कॉलेज के दिन
कॉलेज के दिन
वो मेरे कॉलेज के दिन थे जब मौज मस्ती के अलावा किसी और चीज़ की कोई टेंशन ही नहीं थी। यारों के साथ घूमना फिरना हल्ला गुल्ला करना बस ये ही तो मेरी ज़िंदगी का हिस्सा था। वो जो दिन थे ना बहुत मस्त थे यारों हर जिम्मेदारी से दूर , वो लम्बे लम्बे टूर और वो बेहतरीन से सपने। क्या कोई दुनियां में ऐसा है जो अपनी कॉलेज लाइफ को भुला सकता है। मुझे तो आज तक ऐसा एक भी इंसान नहीं मिला जो अपने कॉलेज के दिनों को भुला पाया हो। कभी न कभी कभी सालों बाद भी अगर आंखें बंद करके देखें तो ऐसा लगता है की अब ये आंखें खुले ही ना और कैसे भी , कुछ भी करके मैं वापिस उसी दुनियां मैं चला जाऊं।
मैं भी ऐसे ही एक दिन अकेला बैठ सोच रहा था की अब ना जाने कब ये साँसे मुझे यूँही अकेला छोड़कर बिना बताये थम जाये। और ऐसे ही कुछ कुछ सोचता सोचता जैसे ही मैंने आंखें बंद की, मैं जा बैठा अपने कॉलेज के गेट पर ,
सिध्दार्थ : सर, प्लीज मुझे अंदर जाने दीजिये
गेट कीपर : सर, मैं आपको चार बार बोल चूका हूँ की मैं बिना आई कार्ड के अंदर आने नहीं दूंगा। प्रिंसिपल ने साफ़ कहा है आउटसाइडर कॉलेज मैं बहुत आने लगे है तो सबके आई कार्ड चेक करके ही अंदर आने दिया जायेगा।
सिध्दार्थ : पर सर आप मुझे अच्छी तरह जानते है मैं रोजाना तो आता हूँ मेरा टेस्ट है आज प्लीज अंदर आने दीजिये।
गेट कीपर : हाँ जानता हूँ पर बिना आई कार्ड मुझे नहीं पता की आप इसी कॉलेज के है या नहीं।
( और गेट कीपर, गेट पर ताला लगाकर चला गया। मैंने भी फिर जयदा देर रुक कर वहां समय बर्बाद करना ठीक नहीं समझा और घर की तरफ निकल लिया। )
( मैं बस स्टॉप की तरफ जा ही रहा था की पीछे से शीतल ने आवाज़ लगा दी। )
शीतल : सिध्दार्थ , सुनो अरे , सुनो , कहाँ जा रहे हो ?
( सिध्दार्थ आवाज़ सुनकर पीछे देखा )
सिध्दार्थ : शीतल , तुम भी लेट हो गई क्या ?, मैं घर वापस जा रहा हूँ। आज आई कार्ड चेक करके ही अंदर एंट्री हो रही है मेरा आई कार्ड घर रह गया। और गेट कीपर कोई बहाना नहीं सुन रहा। तुम लाइ हो आई कार्ड अपना ?
