखान किया जाए उतना ही कम है। सभी तरफ हरियाली अपनी खूबसूरती बिखेरती है ,तालाब समुंदर चाँद की तरह दिखाई देते हैं।

कोकिल पंछी सुंदर सुरीली आवाज़ में गीत गाते हैं, अंबिया पे बहार छाई होती है। तरह-तरह के पंछी इस डाल से उस डाल पर फूदकते नाचते हैं, मोर मोरनी जंगल में रास लीला रचाते हैं, अपने प्रीतम को रिझाने के लिए तरह-तरह से पंख फैलाकर सुंदर नृत्य करते हैं। जिधर देखो खुश नुमा संमा जवांजवां खीलाखीला होता है। इस मौसम में वयस्क हो या बच्चे हो या युवा सबके मन खिलते हैं। सबके चेहरे पर तेज आता है, यह सृष्टि जैसे अपने छोटे बालकों को नया जन्म देकर उसे सक्षम एवं पोषक तत्व से भरपूर पोषण देती है। हर पेड़ की डालियां हरी-भरी नन्ही-नन्ही कोपले हर रोज उगती है।

ठंडी शीतल हवा के कोमल झोंके मंदमंद मुस्कुराते हैं। एवं लुका छिपी खेलते हैं। तभी वह हमें हर्ष भरे स्पर्श का रोमांच मन में गुदगुदी पैदा करता है।

 त्यौहार की चहल-पहल होती है, नया साल बसंत की बहार लाती है। वह खुशबू भरा मंजर का अंग अंग में स्फूर्ती पैदा करती है। फूलों की खुशबू भाव विभोर कर देती है। हर त्यौहार घर बाहर बड़े खुशी से मनाते हैं। होली का त्यौहार बड़ी धूमधाम से मनाते हैं, रंगपंचमी को कई रंगों से सराबोर होते हैं।केसरी पलाश फूलों का रंग हमलोग घर पर ही बनाकर उस सुगंधित रंगों से होली खेलते थे। वह आयुर्वेदिक,औषधि युक्त रंगों से खेलने की मज़ा कुछ और होती थी।

वह निखालस सदोष रंग होता है। इधर उधर नवयौवन खिलता है। आकाश में बादल उमड़ते घुमडते हैं। कोई चित्रकार है जो इस सृष्टि को चित्रित कर सुंदर रचना से बसंत ऋतु का स्वागत करते हैं,ह मको अभीभूत करता है।

इस मौसम में कडूनिंब,आम्रवृक्ष मंदार, अशोका, ख्रिसमस, ताडवृक्ष, गुलमोहोर कटहल,काजू, देवदार इत्यादी वृक्ष मानव कल्याण के लिए बने है। वह हमारा कवच बने है। और जमीन पर,टरबूज, कलिंगड,खरबूज

खीरा, पाणीदार रसीले फल और कई प्रकार की लताएं जमीं पर होती है। यह बसंत के नवरंग हमें सिखाते हैं, एवं रंगों की जीवन शैली में जीने का हौसला देते हैं। यह सृष्टि का विस्तार रूप हमें जीने की प्रेरणा देता है। हमें निसर्ग का अभिवादन करना चाहिए।



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