कर्मफल

कर्मफल

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आज उसे इस तरह सड़क पर बेमतलब टहलते देख मुझे सचमुच बहुत तकलीफ़ हुई। मैं उसे पहचानती

 थी। कभी वह मेरी प्रिय सहेली रही थी। उसका नाम संध्या था। आज उसे कोई भी पसंद नहीं करता था। सभी के घर के दरवाजे लगभग उसके लिए बंद हो चुके थे।

सोचते-सोचते रोहिणी अतीत में पहुंच गयी। वह बिहार से आती थी और पति भी बिहार के ही थे। पढ़ाई समाप्त होते-होते उनकी नौकरी एक अच्छी कम्पनी में होगई । पति का तबादला भी सूदूर देश असम में हो गया, वहां वह भी पति के साथ चली गई। वहां की भाषा खान-पान, रहन-सहन सब कुछ अलग था वह पति के आॅफिस जाने के बाद अकेली रह जाती तब वह अपने घर जाने के लिए छटपटाया‌ करती। पति घर आते तो उसे इधर-उधर घुमाने ले जाते पर छोटी जगह में वह कितना घूमती?

एक दिन उसके पति अपने मित्र से मिलवाने ले गये उनकी पत्नी से मिलकर उसे बहुत अच्छा लगा वो लोग लखनऊ के थे खाना-पीना खाकर उन्हें भी अपने घर आने का  निमंत्रण देकर वो लोग घर आ गये।

संयोगबस उन्हें सरकारी क्वाटर भी आस-पास ही मिल गया अब दोनों का खूब मन लगता। एक साथ बाज़ार जाना, पिक्चर जाना होने लगा। तभी एक और बिहार से नयी शादी-सूदा जोड़ी उनके पडो़स में आ गई। अब तो तीनों की तिकड़ी खूब जमती थी।

उन तीनों के पति भी खूब हिलमिल गये थे। एकबार वो तीनों काजिरंगा घूमने गये अचानक उसे लगा कि उसके पति और संध्या दिखाई नहीं दे रहे उसने इधर-उधर नज़रें दौडा़ई पर,वो नहीं दिखे थोड़ी देर के बाद दोनों आते दिखाई दिये, हंसते हुए संध्या ने कहा -"देखो रोहिणी कितनी इमली। भाईसाहब ने तोड़ कर दिया।

उसे एक क्षण के लिए बहुत तेज गुस्सा आया पर वह शांत रही।

 फिर समय के प्रवाह में तीनों के बच्चे हुए संध्या को लड़का और रोहिणी,दिव्या को लड़की। पांच साल बितते-बितते उन तीनों के पति का ट्रांसफर मुम्बई हो गया। जुगत भिड़ा कर उन तीनों ने एक ही जगह सरकारी क्वाटर ले लिया। फिर वे मुम्बई में रचने-बसने लगे। पुनः रोहिणी और दिव्या ने एक-एक बच्चियों को जन्म दिया। उन्हें लड़के की चाहत थी पर मन को समझाना पड़ा।

धीरे-धीरे रोहिणी को लगने लगा कि उसका पति उससे कटा-कटा सा रहता है उसने सोचा शायद काम की परेशानी होगी। वह पंद्रह दिन ड्यूटी करता था और पंद्रह दिन घर में रहता था। संयोग यह था कि संध्या का पति रोहिणी के पति के घर आने पर दूसरे दिन पंद्रह दिन की ड्यूटी पर जाता था। दिव्या के पति की आॅफिस ड्यूटी थी अतः उनका रोज का आना-जाना था।  

रोहिणी ने यह गौर किया कि जब भी उसका पति घर आता संध्या का आना-जानाउसके घर में ज़्यादा बढ़ जाता। और रोहिणी के पति की बांछे खिल जाती। वह रोहिणी को कभी चाय की फरमाइश करता तो कभी पकौड़े की। रोहिणी भूनभूनाकर रह जाती पति के साथ की चाहत तो उसे भी थी पर पति उससे दूर-दूर ही रहता।

 इधर उसने गौर किया कि उसका पति दो दिन पहले ही रिग पर चला जाता है और आते समय दो दिन बाद आता है । इधर संध्या भी कहीं न कहीं जाने के बहाने गायब रहती। उसे अब संदेह होने लगा था पर कोई प्रमाण न मिलता। एक बेटे की चाहत में वह फिर गर्भवती हो गई। इधर संध्या भी गर्भवती थी लेकिन न जाने किस कारण उसे बच्चा गिराना पड़ा। रोहिणी का नौवां महीना चल रहा था अतः उसे देखने वह अस्पताल न जा सकी। जब संध्या घर आयी तो रोहिणी अपने पति के साथ उसे देखने गयी वहां का नज़ारा देखकर वह ठगी सी रह गई। संध्या का पति संध्या की पिटाई कर रहा था। उसने कहा भाईसाहब यह क्या अभी तो यह अस्पताल से आयी है वो भरे बैठे थे उन्होंने कहा यह तो अपने पति से पूछिये जिसने इसे गर्भवती किया है। आपका पति दो दिन पहले घर से निकल कर होटल में रुक जाता था और इसे वहीं बुला लेता था रिग से लौटते समय भी यही नाटक खेला जाता था। और तो और इन दोनों को बच्चे से भी शर्म नहीं थी। फिर संध्या का पति बोला और आप ! आपने भी ख्याल नहीं रखा।

अब इसकी करिस्तानी हम और हमारा बच्चा जिंदगी भर भुगतेंगे। और तो और मैं बहुत खुश था कि मेरे बच्चे का साथी आ रहा है लेकिन, इसने कहा बच्चा इस नराधम का है।

रोहिणी ‌का पति लाल-पीला होता हुआ रोहिणी को डपटते हुए घर चलने को बोलने लगा रोहिणी घर आ गई और पति से बोलना बंद कर दिया उसे अपने अजन्मे बच्चे का ख्याल था। बहुत दिन जब रोहिणी ने बात नहीं किया तो रोहिणी के पति ने खिड़की से कुदकर जान देने की धमकी दी और खिड़की पर चढ़कर कूदने का नाटक करने लगा। रोहिणी की मां और भाई आये थे क्योंकि, रोहिणी की ससुराल में ऐसा कोई नहीं था जो बच्चे के जन्म के बाद उसकी देखभाल कर सके। अपने जीजाजी को खिड़की से कूदते देखकर सुनील रोहिणी के भाई ने बहुत रोका पर, रोहिणी ने कहा ,"तुम हटो सुनील कूदने दो। जो आदमी इतना गिरा हुआ हो उसका मर जाना ही ठीक। मैं अपने तीन बच्चों के साथ जी लूँगी" यह कहकर वह अपने कमरे में बंद हो गई। उसका पति काहे को कूदता वह तो उसे डराने के लिए गीदड़भभकी दे रहा था।

रोहिणी ने अगले ही दिन एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया। अब बच्चे बड़े हो गये थे पढ़ने में होशियार थे। वहीं संध्या का पति भयंकर शराबी बन गया था बेटा भी आवारा ही निकला।

और उसकी प्रिय सखी कभी सड़कों पर चलते-चलते रोना शुरू कर देती,कभी हंसती कभी रोती। रोहिणी ने अपना दरवाजा बंद कर लिया और अंदर आ गई। सही कहती थी अम्मा ,"अपना कर्मफल सबको यहीं भुगतना पड़ता है और संध्या वहीं भुगत रही थी।


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