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Nalini Mishra dwivedi

Inspirational

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Nalini Mishra dwivedi

Inspirational

कंगन

कंगन

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"छोटी भाभी अगर बेटा हुआ तो आप से भी कंगन ही लूगी। बता दे रहे है। बड़ी भाभी ने मुझे कंगन ही दिये थे। चीकू के होने पर।"

तब तक जेठानी भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहा "ये तो यहाँ का रिवाज है कि जब भी बेटा होता है तो ननद को कंगन ही देने होते है।" जेठानी जी तो खुश हो रही थी कि देखते है ये कंगन कैसे देती है।

नौवा महिना चढ़ गया गहना का, पर बच्चे से ज्यादा चिंता हो रही थी नेग की। जेठ जी की सरकारी नौकरी, ऊपर से पोस्ट भी बड़ी थी तो उन्हे कंगन देने में कोई दिक्कत नहीं हुई। जड़ाऊदार कंगन दिये थे सब लोगो ने खूब तारिफ की थी।

इधर केशव जी को बड़ी मुश्किल से प्राईवेट स्कूल में पढ़ाने को मिला था। सैलरी भी बस इतनी कि घर खर्च चल जाये। और कंगन कैसे बनवायेगे.... इसी सोच में डूबी थी। कमरे में केशव आया पर गहना इस कदर सोच में डूबी थी कि उसे एहसास नहीं हुआ। "क्या हुआ गहना इतना क्या सोच रही हो?" केशव की आवाज़ से गहना की तन्द्रा टुटती है। "कुछ नहीं बस ऐसे ही।" गहना जाने लगती है। केशव हाथ पकड़ कर अपने पास बैठाता है। कहता है "मेरी गहना इतनी उदास अच्छी नहीं लगती और तू उदास रहेगी तो होने वाले बच्चे पर भी असर पड़ेगा..!!"

"अब बता क्या बात है?" 

"वो सब लोग ननद को नेग में सोने के कंगन देते है? अभी हमारे पास इतना बजट नहीं कि सोने के कंगन दे सकूँ। लोग क्या कहेगे कि अपनी ननद को एक कंगन ना दे सकी।"

"परेशान ना हो ज़रुरी नहीं कि तुम अभी कंगन दो बाद में दे देना।"

"पर..... सब लोग तुरंत ही देते है। ऐसा करती हूँ कि मैं अपना कंगन दे देती हूँ। जो माँ ने दिये थे शादी में।"

"उस कंगन से तो तुम्हारी यादें जुड़ी हुई है ना आखिर माँ की आखिरी निशानी जो थी।"

यादें तो दिल में बसी है.."बेजान चीज़ो से क्या मोह" अगर मैं अपना कंगन दे देती हूँ तो कम से कम बनवाना नहीं पड़ेगा। और पैसे हो जायेगे तो मैं तब बनवा लूंगी।"

समय वो भी आ गया जब गहना ने एक बेटे को जन्म दिया। जेठानी भी आँख गड़ाये बैठी थी कि देखू ये गहना कंगन कहाँ से देती है...

गहना ने अपने माँ के कंगन को आखिरी बार प्यार से देखा और अपनी ननद के हाथों पर रख कर कहा "दीदी ये लो अपने नेग का कंगन...।"

"भाभी आपने ये पुराना कंगन दिया है मुझे नये कंगन चाहिए...."

"दीदी अभी तो मेरे पास यही कंगन है।"

"झूठ क्यूँ बोल रही भाभी?? पिछले महीने जो कंगन लाई थी आप मुझे वही चाहिए।" 

"पर..... वो तो सोने के नहीं थे? "

"तो मैने कब कहा था कि मुझे सोने के चाहिए। भाभी माना कि ये नेग लोक व्यवहार है पर मैं नहीं मानती ऐसे रिवाज़ों को जो जबरदस्ती पूरा करना रहे।

उस दिन मैने आपकी और भईया की बातें सुन ली थी..... ये कंगन आपकी माँ के थे और अब आपके है तो इसपर बस आपका अधिकार है। और आप मुझे वही कंगन दे दीजिए।"

गहना के आँखो से खुशी आँसू छलकने लगे। रीता के इस व्यवहार से जिससे वो परिचित ही नहीं थी, आज रीता की बातें गहना का मन जीत लिया था और उसने रीता को गले लगा लिया था।


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