कुंभ का मेला और वह चार दिन
कुंभ का मेला और वह चार दिन
कुंभ का मेला 12 साल में एक बार होता है ।बहुत पुरानी बात है तब मैं का बहुत छोटी थी । मेरे पिताजी अपनी कमेटी को लेकर भारत भ्रमण पर निकले थे। ऑल इंडिया टूर उनका थोड़े थोड़े दिनों में रहता ही था । उस समय कुंभ का मेला चल रहा था तो उन लोगों ने सोचा चलो कुंभ के मेले के भी दर्शन कर लिया जाए। मेला भी देख लिया जाए । उस जमाने के अंदर फोन में भी बहुत मुश्किल से बात हो पाती थी । एक से दूसरे के घर किसी किसी के यहां से फोन आया कि पिताजी कुंभ का मेला देखने गए । मन में सब खुश थे कि चलो गए हैं तो कुंभ का मेला भी देख कर आएंगे। जिस दिन कुंभ का मेला चालू हुआ उसी दिन वहां पुल टूट गया और काफी लोग हताहत हुए। कुछ लोग शायद खो भी गए। एक्जेक्टली क्या हुआ मुझे पता नहीं पर बहुत बड़ी होनारत हुई थी। रात को सब 9:00 बजे वाले आकाशवाणी समाचार सुन रहे थे कि अचानक से बीच में ही समाचार रोक कर समाचार दिया गया कि कुंभ के मेले के अंदर पुल टूट गया है, और काफी लोग उसमें हताहत हुए हैं,पूर्ण जानकारी नहीं है हमारे घर में तो एकदम मातम छा गया , रोने का सब बहुत परेशान क्योंकि पिताजी भी वहां पर गए हुए थे। सबको लगा उनमें भी उनको भी कुछ हो गया होगा जब तक वह नहीं आए। संपर्क हो नहीं पाया 4 दिन इतने मुश्किल से निकले। चौथे दिन सुबह सुबह जब पिता जी घर आए तब सबकी जान में जान आई।
तब हमने उनको बोला पुल टूट गया था आप कहां रह गए ऐसा हुआ था। तब उन्होंने बताया कि वे दुर्घटना से थोड़ी देर पहले ही दूसरी तरफ निकल गए
इसीलिए बच गये। औरबहुत अफरा-तफरी थी कोई भी तरह से समाचार नहीं मिल पा रहे थे और नहीं दे पा रहे थे। इसीलिए 4 दिन बहुत परेशानी में निकालने पड़े। खैर जान बची तो लाखों पाए हम सब ने भगवान को धन्यवाद दिया कि पिताजी लौट आए । नहीं तो हम तो इतने दुखी हो गए थे। समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें। और मेला के नाम से कुंभ का मेला जब पिताजी नहीं मिले हमेशा याद आता है । और वे परेशानी भरे 4 दिन का मंजर आंखों के सामने घूम जाता है।