( शीतल आई कार्ड दिखाते हुए )
शीतल : हम्म , ये देखों ,
सिध्दार्थ : तो जाओ फिर तुम बहार घूम रही हो। तुम क्लास अटेंड करो।
शीतल : अरे मैं तो तुम्हारे लिए ही सोच रही थी तुम्हारा कुछ भला कर दूँ।
सिध्दार्थ: वो तू रहने दे तुझसे मेरा कुछ भला होने वाला नहीं है।
शीतल : पक्का , चल तेरी बात मान लेती हूँ रहने देती हूँ , मैंने सोचा की थोड़ी आईरा की ख़राब। .. पर रहने दे तुझे उससे क्या ? चल जा घर।
( सिध्दार्थ आईरा के चक्कर मैं रहता था उसे पसनद करता था उसका नाम सुनते ही सिध्दार्थ के चेहरे का रंग ही बदल गया और मुस्कुराने लगा। )
सिध्दार्थ : यार तुझे पता है ना , की तू ही मेरी सबसे अच्छी दोस्त है तूने ही मुझे फर्स्ट ईयर और स्केन्ड ईयर अपनी कॉपी से नकल करा के पास कराया है।
शीतल : अब तू शुरू हो गया न , मुझे मखन्न मत लगा।
सिध्दार्थ : तू मेरी बटर की दुकान है तुझे क्या मखन्न लगाना। बता न क्या बोल रही थी।
( शीतल को पता था की अब सिध्दार्थ उसकी सारी बात मानेगा क्योकि अब उसे आईरा के बारे में जानना है और सिध्दार्थ आईरा को बहुत पसंद करता है। और हुआ भी ऐसा ही सिध्दार्थ शीतल के पीछे ही पड़ गया और बार बार उससे प्रार्थना करने लगा। शीतल को भी कुछ देर बात सिध्दार्थ पर दया आ गई और उसने बता दिया। )
शीतल : अच्छा बाबा बताती हूँ। आईरा कल से कॉलेज आ रही है वो हमारे ही कॉलेज से फाइनल करेगी।
सिध्दार्थ : तो फिर गई क्यों थी ?
( बोलकर सोचने लगा यार अबकी बार तो उसे कह ही दूंगा पता लगा की फिर से कंही चली गई और मेरे दिल की बात दिल में रह जाये। )
शीतल : अरे यार कहाँ खो गए , वो आज नहीं कल आएगी। हाँ हाँ हाँ हाँ
सिध्दार्थ : हाँ तू हंस ले , जब तुझे किसी से प्यार होगा न तब पूछूंगा , तेरा हाल।
शीतल : अपना कोई चांस नहीं , ना मुझे इन खवाबों ख्यालों की दुनियां में रहना। यार मुझे तो समझ नहीं आता तुम लोग कैसे किसी का साल साल भर इंतज़ार करके , फिर से उसे उतनी ही सिद्दत से प्यार कर लेते हो ! पागल हो यार तुम।
सिध्दार्थ : इस पागलपन को ही प्यार कहते है प्यार कोई चॉकलेट नहीं जिसे खाओ तो अच्छी लगे और ना कहो तो उसके खाने की चाहत ही न हो। ये जो प्यार का अहसास है न ! दुनियां का सबसे बेहतरीन अहसास है। तुम्हे कभी प्यास लगी हो तो क्या पानी पीते वक़्त तुमने पानी की तृप्ति महसूस की है, तुम्हे कभी भूख लगी हो तो क्या खाने का पहला निवाला आँख बंद करके खाया।
शीतल : ( शीतल सिध्दार्थ को एक नज़र देखती है ) यार तुम अजीब आदमी हो तुम्हारी सोच तुम्हारी बाते अच्छी तो लगती है पर थोड़ी देर में ही बोर करने लगती है।
( और ज़ोर से हंस दी )
सिध्दार्थ : ( सिध्दार्थ गुस्से से चिड़ाते हुए ) हाँ, भगवान् करे तेरा आशिक़ कोई हो तो…. वो ऐसा.. हो तुझे सामने बिठाकर कर ऑफिस की बात करने वाला। हाँ हाँ हाँ
( थोड़ी देर ऐसे ही दोनों का छेड़ना चिड़ाना चलता रहा और फिर शीतल कॉलेज चली गई और सिध्दार्थ अपने घर , अगले दिन )
( अगले दिन के इंतज़ार में सिद्धार्थ की सारी रात करवट बदल बदल कर निकली। वो सोचता रहा की आईरा उसे भूल तो नहीं गई एक साल से जयदा हो गया, उसे गए हुए । पर उसने कहा था की वो वापस जरूर आएगी पर सिद्धार्थ को लगा था की ऐसे कौन वापिस आता है जाने के बाद, बाद में तो सब ही भूल जाते है । ऐसे ही कुछ अच्छा कुछ बुरा सोचते सोचते सिद्धार्थ की आँख लग गई और सुबह हो गई ।
