कृष्ण का संताप
कृष्ण का संताप
आओ पार्थ भले आये,
आखिरी विदाई देने को!
कुरुक्षेत्र का कहा सुना,
याद पुऩ: कर लेने को !
आ गया समय जीवन भर का,
लेखा -जोखा विधिवत कर लें!
क्या गलत किया क्या किया उचित,
कुछ शोक -मोद से मन भर लें !
दिख रहा न कोई यदुवंशी,
सब मुझसे पहले चले गये !
अब समय नहीं जो बना सकूँ
बंधु -बांधव स्वजन नये !
सती साध्वी गांधारी का,
सत्य हो गया महाश्राप !
पुण्य मानता रहा जिसे,
बन गया वही यह महा पाप!
कौरव पांडव सहज बंधु ,
एक वृक्ष की दो डालें !
बन गये परस्पर महा शत्रु,
खेल खेल अपनी चालें !
प्राय: लगता सारा जीवन,
संघर्षों में ही तो बीता !
मातुल कारा से आज तलक,
रचता आया कर्म गीता !
पाया बहुत पर खोया भी कुछ,
यश अपयश की गठरी लेकर !
जा रहा ....... . आज ,
धरती को रक्त वर्ण देकर !
क्या गणना कितनी सुंदरियों को,
असमय. ही वैधव्य मिला !
कितनी मातायें मर मर कर ,
जीती सपनों में सुत को जिला जिला !
क्रमश: