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करप्शन...

करप्शन...

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अंजान साहब सुबह का अखबार पढ़ते हुए कहते हैं ओह हो, आजकल देश मे भ्रष्टाचार बहुत बढ़ गया है जहाँ देखो वहीं झूठ और बेईमानी नजर आती है...

तभी अंजान साहब का सात वर्षीय बेटा रोहन अंदर आता है और कहता है पापा आपको गुप्ता अंकल बुला रहे हैं, अंजान साहब अनमने मन से कहते हैं कि कह दो पापा घर पर नही हैं तो रोहन मासूम सी आवाज़ मे कहता है कि पापा लेकिन आप तो घर पर ही हो, तो अंजान साहब कहते है तुम उनसे कहो कि मैं घर पर नही हूँ... अगर तुम मेरा कहा मानोगे तो तुम्हें चॉकलेट मिलेगी यह सुनकर रोहन खुश हो दरवाज़े की तरफ बढ़ जाता है वहीं दूसरी तरफ अंजान साहब को महसूस होता है कि कोई व्यंगात्मक निगाहों से उन्हे घूर रहा है वह अखबार को एक तरफ रख मिसेज अंजान से कहते हैं कि क्या हुआ भला ऐसे क्यों देख रही हो मिसेज अंजान सब्जी काटते काटते रुक जाती है और कटाक्ष भरे लहज़े मे कहती है कि आज पता चल गया कि करप्शन कहाँ से शुरू होता है यह सुन अंजान साहब शर्म से पानी हो दरवाज़े का रूख करते हैं.....


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