तुम्हारी परछाईं...

तुम्हारी परछाईं...

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गोलू की बात सुनकर निखिल आज फिर अतीत की गहराइयों में खो गया बरबस ही उसे अपने पिता की याद आने लगी, आज खुद को उनकी जगह खड़ा महसूस कर रहा था...

निखिल एक बहुत ही लापरवाह और अल्हड़ किस्म का लड़का था छोटी उम्र में ही वह अपनी माँ को खो चुका था माँ के गुज़र जाने के बाद पिता ने बड़े प्यार से अपने तीनों बेटों का पालन पोषण किया था निखिल तीनों भाइयों मे दूसरे नंबर का था कभी भी वह अपने जीवन को लेकर सीरियस नहीं हुआ हमेशा ही अपनी धुन मे मस्त रहता था ....

पिता के साथ उसका पिता पुत्र के रिश्ते से ज्यादा दोस्ती का रिश्ता था।  तो वह उससे काफी खुलकर हर तरीके की बात कर लिया करते थे।  पिता उसको हमेशा छोटी छोटी चीजों को लेकर समझाते थे कि इतना लापरवाह होना ठीक नहीं है, थोड़ा घर की चीजों पर भी ध्यान दो पर वह अपने तौर तरीकों में कोई बदलाव नहीं करता, आज जब छोटे भाई गोलू ने कहा कि जो काम पापा कहा करते थे और तुझे डांट भी पड़ती थी फिर नहीं करता था, आज तू तू बिना किसी के कहे वो सब कुछ खुद कर रहा है कितना बदल गया है तू भाई....

पिछले बरस पिता के गुज़र जाने के बाद तीनों भाइयों का जीवन बिल्कुल बदल गया था, बड़े भाई अक्सर काम के सिलसिले में दूसरे शहर में ही रहा करते थे, अब घर में मात्र दो ही प्राणी बचे थे निखिल और गोलू तो अब निखिल पर ही पूरे घर की जिम्मेदारी आ चुकी थी, वह पूरी लगन के साथ हर काम को करने लग गया था। आज जब एक बरस बाद छोटे ने यह बात कही तो निखिल को पिता की कही वह सारी बातें याद आ गई जिनको सुनकर अक्सर वह चिढ़ जाता था....

अब उसको चिंता रहती थी कि घर में क्या कमी है, क्या होना है, नास्तिक विचारों वाला निखिल सुबह उठ सबसे पहले साफ सफाई कर घर का दिया जलाता था।  उसके बाद भोजन की व्यवस्था कर अपने व्यापार के कामों में लग जाता था जबकि पहले इन चीजों से बचता था....

पिता के साथ बिताए सुनहरे पलों की याद में खोए अचानक उसको याद आया कि महीने की आखिरी तारीख है, और वह मंदिर नहीं गया है तो वह खड़ा हुआ अपनी गीली हो चुकी पलकों को पोंछा और मंदिर जाने के लिए तैयार हो निकल पड़ा। बाहर चल रही तेज़ हवा के झोंके उसके मुख पर पड़ रहे थे उसको महसूस हो रहा था कि उसके अंदर अब उसके पिता का अक्स आ चुका है इस एहसास के साथ ही निखिल के चेहरे पर मंद मंद मुस्कान तैर गई। 


        

 



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