कुंठा....

कुंठा....

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हाँ हाँ तुम कमाती हो और मै मुफ्त की रोटियां तोड़ता हूँ मनु ने आक्रोश मे चिल्लाकर कहा मुझसे यह सब और बर्दाश्त नहीं होता मैं अब इन सबसे छुटकारा चाहता हूँ ..........

यह सुन राधा की आँखें नम हो गई और अपने आप को संयत करते हुए रुंधे गले से बोली मनु शांत हो जाओ ना देखो अंश रो रहा है। मैं तुम्हारी परेशानी समझती हूँ इस पर हम लोग बात कर हल निकाल सकते हैं प्लीज नाराज मत हो तुम.....  

 राधा की बात सुन मनु ने अंश को गोद मे उठा अपनी आँखों के कोर पर से पानी की बूँदों को साफ किया और बिना कुछ कहे दूसरे कमरे में चला गया.......

राधा अब अपनी आँखों मे आए सैलाब को रोक न सकी वह काफी देर तक अकेले बैठे रोती रही। उस दिन न दोनों ने खाना खाया और नहीं एक दूजे से बात की..........

मनु और राधा की अरैंज मैरिज को लगभग 3 साल के करीब हो गया था और दोनों में आपस में काफी प्यार था लेकिन करीब पिछले छ: महीने से मनु का स्वाभाव काफी चिड़चिड़ा हो गया था। इसका कारण राधा बखूबी समझ रही थी, वह उसको खुश रखने की हर कोशिश करती थी किंतु सब व्यर्थ था.....

मनु और राधा दोनों ही शिक्षक थे पहली मुलाकत मे दोनों के विचार अापस मे मेल खा गए जिस कारण दोनों ने एक दूजे को अपने जीवनसाथी के रुप मे स्वीकार कर लिया शादी के बाद दोनों का जीवन बहुत ही प्रेम से व्यतीत हो रहा था तभी उनके जीवन में एक नई खुशी आ गई राधा का चयन शहर के सरकारी स्कूल मे शिक्षक के रूप में हो गया दोनों ही बहुत खुश थे और सुनहरे भविष्य के सपने संजोने लगे.......

महीने भर के अंदर वह शहर आ गए और राधा ने अपनी नौकरी ज्वॉइन कर ली अब वह सुबह 7 बजे घर से स्कूल के लिए निकल जाती और दोपहर 3 बजे तक घर वापस आती। दूसरी तरफ मनु भी नौकरी की तलाश मे लगा था किंतु नए शहर में आकर काम मिलना इतना आसान न था लेकिन मनु इस बात को लेकर बिल्कुल भी परेशान नहीं था कुछ दिनों में ही मनु को भी एक प्राइवेट स्कूल मे नौकरी मिल गई अब दोनों खुशी खुशी अपना जीवन व्यतीत करने लगे। इसी खुशी के अंदर लगभग साल भर मे एक कड़ी और जुड़ गई उनके एक सुंदर से बालक ने जन्म लिया। उन्होंने उसका नाम अंश रखा, मनु के माता पिता भी शहर आ गए। उधर राधा को भी स्कूल से 6 से 7 महीने की मैटरनिटी लीव मिल गई।

उधर मनु के माता पिता को शहर की आवोहबा रास नहीं आ रही थी किंतु पोते के मोह मे वह भी साल भर टिक गए दूसरी तरफ राधा की भी छुट्टियाँ खत्म हो गई थी। उसको स्कूल ज्वॉइन करना था और मनु के माता पिता भी गाँव लौट गए अब दोनों के सामने समस्या यह थी कि साल भर के छोटे से बच्चे का ध्यान कौन रखेगा। दोनों ने आपस मे बात कर यह तय किया कि मनु अपनी नौकरी छोड़ बच्चे का ध्यान रख पिता होने का फर्ज निभाएगा उसके निर्णय से राधा भी अपने पति और किस्मत पर गर्व महसूस कर रही थी कि उसे कितना अच्छा जीवन साथी मिला है.........

