कर्तव्य-बोध
कर्तव्य-बोध
जयपुर राजस्थान के राजकीय सवाई
मानसिंहअस्पताल में सर्जरी वार्ड इंचार्ज डॉशकुंतला
भारतीय सिनियर सर्जन नई पद स्थापित हुई थीं।
वोआगरा उत्तर प्रदेश कि रहने वाली थी।
उनके परिवार में दो बेटे थें।
उनकेे कोई बेटी नहीं थीं।
उनके पति का एक सड़क दुर्धटना में स्वर्गवास
जयपुर आने से पहले ही हो चुका था।
वोअपने भाई कि बेटी को स्कूल में पढ़ाई
करवाने के लिएअपने साथ लेकरआई थीं।
उनके परिवार में दो बेटे दो बहुएं एक बुजुर्ग
सासुजीऔर एकभाई कि दस वर्षियभतिजीथीं।
परन्तु एक बेटा बहुअमेरिका में दोनों डाॅक्टर थें।
वहां पर नौकरी कर रहे थें।
दोनों वहींअमेरिका के स्थाई निवासी हों गयें थें।
एक छोटा बेटा भी डाॅक्टर कि नौकरी जयपुर के पास
चांमु कस्बे में राजकियअस्पताल में कर रहा था।
छोटे बेटे कि पत्नी भी राजकिय सैकंडरी विधालय
जोबनेर जयपुर राजस्थान मेंअध्यापिका कि नौकरी
कर रहीं थीं।
वो दोनों पति-पत्नी जोबनेर जयपुर में ही रह रहे थें।
सब घर परिवार के लोग नौकरी पैशा थें।
पर घर पर वृद्ध सासुुुजी कि देखरेख करने के लिए एक नौकरानी रखी हुई थी।
डाॅक्टर शकुंतला भारतीय सिनियर सर्जन कि रात्रि कालीन ड्युटी रहती थी।
इनका सरकारी निवासअस्पताल के अहाते में ही था।
वह रोज पैदल ही ड्युटी पर चलीं जाती थी।
एक दिन वृद्ध सासुजी कि तबियत ठीक ड्युटी समय पर जाने से पहले कुछ अधिक गड़बड़ हो गई थी।
लेकिनअस्पताल से स्टाफ नर्स ने काल कर के बताया। कि डाॅक्टर मैडमजीआप जल्दीअस्पताल पहुंचे।
आपके वार्ड में एक इमरजेंसी मरीज़ भर्ती कराया गया।
वह बैहोस बहुत ही नाज़ुक हालत में हैं।
वह सड़क दुघर्टना में गंभीर घायलअवस्था में हैं।
डाॅक्टर मैडमजी ने जल्दी सेअपनी सासुजी को
ज़रूरी दवाईयां देकर नौकरानी केभरोसे छोड़
कर तुरंत अस्पताल पहुंचीं।
घर से मोबाइल फोन पर ही स्टाफ नर्स को बताया कि
आप जल्दी से जल्दीआपरेशन थियेटर में
सभी सामग्री कि तैयारी करियें।
मैंअभी बहुत जल्दी हीअस्पताल पहुंच रहीं हूं।
मैं सीधे हीआपरेशन थियेटर मेंआकर सीधे ही
आपरेशन शूूरू करूंगी।
डाॅक्टर मैडमजी तेे़ज चलती हुईअस्पताल पहुंचीं।
फटाफट वाॅसरूम में जाकरआपरेशन के तैयार हुई।
औरआपरेशन थियेटर में प्रवेश कर गई।
परन्तु यहआपरेशन बड़ा घटिल किस्म का था।
मरीज को दुर्घटना में काफी गंभीर चोटेंआईं।
मरीज़ का घायलअवस्था में काफी खुन बह चुकाथा।
फिर भी एक घंटे मेंआपरेशन पुर्ण सफ़ल हो गया था।
डाॅक्टर मैडमजीअस्पताल से तेे़ज क़दमों से घर को
लौटने लगीं थीं।
तो मरीज के परिजनों ने डाॅक्टर मैडमजी से
आपरेशन के बारे में जानकारी चाही थी।
ठैरो सवाल जबाव किया था।
डाॅक्टर मैडमजी ने जल्दी ही उन्हें केवल यह बोला
किआपरेशन पुर्ण रूप से सफल रहा हैं।
यह कहकर अपने घर कि तरफ़ तेज़ क़दमों से
भागती-दौड़ती सी घर पहुँचीं थीं।
परन्तु घर जाकर देखा तो उनकी सासुजी कि मौत हो
चुकी थी।
उनके घर मेंअपनी सासुजी कि
तबियत ठीक नहीं फिर भी ड्यूटी पर पहुंची थी।
उन्हें पता था कि सासुजी कि ऐसी गड़बड़ तबियत
हालत में मौत कभी भी हो सकती हैं।
लेकिनअस्पताल में भर्ती मरीज काआपरेशन कर
ड्युटी समय पर पुरी की।
डाॅक्टर पैशा का राज़ धर्म निभाया था।
बाद मेंअस्पताल स्टाफ सहित मरीजों के परिजनों को
यह बात पता चली।
तो सबने डाक्टर मैैडमजी को भगवान का असली रूप
बताया।
अस्पताल मेंआपरेशन के लिए भर्ती मरीज के परिजनों ने डाॅक्टर मैडमजी को ऐसी विकट परिस्थिति में भी अस्पताल में भर्ती मरीज काआपरेशन कर ड्युटी धर्म निभाने के लिए बहुत धन्यवाद दियाआभार प्रकट किया शुक्रियाअदा किया।
इसे हम भारतीय कर्तव्य बोध फ़र्ज़ कहते हैं।
