नंदू
नंदू
नंदू हाँ यही संबोधन मिला था उसे बचपन से! वैसे उसका नाम नंदिता था और वह सब उसे नंदू कहकर पुकारते थे जिनके सानिध्य मे उसका बचपन बीता ! नंदिता अपने जीवन के पचासवें बसंत को पार कर चुकी थी और एक मशहूर लेखिका के रूप मे साहित्य जगत मे जाना पहचाना नाम थी ! प्रशंसकों से लेकर आलोचकों तक सब कुछ से संपन्न थी नंदिता...वो कहते हैं न कि एक साहित्यकार की असली कमाई उसके फैन और ट्रोल करने वाले होते हैं.........
सब कुछ होते हुए भी नंदिता के पास बोहत कुछ नही था नही थी उसके अंदर की वो चंचल नंदू वो बालपन का अल्हड़पन......एंकात जीवन और समय के थपेड़ो ने उसे धीर गंभीर बना दिया था.... नंदिता आजकल अपनी ऑटोबायोग्राफी को लेकर चर्चा का विषय बनी हुई थी जिसमे उसने अपने जीवन के पन्नों को खोलकर रख दिया था.......
कि हम मशहूर न होते तो हमारे किस्से न होते
दबा दी जाती चीख हमारी कुछ इस तरह कि
बुज़दिल न होकर भी बुज़दिल ही होते....
#नंदिता...
अपनी आत्मकथा के लोकार्पण पर नंदिता ने मीडिया से मुखातिब होते हुए कहा कि यह मेरा जीवन का सत्य है और कोई इसे पढे या न पढ़े पर अपनी जीवन यात्रा को पूरा करने से पहले मैं खुद को खाली करना चाहती थी और आज मै खुद को बोहत संतुष्ट और अपने अंदर के नंदू की चंचलता को महसूस कर रही हूँ.......
तभी एक पत्रकार महोदय ने प्रश्न किया कि नंदिता जी अपने अपनी आत्मकथा मे ऐसा क्या लिखा है कि आपकेआलोचकों के स्वर मुखर हो गए है ? हँसते हुए नंदिता ने कहा नाम है तो बदनाम भी होगें हा हाहा....खैर मजाक से हटकर मुझे लगता है वो अपना काम कर रहे हैं और मै अपना, जरूरी नही है कि मेरे नजरिये से सामने वाला सहमत हो उसका अपना नजरिया और मत होगा सब दुनिया को अपनी अपनी नजर से देखते हैं ! तभी दूसरे पत्रकार ने सवाल किया मैम ये नंदू कौन है और आपकी आत्मकथा का शिर्षक नंदू क्यों हैं ? मुस्कुराते हुए नंदिता ने कहा कि नंदू आपकी जिज्ञासा है और उसका समाधान आपके सामने प्रस्तुत है हॉल मे ठहाके लग पड़े.....चलिए आप सभी लोग लंच कर लीजिए आप लोगों के लिए प्रबंध किया है बाकि की चर्चा लंच के बाद करते हैं.......
क्रमश :
