कुछ भी कर लो, सासु माँ तो बुराई ढूंढ ही लेंगी
कुछ भी कर लो, सासु माँ तो बुराई ढूंढ ही लेंगी
"ममता से कुछ सीखो तुम। घर कितना व्यवस्थित रखती है। माँ तो थी नहीं तुम्हारी, कुछ भी सीखकर नहीं आयी हो। एक भी काम ढंग से नहीं आता। क्या-क्या सिखाऊं इसे? सोचा था बहू आएगी तो कुछ तो आराम मिलेगा, लेकिन मेरे तो नसीब ही फूट गए। बड़ी भाभी किस्मत वाली है, जो ममता जैसी बहू मिली। पूरा घर संभालती है, मज़ाल उफ़ तक कर दे।" सुमित्रा जी अपनी नई नवेली बैंक में लोन ऑफिसर बहू को कोस रही थी।
उनकी बहू अंजलि को कोरोना के कारण वर्क फ्रॉम होम मिला हुआ था। जब से वर्क फ्रॉम होम मिला, तब से अंजलि की ज़िन्दगी में सासू माँ नाम की हलकी-फुलकी धारा सुनामी बनकर हलचल मचा रही थी। अब अंजलि उन्हें हर समय घर पर दिखती थी, तो अब हर समय वह उसकी बुराइयां ढूंढ़ती रहती थी और दुनिया भर की सारी बहुओं से उसकी तुलना करती थी। ममता भाभी की शादी 20 साल पहले हुई थी। वह अंजलि के पति धर्मेश के ताऊजी के बेटे की पत्नी थी।
अंजलि और उनकी तो तुलना करना बेकार था। अब कोई सींकची पहलवान की दारा सिंह से तुलना थोड़ी हो सकती है।अब अगर मछली पक्षी को आकाश में उड़ता देख और पक्षी मछली को जल में तैरता देख ;परस्पर तुलना करें तो दोनों को ही अपने आप में कमियां नज़र आएँगी। जबकि दोनों में ही अपनी जगह कई खूबियां हैं। इसलिए ममता भाभी और अंजलि की तुलना करना बिलकुल बेमानी थी।
तब ही दरवाज़े की घंटी बजी। धर्मेश के ममेरे भैया और उनकी बीवी मनीषा आये थे। सुमित्रा जी तो अपने कमरे में लेटे -लेटे ही बड़बड़ा रही थी। अतः दरवाज़ा खोलने अंजलि ही गयी ;मनीषा भाभी को देखते ही अंजलि रुआंसी होकर बोली, "भाभी आप इतना अच्छे से तैयार होकर आयी हो न ;
अब आपके जाते ही मम्मी जी मुझे सुनाएंगीऔर कहेंगी, "देख मनीषा भी नौकरी करती है ;लेकिन कितने अच्छे से सज संवर कर रहती है। तेरी तरह नहीं जो हमेशा ऐसे ही घूमती रहती है। लोग सोचते होंगे बेचारी कितनी दुखी है ?सास खूब तंग करती होगी . घर में न जाने कितना काम है जो इसे ठीक से तैयार होने का टाइम भी नहीं मिलता है। लोगों का मुँह थोड़े न बंद कर सकते हैं .यहाँ पर तो अपना सिक्का ही खोटा है ."
मम्मी जी कभी मुझसे खुश ही नहीं होती। मैं कितनी ही कोशिश कर लूँ, उन्हें कभी खुश ही नहीं कर पाती। "
इतने में ही सुमित्राजी भी अपने कमरे से बाहर आ गयी थीं। उनको देखते ही अंजलि चुप हो गयी थी। मनीषा को अंजलि पहले भी अपनी समस्या बता चुकी थी। एक आत्मविश्वासी और आत्मनिर्भर लड़की को ऐसे टूटते देखना मनीषा को अच्छा नहीं लगा। मनीषा अंजलि के साथ किचन में आ गयी थी।
"देखो अंजलि, मैं जानती हूँ तुम अभी किचन का सारा काम देखती हो। रोज़ नयी -नयी डिशेस बनाकर बुआजी को खुश करने की कोशिश कर रही हो। लेकिन मेरी एक सीख अगर तुम्हे सही लगे तो याद रखना। हम किसी को भी 100 % खुश नहीं कर सकते। अगर तुम 10 काम सही करती हो और 11 वें में थोड़ी सी भी गलती हो जाए तो वह 1 गलती बहुत भारी हो जाती है। सासु माँ तो गलती न होते हुए भी गलती ढून्ढ निकाल लाने वालों में से एक होती हैं। तुम अपने लिए एक सीमा निर्धारित कर लो। "मनीषा ने उसे समझाते हुए कहा।
"भाभी, मैं सोचती थी कि मुझे सही में कुछ नहीं आता क्यूंकि मेरी माँ तो बचपन में ही चल बसी थी। सोचा था सासु माँ में ही मुझे मेरी माँ वापस मिल जायेगी। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।मम्मीजी तो मुझसे हमेशा ही नाराज़ रहती हैं| आप किन सीमाओं की बात कर रही हो। " अंजलि ने पूछा।
"अरे यार, घर के कामकाज करने की। तुम उतना ही करो, जितना कोरोना संकट के समाप्त होने के बाद कर सको। तुम जितना ज्यादा प्रयास करोगी, बुआजी के उम्मीदें तुमसे उतनी ही बढ़ती जायेगी। तुम उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए अपने आपको पूरा गला भी दो न ;तब भी उम्मीदें किसी की पूरी नहीं कर सकती हो । इसलिए उतना ही करो, जितना तुम अपनी क्षमताओं के अनुसार कर सकती हो। सासु माँ तो है ही एक ऐसा इंसान जिसे तो शायद भगवान भी कभी खुश न कर पाए। "मनीषा ने मुस्कुराते हुए कहा।
"भाभी, आप शायद सही कहती हो। "अंजलि ने कहा।
"अरे अंजलि, चाय बना रही है या बीरबल की खिचड़ी। ममता तो अब तक चाय पानी पिलाकर खाना भी बना देती। ऐसी फुर्तीली औरत मैंने आज तक भी नहीं देखी। "सुमित्राजी बोल रही थी।
"कुछ भी कर लो, सासु माँ तो बुराई ढून्ढ ही लेंगी। तो फिर क्यों परेशान होना?" अंजलि और मनीषा दोनों ने एक साथ कहा और खिलखिलाकर हंस पड़ी।
