कुछ खास रिश्ते
कुछ खास रिश्ते
आदित्य:- दादी.... कहाँ हो आप..?
कौशल्या :- अरे.. क्या हुआ क्यूँ चिल्ला रहा हैं आदि।
आदित्य:- दादी... जल्दी बाहर आओ।
कौशल्या घर से बाहर आतें हुए... क्या हुआ... क्यूँ आसमान सर पर उठा रहा हैं।
आदित्य दादी के बाहर आतें ही झट से उनकी तरफ भागा और उनकों गले से लगा कर बोला :- दादी वो देखो सामने।
कौशल्या अपनी आंखों को मसलते हुए.. क्या देखूँ.. मुझे तो सब ढुंढला सा दिख रहा हैं।
आदित्य :- अरे दादी आप फिर चश्मा लगाना भूल गई... आप यहीं रुको मैं लेकर आता हूँ।
आदित्य झट से भीतर गया और चश्मा लाकर कौशल्या को दिया और कहा:- लो दादी.. ये पहनो फिर देखो।
कौशल्या ने चश्मा लगाकर देखा और खुशी से चिल्लाती हुई बोलीं:- आदी.... ये कार... कितनी अच्छी हैं.... किसकी लाया हैं आदी।
कौशल्या अपनी झूकी हुई कमर पर हाथ रखकर छोटे बच्चे की तरह उत्साहित होकर उस लाल रंग की चटकदार कार की ओर चल दी.. ओर उसकी एक एक चीज को हाथ लगाकर लगाकर बड़े ही प्यार से देख रहीं थीं.।
आदित्य उनके पास गया और बोला:- कैसी लगी दादी।
कौशल्या तो जैसे फूली नहीं समा रहीं थीं... :- बहुत प्यारी हैं आदी.... लेकिन ये हैं किसकी..?
आदित्य :- आपकी ही हैं दादी... अभी सिर्फ बाहर से ही देखोगी या अंदर भी बेठोगी।
कौशल्या :- मेरी... मेरी हैं....?
आदित्य :- हां दादी... आपकी हैं..। चलो अब हम दोनों लोंग ड्राइव पर चलते हैं... बोलो दादी सबसे पहले कहाँ चलना हैं..?
कौशल्या :- तु सच कह रहा हैं आदी... हम सच में इसमें बैठकर चलेंगे ....!
आदित्य :- हां दादी सच में.... और आज पूरा दिन हम बस इसी में बैठकर घुमेंगे... मुम्बई की सड़कों पर.. । बस आप बताओ शुरुआत कहाँ से करे..?
कौशल्या :- सबसे पहले हम बप्पा के दर्शन करने चले..?
आदित्य :- जो हुकुम मेरे आका।
आदित्य ने अपनी दादी को ड्राइविंग सीट के पास वाली सीट पर बिठाया... उनका सीट बैल्ट बांधा... और फिर खुद ड्राइविंग सीट पर बैठ कर कार ड्राइव करने लगा।
सबसे पहले वो सिद्धीविनायक मंदिर गए... वहाँ दर्शन करके... एक रेस्टोरेंट में खाना खाया.... सूरज ढलने पर जूहू चौपाटी गए... वहाँ पानी पूरी.... गुडी के बाल.... चना जोर गरम खाया...। लहरों के साथ मस्ती करते करते.... बातें करते करते... कब शाम ढल गई पता ही नहीं चला...। कौशल्या देवी आज अपने बचपने को फिर से जी रहीं थीं..। अस्सी साल की उम्र में भी वो आदित्य के साथ ऐसे खेल रहीं थीं जैसे कोई छोटा बच्चा खेलता हैं...। आदित्य ने अपनी दादी की हर छोटी सी छोटी ख्वाहिश उस दिन पूरी की..। पूरा दिन दोनों मुम्बई की सड़कों पर घुमते रहें...। रात को नाइट क्लब में जाकर डांस फ्लोर पर कौशल्या आदित्य के साथ मस्ती से झूम रही थीं.... उसके चेहरे पर थोड़ी सी भी थकान का अंश भी नहीं था...। आखिर कार रात करीब दो बजे दोनों घर पर आए.।
घर आकर कौशल्या ने आदित्य को गले से लगा लिया और कहा:- आदी ये सब तूने मुझे खुश करने के लिए किया ना...!
