निखिल कुमार अंजान

Tragedy

5.0  

निखिल कुमार अंजान

Tragedy

भूख...

भूख...

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भइया ये दो अंडे की आमलेट कितने की है? 30 रूपए के है ! अच्छा बना दो और हाँ ब्रेड चार लगाना

तभी पीछे से आवाज़ आई "ऐ सुन ना" पीछे मुड़ कर देखा तो मैले कुचले कपड़ों में खड़ी एक लड़की बोल रही थी, "ओए सुन ना इधर आ"

मैने गौर से उसकी तरफ देखा और सोचने लगा, यह मुझे ऐसे क्यों बुला रही है क्या यह मुझे जानती है तभी अंडे वाले भइया बोले

"अरे भाई साहब ध्यान मत दो उस पर वो वैसी लड़की है क्यों चक्कर में पड़ते हो" मैने अंडे वाली की बात सुनी और लड़की की तरफ देखा, वो मुझे अब भी देख रही थी मैं अब खुद को रोक न सका और उसके पास पहुँच गया उसके पास जाकर मैने उससे कहा

"क्या तुम मुझे जानती हो, उसने कहा "साहब छोड़ो ना क्या रखा है जान पहचान में सीधे काम की बात करो न मैं दौ सौ लेगी"

मैने उसकी तरफ घूर के देखा और बोला "तुम्हें शर्म नही आती सड़को पर ऐसा काम करते हुए और मुझे क्या अपनी तरह समझा है" वो यह सुन मेरी आँखों में झाँकते हुए पहले हँसी फिर बोली "साहब शर्म से भूख नहीं मिटती और आप को तो मैं अपना अन्नदाता समझ रही हूँ, रही बात ऐसे काम की तो साहब समाज में ग़रीब की कोई इज़्ज़त नहीं होती कोशिश की थी मेहनत करके दो वक्त का भोजन मिल जाए पर मुझे तो वहाँ भी मुझसे ज्यादा भूखे मिल गए जो देह के भूखे थे।"

"मैं तो अनपढ़ बेसाहरा आजकल तो बड़े बड़े ओहदे पर पहुँची नारी का भी शोषण होता है साहेब उन भूखे भेडियों के चंगुल से अच्छा अपनी मर्ज़ी से अपने भोजन का प्रबंध करना मुझे बेहतर जान पड़ता है इसलिए साहब करना पड़ता है भूख इंसान से क्या करवा सकती है कोई नहीं जानता साहब" उसकी बातें सुन मैं निशब्द हो गया



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