अंतरद्वंद
अंतरद्वंद
नन्ही सुबह सुबह उठ कर माँ के गृहकार्य में तीव्रता से हाथ बंटा रही थी। छोटे भाई को नहला कर साफ सुथरे कपड़े पहना दिए माँ के संग जल्दी-जल्दी बरतन साफ किए फिर भीतर जाकर घर को बुहार लिया तब तक माँ ने भी रसोई में रोटी सब्जी बनाकर डिब्बे में भर दी। जल्दी से पूरा घर समेट कर दोनों तैयार हो गई। माँ ने बेटे को अपनी पुरानी साड़ी में लपेटकर कमर पर बांध लिया, कड़ाही को सर पर रख नन्ही को आवाज़ दी और तेज़ कदमों के साथ घर से बाहर की ओर निकल पड़ी। नन्ही भी एक पुराने से बस्ते में दो पुरानी किताबें रख स्कूल बैग की तरह लटका कर, हाथ में खाने की पोटली लिए कुछ इस तरह बाहर निकली मानो स्कूल जाने के लिए तैयार हो गई हो अभी कोई बस आएगी और उसमें बैठकर रवाना हो जाएगी। उसका यह रोज़ का नियम था।वास्तविकता से वह और उसकी माँ दोनों ही परिचित थी कि वह किसी स्कूल नहीं जा रही बल्कि वह तो माँ के संग मजदूरी में भाई की देखभाल के लिए जा रही थी! रास्ते भर छोटे-छोटे बच्चों को उछलते कूदते बसों में बैठते माता-पिता की उंगली थामे हसरत भरी निगाहों से देखती रहती, फिर सोचती इनमें और उसमें अंतर क्या है? पर उसकी नन्ही बुद्धि कोई सटीक उत्तर ना दे पाती!
माँ तेज़ कदमों से चल रह थी वरना ठेकेदार की डाँट सुननी पड़ेगी। नन्ही ने भी अपनी चाल कुछ तेज़ कर दी थी तभी पीछे से एक आवाज़ आई, “रुको बेटा रुको”, नन्ही ने पीछे मुड़कर देखा एक भली औरत उसकी ओर तेज़ कदमों से बढ़ रही थी वह ठिठक कर रुक गई ....करीब आते हुए वह औरत फिर से बोली,"कौन से स्कूल में पढ़ती हो? " नन्ही कुछ न बोलकर माँ की तरफ देखने लगी थी तब तक तीनों पास पास आ चुकी थी। उसने माँ की तरफ मुड़ते हुए पूछा "स्कूल नहीं भेजती इसे क्या ?" माँ ने भी सवालिया निगाहों से उसकी तरफ देखा और बोली ,"अगर इसे स्कूल भेज दूँ तो छोटे की देखभाल कौन करेगा, अगर मैं इसके साथ रहूँगी तो मजदूरी कौन करेगा ? तीनों का पेट पालने के लिए काम करना जरूरी है ना बस इसीलिए" ....कहकर वह चुप हो गई!
उस ने फिर पूछा, "पिताजी कहां है इनके?" माँ ने ठण्ड़ी आह भरते हुए कहा,"वह नहीं रहे" "पिछले साल ही मजदूरी करते हुए बिल्डिंग की छत से गिर पड़े और मौत हो गई।"
वह औरत सिहर उठी थी, "तुम्हें बदले में कुछ नहीं मिला क्या?"
माँ को कुछ समझ नहीं आया था बोली," देर हो रही है ...ठेकेदार चिल्लाएगा इसलिए अब हमें माफ़ करें"।
वह भली और
त साथ चलते बोली "तुम कहांँ रहती हो? मैं एक समाज सेविका हूं कल तुम्हारे घर मिलने आऊंगी" कहकर नाम पता पूछ कर वापिस मुड़ गई!
अगले रोज़ शाम को मजदूरी से लौटकर माँ ने स्नान किया अभी कुछ पल सुस्ताने बैठी ही थी कि तभी भली औरत आवाज़ देकर भीतर चली आई! माँ ने उसके लिए खाट बिछाई और बैठने को कहा नन्ही झट से एक गिलास में पानी भर लाई। उस औरत का नाम निर्मला था वह समाज सुधारक थी और पिछले कई दिन से नन्ही को स्कूल जाते बच्चों को हसरत से भरे हुए देखती रहती थी। धीरे धीरे उसने माँ से सब बातें विस्तार से सुनी और कुछ कागज़ों पर माँ से अंगूठा लगवाया और चल दी जाते जाते उसने नन्ही से पूछा, "स्कूल जाओगी" नन्ही का मन खुशी से खिल उठा मुस्कुरा के बोली, "जी मैं भी बड़ी बस में स्कुल जाऊंगी,"उसने सर पर हाथ रखा मुस्कुराई और चल दी!'
निर्मला जी को गए हुए कई दिन हो चुके थे हर शाम नन्ही की आँखें दरवाज़े की ओर लगी रहती शायद वह फिर वापस आए, माँ भी उसकी आँखों की भाषा मौन रहकर पढ़ती रहती!
अचानक एक दिन एक गाड़ी दरवाज़े के सामने रुकी उसमें निर्मला जी बाहर आए आते ही माँ के हाथ में कुछ रुपए एक स्कूल बैग यूनिफॉर्म रख कर बोली कल से नन्ही स्कूल जाएगी और तुम्हारे लिए भी मैंने एक घर में काम का इंतज़ाम किया है, तुम उनके संग सर्वेंट क्वार्टर में रह सकती हो।
माँ का चेहरा खुशी से खिल उठा था उसने हां में सिर हिला दिया और गाड़ी में बैठकर बंगला देखने चले गई ...सब कुछ बहुत अच्छा था मालिक मालकिन और उनकी नन्ही की उम्र की छोटी बच्ची। शीघ्र ही वह अपना सारा सामान समेट कर उन संग रहने चले गई थी। अगली सुबह खुशी से तैयार होकर स्कूल के लिए निकली एक बड़ी सी बस में बैठ उसे टा-टा करते हुए पास से गुज़र गई। माँ ने झटपट से नन्ही को तैयार किया उसे पास के सरकारी स्कूल में छोड़ा और वापिस काम पर लौट आई।
दोपहर को जब नन्ही लौटी तो माँ ने उसे गले लगाते हुए पूछा, "अब तो तुम खुश हो ना "? नन्ही उदास होकर बोली,"माँ मुझे भी खुशी की तरह बड़ी बस में बड़े स्कूल में जाना है" ...माँ का हृदय तड़प उठा उसे छाती से लगाते हुए बोली, "बेटा जो मिल गया है उसे ही अपना बड़ा भाग समझ" ... नन्ही के मन में अंतर्द्वंद्व सा मचा था। पर वह मासूम इस अंतर को समझ न पा रही थी।