आदित्य :- नहीं दादी.... ये सब मैने अपने लिए किया... मैं आपके साथ कुछ पल यादगार बनाना चाहता था...। दादी.... आप सालों से वृद्धाआश्रम में रहीं हैं.. उससे पहले मम्मी पापा के अत्याचार सहे हैं...। आपने कभी खुद का नहीं सोचा... अपनी हर छोटी से छोटी ख्वाहिश मारी हैं... मैंने देखा हैं आपको दादी... छोटी छोटी चीजों के लिए तरसते हुए...। आपको कार में घुमने की सालों से चाहत थीं ना... मुम्बई जैसे शहर में रहकर भी आप कभी अपने घर से बाहर भी नहीं निकले थे....मैने देखा हैं आपको दादी..मैं तो बस हर रोज ऊपरवाले से येही दुआ मांगता था की जल्द से जल्द मुझे इतना काबिल बना दे की मैं आपकी हर ख्वाहिश पूरी कर सकूँ..। आज मैं आपको ऐसे देखकर बहुत खुश हूँ दादी.।
कौशल्या :- आदी.... मेरा बच्चा.... । तुने तो आज मुझे भी बच्चा बना दिया...। ना जाने कितनी मुद्दतों के बाद आज मैं इतनी खुश हुई हूं.।
कौशल्या ने आदित्य को अपने गले से लगा लिया...।
कुछ देर बाद आदित्य ने उनको अपने कमरे में सुला दिया और खुद अपने कमरे में आ गया...। लेकिन आदित्य की आंखों से नींद आज कौसो दूर थीं.।
आदित्य के कानों में आवाज गूंज रहीं थी.... जो वो दादी के पास आने से पहले सुनकर आया था।
(देखिए मिस्टर आदित्य आपकी दादी के पास समय बहुत कम हैं... उनको ब्रेन हैमरेज हो गया हैं... उनकों कभी भी दौरा पड़ सकता हैं... और शायद इस बार अंतिम हो.... क्योंकि उनकी उम्र और शरीर अब ये सब बरदास्त नहीं कर पाएगी.... जितना हो सकें उन्हें खुश रखने की कोशिश किजिए... उनके साथ वक्त बिताइये....ये कुछ पल उन्हें सिर्फ प्यार दीजिये...।)
आदित्य बहुत छोटा था तब से उसकी माँ हर बात पर दादी की शिकायत आदित्य के पिता से करती रहतीं थीं... आखिर कार रोज़ रोज़ के झगड़ों से थककर आदित्य के पिता ने अपनी माँ को वृद्धाश्रम भेज दिया...। आदित्य बचपन से ही अपने पेरेंट्स से छिपकर और झूठ बोलकर उनसे कभी कभी मिलने वहाँ चला जाता था..। लेकिन कुछ समय बाद जब आदित्य को पेरेंट्स को पता चला तो उन्होंने शहर बदल दिया और आदित्य को देश से बाहर भेज दिया पढ़ने के लिए...। आदित्य जब सालों बाद अपने देश वापस आया तो वो सबसे पहले उसी आश्रम में गया और अपनी दादी को वहाँ से अपने साथ एक छोटे से घर में लेकर आया... वो अपने पेरेंट्स से मिलकर... अपनी कमाई हुई सारी पूंजी उनकों देकर अपनी दादी के साथ रहने लगा...। कुछ महीने ही बिते होंगे की आदित्य को उनकी बिमारी का पता चला..। आदित्य ने दिन रात एक करके अपनी दादी का सपना पुरा किया... और लाल रंग की कार खरीदी... जो अक्सर कौशल्या आदित्य को बताया करतीं थीं.।
सब बातें जैसे उसके आंखों के सामने ही चल रहीं हो.... सोचते सोचते कब सुबह हुई पता ही नहीं चला...। आदित्य किचन में चाय बनाकर अपनी दादी के कमरे में गया।
आदित्य :- क्या बात हैं दादी... आज आप को देर हो गई... लगता हैं कल की थकान अभी तक उतरी नही आपकी... चलिए कोई नहीं.. ये मस्त कड़क... मेरे हाथ की बनी चाय पीजिए.... सारी थकान घुम हो जाएगी...। दादी... ओ... दादी.।
आदित्य आवाज देते देते उनके नजदीक गया ।
लेकिन दादी ने जब कुछ जवाब नहीं दिया तो आदित्य ने उन्हें छूआ.।
कौशल्या देवी की सांसें थम चुकी थीं..।