संस्मरण
संस्मरण
प्रिय डायरी,
उस दिन इंदौर से फोन आया कि पापा की तबियत बहुत गड़बड़ चल रही है। आप आ जाओ तो ठीक रहेगा। मैने लाली के साथ पापा के पास जाने का प्लान बना लिया। जब वहां पहुंची तो देखा कि वो बिस्तर से उठ भी नहीं पाते थे। उन्हें नींद भी बहुत कम आती थी। भैया, लाली व मैंने उनकी खूब देखभाल की। अब वह कुर्सी पकड़कर थोड़ा चलने लग गये थे और खाना भी थोड़ा थोड़ा खाने लगे थे। अब उनकी चेतना लौटने लगी थी। इस तरह ही उनकी देखभाल होती रहती तो वह काफी स्वस्थ हो जाते परन्तु अब हम दोनों को लगभग बीस दिन हो चुके थे। वापस जाने का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था पर हम बेटियां उनके पास कब तक रह सकती थीं। अत: बेमन से वापस आने की तैयारी कर ली। पापा अपनी सबसे बड़ी परेशानी यही बताते थे कि उन्हें नींद नहीं आती है। हम दोनों जब घर से निकलने को थे उस समय पापा गहरी नींद में सो रहे थे। हम लोगों ने विदाई लेने के लिए उन्हें इसलिए नहीं जगाया कि बाद में उन्हें नींद नहीं आयेगी और हम लोगो को जाता हुआ देखकर वे दुखी हो जाएंगे पर ये मालूम न था कि आज के बाद हमलोग अपने पापा को कभी जागते हुए नहीं देख पायेंगे। उस दिन को याद कर आज भी मेरा मन बहुत दुखी हो जाता है।
