कर्ज
कर्ज
नंदू को स्कूल पहुँचा कर लाली वहीं वट वृक्ष के नीचे बैठ कर गोटी खेलने लगी। यह उसका रोज का नियम था। भाई को स्कूल पहुँचाना और लाना उसका काम था। नंदू जैसे ही स्कूल से बाहर आता वह झट उसके कंधे से बैग उतार अपने कंधे पर डाल लेती। बैग कंधे पर रखते ही उसके चेहरे का भाव बदल जाता। सभी सोचते भाई का प्यार है पर बैग टांग कर उसे आत्मिक सुख मिलता। घर आकर बड़े प्यार से वह नंदू को अपने हाथों से खिलाती और उसे अपने पास बैठा कर होमवर्क करने को प्रेरित करती। उसकी प्रेरणा से नंदू क्लास में सदा आगे रहता।
नंदू के साथ वह खुद भी पढ़ने की कोशिश करती। थोड़ा बहुत सीख भी गई थी। कमली जब उसे पढ़ते देखती कान पकड़ कर खींच लाती काम करने को। एक दिन कमली ने उसे अपने बदले एक जगह काम पर रखवा दिया। आठ साल की बच्ची जिसे अभी अपना खाया बर्तन धोना नहीं आया था पूरे घर का काम करती। पर भाई को स्कूल पहुँचाने और लाने के समय पर हर दम तैयार रहती। वट वृक्ष के नीचे नियम से गोटी भी खेलती।
एक दिन स्कूल की एक शिक्षिका ने नंदू के बैग को टांगते हुए उसके चेहरे की चमक को देखा और बड़े प्यार से उसे बुला कर पूछा - “तुम भी पढ़ोगी ? हाँ कहते हुए वह शर्मा गई, फिर सकुचा कर कहा - “स्कूल आऊँगी तो काम कौन करेगा ?”
तब-तक कमली भी कहीं से वहाँ आ गई। उसका कान खींचते हुए चिल्लाई - “चल जल्दी, मलिकिनी के बाहर जाए ला हई।”
शिक्षिका श्वेता दीदी उसे देखते रह गई। अंदर से उनका मन कचोट गया। वो भी तो एक गरीब माँ की बेटी थी। बचपन में ही जिसके सर से पिता का साया उठ गया था। दूसरी कक्षा में पढ़ती थी। पिता के बाद कोई था तो सिर्फ अनपढ़ माँ। यदि उनकी माँ ने भी उसे कहीं काम पर भेज दिया होता तो आज …..दो बूंद आँसू आँखों से छलक गालों को गिला कर दिए। भींगे मन से आँसुओ को पोछ अपने बचपन में खो गई।
उन्हें बचपन के वो दिन याद आ गए जब वो गुमसुम सी मन्दिर के पास पेड़ के नीचे बैठी थी। पेट की क्षुधा से ज्यादा मन की क्षुधा थी। किसी भक्त ने प्रसाद के रूप में मिठाई का पूरा डब्बा ही उसकी गोद में डाल दिया। वह आश्चर्य से उसे देखने लगी। तभी रमा दीदी ने उससे कहा मेरे घर चलो खाना भी दूंगी और पढ़ाऊँगी भी। पढ़ोगी ? तत्क्षण माँ ने कहा - “काम ये नहीं, मैं कर दिया करूँगी।” और वो रमा दीदी के घर रहने लगी। रमा दीदी ने उससे कभी काम नहीं करवाया। उनकी बेटी की सहेली बन कर वह रहने लगी जब थोड़ी बड़ी हुई तो उसे इस तरह रमा दीदी के घर रहना बुरा लगने लगा। अब वह जबरदस्ती कुछ काम करना चाहती तो रमा दीदी कितने प्यार से कहती तुम्हारा अच्छा रिजल्ट ही तुम्हारा काम है। आज उसी पढ़ाई की बदौलत वह इतने अच्छे स्कूल की शिक्षिका बन गई। आज उसे भी शिक्षा दान कर किसी का कर्ज उतारना है। वह लपक कर लाली का हाथ थाम उसकी माँ से कही - “ आज से ये मेरा काम करेगी, सिर्फ मेरा काम। "