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निखिल कुमार अंजान

Children Stories Inspirational

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निखिल कुमार अंजान

Children Stories Inspirational

प्राकृतिक आपदा

प्राकृतिक आपदा

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दादा आपने सुना बिहार में बाढ़ से कितने परिवार बेघर हो गए और कितने ही लोग मारे गए रोहन ने अखबार पढ़ते हुए मोहल्ले के सबसे बजुर्ग व्यक्ति जिस को सब दादा कहते थे से कहा, दादा ने "हम्म्म्म्मम" किया। रोहन दादा की तरफ आश्चर्य से देखने लगा और उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया न आते देख वह बोला "दादा आपने कुछ कहा नहीं आपको दुख नहीं हुआ भगवान ने कितना गलत किया है इन लोगों के साथ।" 

यह सुन दादा ज़ोर से चिल्ला पड़े और बोले "कब बंद करोगे हर बात के लिए भगवान को दोष देना इतनी सुंदर दुनिया का निर्माण कर वह क्यों अपने हाथ से उसे उजाड़ेगा हम लोग कब अपनी जिम्मेदारी समझेंगे कि इस धरा इस पृथ्वी को लेकर हमारा भी कोई कर्तव्य है अपने स्वार्थ और लालच में हमने पृथ्वी को विनाश की ओर धकेल दिया और यह नहीं समझ रहे कि पृथ्वी का विनाश होने से पहले हम लोगों का विनाश हो जाएगा बस हर बात के लिए ले देकर भगवान को दोष देना शुरु कर देते हैं।"


रोहन ने पहली बार दादा को इतने गुस्से में देखा था वह हमेशा शांत और मुस्कुराते रहते है दादा की आवाज़ सुन वँहा मोहल्ले वालों की भीड़ लग गई और सब कहने लगे "क्या हो गया दादा। "

दादा ने कहा "मुझे भी दुख होता है बहुत दुख होता है लेकिन जब देखता हूँ कि इंसान स्वंय अपने विनाश के लिए आतुर है तो फिर नहीं होता दुख हाँ रोहन तुम बिहार के बाढ़ की बात कह रहे हो ना तो जो हुआ है वहाँ उसका कारण हम लोगों का लालच लापरवाही है बिहार में 1953-54 में शुरु की गई 

कोसी परियोजना का क्या हश्र हुआ आज लगभग 65 वर्षों बाद भी स्थिति ज्यों की त्यों है उलटे और भयावाह होती जा रही है हम नित्त दिन नए आविष्कार कर रहे हैं विकास की ओर लगातार अग्रसर है किंतु फिर भी प्राकृतिक आपदों से हर वर्ष पता नहीं कितना जान माल का नुक्सान होता है

प्रकृतिक का हमने जो दोहन किया है उसका फल तो मिलेगा ही ना पेड़ हमने काट दिए वायु को प्रदुषित कर दिया पहाड़ों को तोड़ डाला नदी तालाब या तो सुख गए या फिर आस्था के नाम पर उसमें कुड़ा करकट डाल उसकी स्थिति विलुप्त होने की कर दी है क्या छोड़ा है भला हमने और जो काम हो भी रहे हैं उनमें ले देकर लालच आड़े आ जाता है तो फिर जब हम खुद ही खुद के लिए गड्डा खोद रहे हैं तो क्यो दुख होगा तुम सब बताओ।" 


सब चुपचाप खड़े सर झुकाए दादा की बात सुन रहे थे दादा ने कहा "हमको जब इस धरा इस सृष्टि ने इतना कुछ दिया है तो हमारा भी फर्ज़ बनता है उसका ख्याल रखें देखो मेरे बच्चों में ज्यादा पढ़ा लिखा नहीं हूँ कि बता पाऊं क्या कारण है इन सब प्राकृतिक आपदाओं के लेकिन इतना मुझे अनुभव है कि हम उसको दुख देंगे तो वह भी हमें वही देगी।" 

वहाँ खड़े सभी लोगों को एहसास हो रहा था कि हम ही कारण है जो आए दिन ऐसी घटनाएँ होती रहती है हम लोगों को प्रकृति से प्रेम करना होगा पेड़ पौधे लगाने होंगे और लोगों को भी जागरुक करना होगा सभी बोल पड़े दादा आप सही कह रहे हैं हम लोगों की ग़लती है हमें इसे सुधारना होगा दादा ने कहा "सही कहा मेरे बच्चों हम सब मिलकर इस धरा को फिर से सुंदर बना सकते है चलो एक कदम मिलकर बढ़ाते है इस ओर" सबने कहा "हाँ बिल्कुल दादा।" 

 दादा ने नारा दिया,

धरा को हरा भरा बनाना है

  मानव की बेहतरी के लिए

  प्रकृति से संबंध सुदृढ़ बनाना है। 



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