कमली

कमली

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कमली ....कमली पुकार-पुकार के बच्चे उसके पीछे हाथ में पत्थर लिए दौड़ रहे थे। अपने फूले पेट को आँचल से ढके वह इधर से उधर बेबस हिरनी की तरह भाग रही थी। अचानक एक ड्योढ़ी का द्वार खुला..... एक संभ्रांत महिला बाहर निकली वह सभी बच्चों को हड़काते हुए गुस्से से बोली, "शर्म नहीं आती किसी बेबस लाचार को सताते हुए।"

कमली तीव्रता से ड्योड़ी के भीतर घुस गई। महिला ने उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बेटे को पानी का गिलास लाने को बोला। वह घबराई सी उसकी और देख रही थी। महिला पानी का गिलास उसे थमाते हुए बोली, "डरो मत बेटी, यहाँ तुम्हें कोई खतरा नहीं, तुम सुरक्षित हो।"

बात करते-करते ध्यान उसके पेट पर जाकर अटक गया था। महिला समझ गई थी कि वह गर्भवती है। झट से भीतर जाकर उसके लिए भोजन ले आई। न जाने कितने दिनों से उसने भर पेट खाना नहीं खाया था, वह तेजी से एक एक निवाला गटकने लगी। महिला शांति से उसकी और निहारती रही, कमली के चेहरे पर तृप्ति के भाव टपक रहे थे।

अचानक वह महिला का हाथ पकड़ मासूम बच्चे की तरह शिकायत करने लगी, “देखो न, देखो न,...उसने मुझे निकाल दिया, मुझे भीतर नहीं आने देता तुम उसे भी डाँटो न..।"

महिला ने प्रश्न सूचक नजरों से देखते हुए उसे पूछा, "कहाँ रहती हो?"

वह गली के नुक्कड़ की तरफ इशारा करते हुए बोली, "सामने मंदिर में।"

महिला ने एक ठंडी आह भरी अब उसे कुछ और पूछने की आवश्यकता न रही थी।


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