कसूरवार कौन???
कसूरवार कौन???
देखा था मैंने आंखों में एक प्यारा सा सपना
वो सपना जो माँ सँजोती कि
मेरी बेटी पूरा करेगी यह सपना
सपना था सक्षम बनने का ,एक निर्भीक स्वधर्मी बनने का
था एक सपना कि मेरी बेटी बढ़ाएगी सम्मान व ईमान मेरा
था सपना कि मेरी बेटी जरूर बदलेगी परिवार की खुशहाली व तरक़्क़ी व रौनक का नक्शा
तथा मां बाप के अधूरे सपनों की उड़ान का सपना
तथा था सपना भाई बहनों के परस्पर स्नेह बंधन व खुशी में बंधने का
था एक सपना हँसी खुशी परिवार का
था सँजोया एक सपना अपनी सहेली जैसी बेटी के लिए
एक सच्चा , ईमानदार ,प्रतिष्ठित, हमसफर जीवनसाथी का
था एक जरूरी सपना बेटी की सम्मान से विदाई करने का।
परंतु क्या हुआ ?! इस सपने का ! जो हो ना सका अपना !
!!!! जैसे कोई आया शिकारी जंगल में और नष्ट कर दिया उस घोसले को
जिसमें चिड़िया अपने बच्चों को उस में सँजोये हुई थी
और ले गया शिकार करके उसके बच्चों को
व्यथित माँ बाप ने बहुत देखा इधर उधर
और देखते हैं राह बच्ची की शायद शिकारी के चंगुल से बचकर आ जाए
पर हुआ ना ये .....और हो ना पाया !!.....
था सपना जो अपना बनाने का और
सारे सपने आंखों की पुतलियो में ही सूख गये
और और बस ,......
रह गई अधूरी और विक्षिप्त यादें .....
जो इतना टूट गयी व बिखर गई कि
जो कभी देख ना पाएंगी सपना
वो सपना जो था कभी आँखों में
वह सपना जो होना था कभी अपना ...
बस सब टूट गया ......
क्या दोष था उन मां-बाप का जो करते थे अपनी बेटी पर विश्वास प्यार भरोसा ...
विश्वास प्यार भरोसा धैर्य और आत्म सम्मान व प्रतिष्ठा का
यह स्नेह और प्यार की कैसी परीक्षा
जो दो पल ना लगा ,और सब बिखर गया ।
कसूरवार कौन ????
