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Diwa Shanker Saraswat

Drama Tragedy Inspirational

4  

Diwa Shanker Saraswat

Drama Tragedy Inspirational

कुमाता भाग ३

कुमाता भाग ३

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एक कन्या की दुविधा 

 आठों बच्चों में कैकेयी सबसे छोटी थी। अभी बचपन की आरंभिक अवस्था में ही थी।माॅ की बहुत लाड़ली थी। वह आयु जिसमें किसी बच्चे के लिये उसकी माॅ ही उसका गुरु होती है, कैकेयी मातृरहित हो गयी। माॅ के जीवित रहते हुए भी वह अपनी माॅ को खो बैठी। 

न जाने कितनी रातों को उसे माॅ की याद में नींद नहीं आयी। कितनी बार उसने अपने आंसुओं से बिस्तर को गीला कर दिया। दुर्भाग्य की बात यह थी कि इतने बड़े राज्य के राजा अपनी पुत्री का दुख दूर करने में असमर्थ थे। 

लोगों को अपना हित चाहने के लिये बहाना चाहिये। वैसा ही यहाॅ घटित हुआ। महाराज के विवाह के लिये रिश्ते आने लगे। आधार भी यह कि एक छोटी बेटी के लिये माॅ की आवश्यकता है। पर एक बार क्रोध में गलती कर चुके महाराज अश्वपति फिर चैतन्य रहे। 

 फिर भी छोटी बच्ची के संरक्षण के लिये किसी की तो आवश्यकता थी। माॅ न होने पर भी कैकेयी को माॅ का प्रेम दिया एक दासी ने। दासी जो खुद अपना जीवन जीने को स्वतंत्र नहीं थीं, जो खुद एक दुखद कहानी की नायिका होती थीं। जिनका खुद का पूरा जीवन किसी की सेवा में गुजर जाता था। 

मंथरा ने कभी भी अपने कर्तव्यों से मुंह नहीं मोड़ा। कैकेयी की संरक्षिका एक दासी उसकी आरंभिक गुरु भी थी। 

" कमजोर का कहीं ठिकाना नहीं। कमजोर को सभी दुत्कार देते हैं। कमजोर के प्रेम का भला क्या मोल। नहीं बेटी। अब कमजोर न बनना। मजबूत बनो। ऐसा मजबूत कि किसी का साहस भी अनादर करने का न हो।" 

कैकेयी मजबूत बनने की राह में थी। गुड्डे गुड़ियों के विवाह का खेल खेलने बाली कन्या कटार का अभ्यास करने लगी। लड़कियों के खेलों के बजाय लड़कों के खेल खेलती। लड़के मजबूत होते हैं और लड़कियां कमजोर। कैकेयी लड़की होकर लड़का बन रही थी। तैयार कर रही थी खुद को उस भविष्य के लिये, जबकि एक अबला को सबला मानना होगा। 

 फिर भी लाख कोशिशों के बाद स्त्रियोचित कोमलता को कैकेयी का मन छोड़ नहीं पा रहा था। जब अश्व की पीठ पर बैठ तलवार का अभ्यास करती तब उसकी गुड़िया उसे आवाज लगाती दिखती। मानो कह रही हो कि मजबूत बनने की राह में तुम इतनी कठोर कैसे हो गयी। कभी मुझे गोदी में लेकर ही सोती थीं। अब ऐसी निष्ठुरता। 

संगीत की धुन पर उसके पैर खुद व खुद थिरकने लगते। मानों संगीत उसे आवाज देकर बुला रहा हो। कह रहा हो कि अरे नादान कन्या। यह संगीत ही तो स्त्रियों को मजबूत बनाता है। ऐसा कौन पुरुष है जो संगीत पारंगत स्त्रियों की अदाओं के समक्ष जीत पाया हो। 

किसी चित्र को देखकर कैकेयी के भीतर बैठी एक कन्या खुद को रोक न पाती। तूलिका में रंग भर कुछ न कुछ रंगने लगती। 

यह एक कन्या के मन की दुविधा ही थी कि कैकेयी सामर्थ्यवान बनने के साथ साथ स्त्रियोचित व्यवहार को छोड़ नहीं पा रही थी। कभी लड़कों के समान मजबूत बनने का संकल्प हावी होता तो कभी एक स्त्री का लालित्य। 

यह दुविधा तैयार कर रही थी एक ऐसी नारी को जो नृत्य, संगीत, चित्रकला जैसे लालित्य में तो माहिर हो ही पर जो अन्याय को देख पुरुषों को अपने तर्कों से शांत कर सकती हो, जो दुष्ट को दंड देने में सक्षम हो, जो युद्धभूमि में शूरवीरों को भी अपनी वीरता से निशव्द कर सके और जो किसी अबला स्त्री के साथ उसका बल बनकर खड़ी हो सके। 

यह दुविधा तैयार कर रही थी एक ऐसी वीरांगना को जो रणभूमि में अपने पति के प्राणों की रक्षा करने में भी समर्थ हो। 

यह दुविधा तैयार कर रही थी एक ऐसी रहस्यमई नारी को जो दूसरों के लिये अपना सर्वस्व अर्पण कर सके पर अपने अधिकार को कभी भी अपने हाथ से न निकलने दे। 

यह दुविधा तैयार कर रही थी एक ऐसी माॅ को जो अपनी सौत के पुत्र को अपना पुत्र मान सके तथा अपने उस पुत्र को पूर्ण सामर्थ्यवान बनाने के लिये इतनी कठोर बन सके कि संसार उसे कुमाता कह दे। संसार के लांछनों को सुनकर भी वह कहीं छिपे नहीं। जो समाज की आंखों में आंख डालकर अपना निश्चय सुना सके। अपने निर्णय से पीछे न हटे। 

यह दुविधा तैयार कर रही थी एक ऐसी माॅ को जिसे खुद सृष्टि निर्माता अपनी माॅ कहकर बुलाएंगे। उसकी आज्ञा मानकर तुरंत वन को निकल जायेंगे। पृथ्वी पर खुद भगवान खुद को भगवान सिद्ध करेंगें। 

यह दुविधा तैयार कर रही थी एक ऐसी नारी को जिसके आदेश का पालन खुद जगती निर्माता का धर्म बनेगा। जिनके आदेश का प्रतिकार खुद भगवान की जन्म दात्री माॅ नहीं कर सकतीं। कह देंगीं कि यदि पिता का आदेश है तो माॅ को पिता से बड़ा मान वन न जाओ। पर यदि कैकेयी माॅ का भी आदेश है फिर मैं तुम्हें कैसे रोक सकती हूं। 

 इन सबसे अतिरिक्त यह दुविधा तैयार कर रही थी एक ऐसी पति परायणा नारी को जो अपने पति की भूल को भी खुद स्वीकार कर सकती हो। जो समाज से उस भयानक सत्य को छिपा सकती हो जिससे उसके पति के सम्मान पर कुछ आंच आये। जीवन भर अपयश को खुद धारण कर अनेकों को यश प्रदान करने बाली हो। 

क्रमशः


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