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Sudershan kumar sharma

Inspirational

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Sudershan kumar sharma

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कर्म या धर्म

कर्म या धर्म

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आईये आज का रूख कर्म और धर्म की और ले चलते हैं, वास्तव में देखा जाए मनुष्य की सही पहचान उसके कर्मों से आंकी जाती है, यह भी सच है कि कर्म ही हमारा भाग्य बनाते हैं तथा बिगाड़ते भी हैं लेकिन यह हम पर निर्भर करता है कि हमारा कर्म कैसा है तथा हमारे विचार कैसे हैं क्योंकी हमारे विचार ही हमारे कर्मों को जन्म देते हैं, आगे हमें सोचना है हमारा धर्म क्या कहता है, 

यह भी सच है, आप सफल हों या असफल यह सभी आपके कार्यों का परिणाम ही होगा, इसी को कर्मों का फल कहा गया है, असल में धर्म और कर्म का मतलब है कि हम ऐसा कार्य करें जिससे हमारे मन तथा मस्तिष्क को शान्ति मिले यानि जिससे, परिवार, समाज, राष्ट्र व स्वंय को लाभ मिले यह तभी संभव हो सकता है जब हम सेवा, दान यज्ञ और तन मन से परिपूर्ण हों, 

यहां। तक सेवा की बात है, हमें सबसे पहले अपने माता पिता, बहन भाई व अपने परिवार की रक्षा को परम सेवा कहा गया है तथा उसके वाद किसी अपंग, असहाय, व अन्य समाज वर्ग के गरीब परिवारों की तरफ भी ध्यान देना चाहिए, इसी को पुन्य कार्य भी कहा गया है यही हमारा कर्म व धर्म भी है, इसके साथ साथ सभी प्राणियों की पूर्ण भाव से रक्षा करना तथा अन्नदान, विद्दादान, अभयदान आदि को श्रेष्ठ माना गया है, इन सभी बातों में हमारे कर्म व धर्म आ जाते हैं, 

इसके साथ परिवार और रिश्ते हमारी सबसे बड़ी पुंजी है और जो इनके मुल्य को समझता है, वो सारे संसार पर विजेता बन सकता है, देखा जाए भगवान राम जी ने रिश्तों की मर्यादाओं को खूब सजा कर समझाया है, भाई से भाई का प्रेम हो या पिता के वचनों का पालन हो या त्याग की बात हो यह सब रामचरितमानस हमें सिखाती है, अन्त में यही कहुंगा की निष्काम कर्म से हमें सुख की प्राप्ति होती है तथा कामनायुक्त कर्म हमें दुख देता है, इसलिए हमें निष्काम कर्म करते रहना चाहिए क्योंकी कर्म ही हमारा परम धर्म है, 

सच कहा है, 

कर्म वो आईना है जो हमारा

असली चेहरा हमें दिखा देता है। 


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