सुबह होते ही सिद्धार्थ कॉलेज के लिए तैयार हुआ और कॉलेज जाने से पहले आज सिद्धार्थ ने सब कुछ चेक किया कभी आज भी कल तरह आई कार्ड न रह जाए। आज सिद्धार्थ बस में भी बिलकुल चुपचाप सा ही रहा। बस से उतरकर )
दिनकर : यार आज तुझे क्या हो गया है घर पर सब ठीक तो है न
सिद्धार्थ : क्यों मुझे क्या हुआ मैं तो बिलकुल ठीक हूँ
दिनकर : पता नहीं यार आज तू बहुत चुप चुप सा है कोई बात तो बता दे।
सिद्धार्थ : नहीं यार ऐसी कोई बात नहीं बस ऐसे ही।
( फिर दोनों बात करते करते कॉलेज आ गए और अपनी अपनी डेस्क पर बैठ गए। सिद्धार्थ आज पिछली डेस्क पर जाकर बैठा और आगे वाली डेस्क पर किसी को नहीं बैठने दिया सबको बोलता रहा ये खाली नहीं है क्लास शुरू हो गई आईरा नहीं आई। सिद्धार्थ ने शीतल की तरफ इशारे से पूछे। तभी शीतल ने गेट की तरफ इशारा किया )
आईरा : सर, मैं आई कम इन
( सिद्धार्थ , आईरा को देखता ही रह गया, उसे लग रहा था वो उसे बोल रहा है की आओ ये डेस्क मैंने तुम्हारे लिए ही खाली रखवाई है पर वो सोचता ही रहा बस उसे देखता ही रहा )
सर : आईरा , पहला दिन और आज भी लेट , कम इन
( आईरा ने खाली सीट देखकर सिद्धार्थ के आगे वाली डेस्क पर जा बैठी। और अपने बेग से किताब निकाल कर पढ़ने लगी। सिद्धार्थ भी किताब निकाल कर पढ़ने लगा सिद्धार्थ ने सोचा शायद वो सिद्धार्थ को भूल गई है उसे तो बस टीचर और टीचर को आईरा ही याद है। सिद्धार्थ के मन मैं शैतानी सूझी, सिद्धार्थ ने आईरा को पहले पेन की नोक चुभो दी, आईरा थोड़ी साइड होकर बैठ गई। सिद्धार्थ ने सोचा था की आईरा पलट कर देखेगी सिद्धार्थ को थोड़ा गुस्सा आया और उसने आईरा के बाल खींच दिए। आईरा डेस्क से उठ गई और )
सर : आईरा , क्या हुआ कुछ पूछना है तुम्हे।
आईरा : नहीं, सर
( और आईरा डेस्क पर बैठ गई थोड़ी देर तक सिद्धार्थ ऐसे ही आईरा को परेशान करता रहा और क्लास ख़तम हो गई टीचर के जाते ही आईरा ने पीछे मुड़कर देखा गुस्से से )
आईरा : तुम्हे मैं कब से देख रही हूँ तुम मुझे परेशान किये जा रहे हो अबकी बार कुछ ऐसा किया तो सीधे प्रिंसिपल के पास जाकर तुम्हारी शिकायत करूंगी। समझे तुम !
( सिद्धार्थ का तो जैसे चेहरे का रंग ही उतर गया और वो बिलकुल चुप बैठ गया। एक एक करके सभी क्लास ख़तम हो गई और सिद्धार्थ उठकर बाहर जाने लगा। उसने देखा की कोई और नहीं उठा। गेट पर से )
सिद्धार्थ : (सबकी तरफ देखकर) क्लास ख़तम हो गई जाना नहीं किसको भी ,
( कुछ एक मिनट के लिए सब सिद्धार्थ को देखते रहे और ज़ोर ज़ोर से हँसने लगे। सिद्धार्थ ने आईरा की तरफ देख आईरा दांतों में पेन लिए सिद्धार्थ को देखकर मुस्कुरा रही थी और तभी आईरा ने सिद्धार्थ को आँख मारी। सिद्धार्थ समझ गया आज इन सबने मिलकर मेरी क्लास ली है )
आईरा : ( सिद्धार्थ की तरफ बाहें पसारते हुए ) आई मिस यू सिद्धार्थ।
( सिद्धार्थ ने जल्दी से जाकर आईरा को गले लगा लिया। तभी सिद्धार्थ का फ़ोन बज गया और सिद्धार्थ की आँख जो की नम थी खुल गई ) )