तकदीर।

तकदीर।

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आज फिर जब वह बाहर निकली तो सामने कचरे का ढेर देख उसका माथा भन्ना गया। मोबाइल निकालकर तुरंत नगर पालिका को फोन किया तभी उसकी नजर एक छोटे से बच्चे पर पड़ी जो डिब्बों में से केक की बची खुची खुरचन निकाल कर खा रहा था । कल ही पड़ोस के बच्चे का जन्मदिन था अनेकों मेहमान आए थे ।खाने में कई तरह के स्वादिष्ट व्यंजन बने थे, इतना खाया नहीं गया था जितना फेंका गया था। अन्न की बेशुमार बरबादी हुई थी, कचरे का ढे़र चिल्ला चिल्ला कर इसकी गवाही दे रहा था। पर इस कचरे के ढे़र से कचरा बीनते व खाना खोजते इस बच्चे को देखकर मेघा का मन द्रवित हो उठा ...समाज में कितना दुर्भाव, एक यह जो इससे पेट भरने का जुगाड़ तलाश रहा है, एक वह जिसने केक काटा अनगिनत तोहॆॆॆॆफें पाएं... कितने भूखें लोगों के निवालों को सड़क पर कचरे में फेंक दिया.

वह लड़का कभी कुछ खाने को मिल जाता तो झट से उसे मुँह में डालता फिर अगले ही पल खाली गत्तें के डिब्बों को जोड़कर इकट्ठा करने लगता शायद अगले दो दिन की रोटी का कुछ जुगाड़ हो जाए। मेघा का मन भीतर तक कराह उठा था ।कब हमारा समाज विकसित होगा आखिर कब ...कब हम लोग इन नन्हें बच्चों को इनके हिस्से का बचपन व सुविधाएं मुहैया करवा पाएंगे?

मेघा के कदम अनजाने में लड़के की ओर बढ़ चले थे ।उसके सर पर प्यार से हाथ फेरा , पर्स खोलकर झट से बिस्किट्स निकाल उसकी तरफ बढ़ा दिए ।वह तेजी से बिस्किट खाने लगा .

'घर में कौन-कौन है'?

वह तेजी से मुँह चलाते हुए बोला"माँ ,बाबा तीन बहने"।

आज बाबा ने बहुत पी ली थी।वह काम पर नहीं गया माँ की तबीयत भी खराब है सो जल्दी-जल्दी यह गत्ते के डिब्बे बेचकर घर जाना चाहता हूँ ... ताकि यह खाना लेकर जल्दी से घर पहुंच जाऊं ...तो सब खा लेंगे ।उसने एक ही साँस में सब उगल दिया था।

मेघा मौन रहकर कभी उसकी अनकही जिम्मेदारियों को समझने का प्रयास कर रही थी कभी नेताओं के झूठे वादों को।


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