शुरुआत में तो सब सही चलता रहा लेकिन कुछ दिनों बाद उसको बच्चे के रोने से सू सू पॉटी से बैचेनी होने लगी। 

पूरे दिन वह घर में ही कैद हो कर रह गया था। ऐसे मे मिलने जुलने वाले व आस पड़ोस के लोग जब कहते कि मनु बाबू आपके तो ठाठ है बीवी की सरकारी नौकरी है मौज ले रहे हो, आपको क्या जरुरत है काम करने की। कुछ लोग कहते भाई तुम्हारी किस्मत बढ़िया है कमाने वाली बीवी मिल गई, आप तो बस आराम से जीवन काटो। उनके इन शब्दों में व्यंग होता था। पहले पहल तो मनु को इतना बुरा नही लगता था लेकिन धीरे धीरे जब वह यही बात कई बार सुन चुका था तो अब वह अवसाद ग्रस्त होने लगा सोचता रहता क्या मैने इसलिए पढ़ाई की थी या इसलिए शादी की थी कि मै घर बैठ यह सब करुं हर दिन के साथ उसका तनाव और क्रोध बढ़ता जा रहा था अब वह अक्सर राधा से ऊँचे स्वर मे बात करने लग गया था लेकिन उस रात कुछ ज्यादा ही हो गया था.......

 अगली सुबह राधा स्कूल नहीं गई और उदास बैठे अपने कमरे मे अतीत के सुनहरे पलों को याद कर रही थी और उसकी आँखों से आँसू टपक रहे थे। तभी राधा के फोन की रिंग बजी तो उसकी तंद्रा भंग हुई। उसने देखा सासू माँ का फोन था। राधा ने अपनी गीली पलकों को पोंछा और माँ का फोन उठाया। वह कुछ बोलती उससे पहले ही माँ जी बोल पड़ी- राधा क्या हुआ है, बेटा सब ठीक तो है ना। राधा ने कहा- हाँ जी माँजी सब ठीक है, क्या हुआ आप बताएं।

नहीं मुझे लगा कि कोई परेशानी है, काफी दिनों से मनु न तो मेरा फोन उठा रहा है और नहीं मुझे फोन करता है। तू मुझे सब कुछ सही सही बता।

राधा को लगा माँ जी को सब कुछ बता देना चाहिए। वही हैं जो मनु को अवसाद मे जाने से बचा सकती है राधा ने रोते रोते पूरी व्यथा माँ को सुना डाली माँ ने सारी बात सुनकर कहा बेटा तू चिंता मत कर मै कल आ रही हूँ और सब सही कर दूगीं और अब समय आ गया है इसकी कुंठा को दूर करने का माँ की बात सुन राधा को सांत्वना मिली..............

अगले दिन माँ दोपहर में मनु के घर पहुँच गई। राधा स्कूल गई थी। मनु ने माँ को देखकर कहा, अरे माँ आप यहाँ बताया भी नही खबर कर देती माँ ने कहा हाँ तू बड़ा मेरा फोन का जबाव देता है चल छोड़ ये सब अब मै आ गई हूँ और यहीं रहूँगी। मनु ने कहा और पिताजी माँ ने कहा मेरी तेरे बाप से लड़ाई हो गई है।

मनु ने चौंककर पूछा मगर क्यों माँ कहने लगी। सुन ध्यान से तेरा बाप कमा कर लाता है तो क्या मुझ पर एहसान करता है, मैं पूरे दिन नौकरानी की तरह सारे घर का काम करुं और वह राजा की तरह रहे बस पूरा जीवन निकल गया है। अब मेरे बस की ना है यह सुन मनु तपाक से बोला माँ यह क्या बच्चों वाली बात कर रही हो तुम। अरे पिताजी, बाहर काम कर रहे हैं तो तुम्हारा भी फर्ज है की घर संभाल तुम उनको सहयोग करो।

यह सुन माँ तीखी नजरों से मनु को देखते हुए मुस्कुराई और बोली की तू मुझे कह रहा है तू भी तो यही बचपना कर रहा है क्या सिर्फ महिलाओं का फर्ज होता है कि वह सहयोग करें पुरुषों को नहीं करना चाहिए और हमने तो तुझे आज तक कभी स्त्री और मर्द मे अंतर करना नहीं सीखाया। माँ की बात सुन मनु शर्म से पानी हो गया और उसे अपनी गलती का एहसास हो गया। वह बोला माँ मुझे माफ कर दो मुझसे गलती हो गई। माँ बोली माफी माँगनी है तो राधा से मांग तभी पिताजी के साथ राधा घर में दाखिल हुई।

राधा और पिताजी को देख मनु ने राधा से माफी माँगी और कहा कि मैं कुंठित हो गया था और तुमसे बहुत अपशब्द कहे लेकिन तुमने मुझे बहुत अच्छे से संभाला। मैं तुमसे वादा करता हूँ कि आगे से कभी ऐसी गलती नहीं होगी। यह सुन राधा मुस्कुरा कर मनु के गले लग गई और दोनों ने माँ के कांधे पर अपना सर रख दिया पिताजी ने भावुक हुए माहौल को हल्का करने के लिए कहा- भई हम भी है अरे बीवी नाराज है तो क्या बच्चे भी नाराज है और सब एक साथ हँस पड़े।


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