संवेदना......

संवेदना......

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लूसी आज पूरे घर में घूम रही थी अपने बच्चे पिल्लू को ढूंढते हुए कभी पलंग के नीचे, कभी अलमारी के नीचे, तो कभी बालकनी में, लेकिन पिल्लू उसको कहीं नजर नहीं आया वह थक हारकर जमीने के एक कोने में चुपचाप लेट गई

मिस्टर गुप्ता आज जब घर लौटे तो लूसी उनके पास नहीं गई मिस्टर गुप्ता ने लूसी को आवाज भी दी, लेकिन वह वहीं जमीन पर चुपचाप पड़ी रही मिस्टर गुप्ता की बेटी आरती भी बहुत उदास लग रही थी पिल्लू के जाने से पूरे घर में मायूसी का सा माहौल था


काले रंग का नटखट और शैतान पिल्लू पूरे दिन घर में उधम मचा के रखता था, लेकिन आज उसके जाने के बाद घर में बिल्कुल खामोशी छा गई थी आज घर वालों ने भी खाना नहीं खाया था

आरती रोज की तरह अपनी डायरी लिख रही थी, लेकिन आज वह बहुत व्यथ्ति थी उसको रह रह कर पिल्लू की याद सता रही थी सबसे ज्यादा चिंता उसको इस बात की थी कि पता नहीं उसने खाना खाया होगा कि नहीं वह अपनी माँ को न पाकर कितना परेशान हो रहा होगा उस बेचारे का रंग काला है तो उसको कितनी गर्मी लगती है वह एसी चलाने के लिए रोने लगता था हम लोग उसके लिए एसी ऑन कर दिया करते थे पता नहीं, वहां उसकी सही से केयर होगी या नहीं यह सोचते सोचते उसकी पलकें भीग गई थी


दूसरी तरफ लूसी जहाँ मिस्टर गुप्ता की आहट सुन दौड़ कर उनके पास पहुँच कर पैरों में लोट जाती थी आज एकदम चुपचाप थी और आवाज देने पर भी वह अपनी जगह से नहीं हिली लूसी की आँखों के आँसू एक माँ का अपने बच्चे से दूर होने का दर्द बयान कर रहे थे

लगभग तीन दिन बीत गए थे पिल्लू को गए हूए लेकिन लूसी ने खाने की तरफ देखा भी नहीं था वह दिन भर बिल्कुल शांत घर के एक कोने में पड़ी रहती थी आरती के लिए यह सब देखना बहुत मुश्किल हो रहा था, उपर से खाना पीना छोड़ने की वजह से अब लूसी की तबियत भी बिगड़ती जा रही थी आरती से अब बर्दाश नहीं हो रहा था वह अपने पिता मिस्टर गुप्ता के पास जाकर बोली “पापा लूसी की तबियत ठीक नहीं है और वह पूरे दिन रोती रहती है आप पिल्लू को वापस ले आओ न”


आरती की बात सुन मिस्टर गुप्ता पहले तो चुप रहे, फिर उसकी तरफ देख बोले “बेटा देखो तुम्हें तो सब पता है हम लोग किराए के मकान में हैं यहाँ वैसे ही जगह नहीं है उपर से काम धंधा भी आजकल मंदा ही है और इन लोगों का भी पूरा खर्चा है मै भी उसको नहीं देना चाहता था किसी को लेकिन मजबूरी है बेटा तुम क्या सोचती हो कि तुम्हारे बाप को एक बच्चे को उसकी माँ से दूर करते हुए अच्छा लग रहा है” यह कहकर वह चुप हो गए.

आरती उनकी बात सुन चुप हो गई, फिर कुछ देर बाद बोली “पापा अगर पिल्लू आपका बेटा होता तो क्या आप मजबूरी के चलते अपने बेटे को उसकी माँ से दूर कर देते”


यह सुन मिस्टर गुप्ता जो पिल्लू के जाने से अब तक अपनी भावनों को नियत्रंण में रखे हुए थे वह अब अपनी आँखों से छलकते हुए आँसुओं को रोक न पाए और आरती के सर पर हाथ रखते हुए बोले “बेटा गलती हो गई वह बेजुबान जानवर है न तो उसकी संवेदना को समझ नहीं पाया तुमने मेरी आत्मा को झिंझोड़ दिया है मै आज ही पिल्लू को वापस लेकर आऊंगा एक माँ के लिए”   


“नहीं एक माँ बेटे को मै जुदा नहीं कर सकता यह पाप नहीं करना मुझे” आरती यह सुन भावुक हो अपने पिता से लिपट गई दोनों पिता पुत्री की आँखें पूरी तरह भीग चुकी थी



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