कुछ अलग सा
कुछ अलग सा


आज से अपनी दिनचर्या में कुछ बदलाव लाऊंगी.... कुछ खास और अच्छा करने की कोशिश करनी है ,अच्छे दिन की चाह में कुछ मजबूत होना पड़ेगा। रोज जब मैं लोगों के चेहरे देखती हूँ तो हाथ जरूर हिलाती हूँ ,जवाब कम ही लोग देते हैं। दोष लोगों का नहीं परिस्थितियों का है .. किसने सोचा था कभी ऐसे दिन भी दिखेंगे..... बहुत सजग रहना है। कई जगह तो सील कर दी गई, जरूरी भी है। लोगों को बचाना है तो सम्मिलित प्रयास ही सार्थक होंगे.. पर धैर्य कम होता जा रहा... लगता हैं हम एक झरोखे वाले बक्से में बन्द हैं...एक अजीब रिक्तता... कुछ लिख कर तो मन हल्का हो जाता है ,पढ़ कर भी... तो दोस्तों लिखना पढ़ना जारी रखें.... कठिन समय निकलना है।