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Priyanka Gupta

Inspirational

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Priyanka Gupta

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कमजोर करती तुलना

कमजोर करती तुलना

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रागिनी की आँखों से नींद कोसों दूर थी बगल में राकेश एकदम निष्फिक्र होकर सो रहे थे। रागिनी करवटें लेते हुए सोने की लाख कोशिश कर रही थी। आँखें बंद करके उसने कई बार गायत्री मन्त्र भी बोला लेकिन नींद ने तो आज उससे पक्की वाली कुट्टी कर ली थी। रागिनी की बेचैनी बेवजह भी नहीं थी वह अपनी आँखों से जो देख पा रही थी वह राकेश के तो ख़्वाबों में भी दूर-दूर तक नहीं था। 

वह अपने बेटे ऋषभ की आँखों में एक दर्द को महसूस कर रही थी। ऋषभ का आत्मविश्वास दिनोंदिन कम होता जा रहा था। आजकल ऋषभ लोगों से बचने की कोशिश करता था। किसी से बात करते हुए झिझकता था। राकेश तो जब-तब उसको डांटता रहता था। राकेश को लगता था कि जब ऋषभ को बार-बार उसकी कमियाँ दिखायेगा तब ही वह बेहतर कर पायेगा। 

ऋषभ के फर्स्ट ईयर में जब थोड़े से नंबर कम आये थे राकेश उसे कोसने लगे थे। 

"तू तो है ही नालायक। किसी काम का नहीं है। अब इतने कम नंबर आये हैं तेरे। सरकारी नौकरी की तो तैयारी तुझसे होनी नहीं। निजी नौकरी कौन देगा? भैया के दोनों बेटों को देख कितनी तरक्की कर ली है।" राकेश ने फिर से ऋषभ की तुलना अपने बड़े भाई के बच्चों से कर डाली थी। 

राकेश के बड़े भाई महेश के दोनों बेटे बहुराष्ट्रीय कंपनी में अच्छे पैकेज पर कार्य कर रहे थे। राकेश का बेटा ऋषभ पढ़ाई-लिखाई में औसत ही था। बड़े भाइयों की अच्छी नौकरी कारण उस बेचारे की तो शामत ही आ गयी थी। ऋषभ की तुलना जब देखो तब दोनों बड़े भाइयों से होती थी। घर आने वाले मेहमान भी यही कहते थे कि "इसके तो दोनों बड़े भाई इतने काबिल हैं तो यह भी कुछ बड़ा करेगा।"

तब भी राकेश सबके सामने उसकी बेइज्जती कर देता था और कहता था कि "यह तो चाय की थड़ी पर काम करेगा या अपने भाइयों की चाकरी करेगा।"

राकेश को लगता था कि यह चुभती हुई बातें ऋषभ को आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगी। 

रागिनी ने कहीं पर पढ़ा था कि अफ्रीका में एक जनजाति जब किसी पेड़ को काटना चाहती है तो वे लोग नियम से सुबह शाम पेड़ के पास जाते हैं और उसे कोसते हैं। लोगों की नकारात्मक बातें सुनकर हरा-भरा पेड़ धीरे-धीरे सूखकर मर जाता है। उसके बाद कुल्हाड़ी का हल्का सा वार भी एक विशालकाय पेड़ को काट देता है। कहीं ऋषभ भी उस पेड़ की तरह टूट न जाए बिखर न जाए। उसे एक डर यह भी सताता था कि ऋषभ कहीं सफलता प्राप्त करने के लिए कोई शॉर्टकट न अपना ले। उसने राकेश को कई बार समझाने की कोशिश भी की थी लेकिन राकेश समझते ही नहीं थे। 

उस दिन राकेश की डाँट के बाद ऋषभ उसके पास आया था और कहा था कि "मम्मी मुझसे ग्रेजुएशन नहीं हो पा रही है। मैं पढाई छोड़ देता हूँ।"

"क्यों नहीं हो पा रही? पापा की बातों को दिल पर मत लगाया कर वह तो ऐसे ही बोल देते हैं।" ऋषभ की बातों को सुनकर रागिनी सन्न रह गयी थी। 

"मम्मी मैं बड़े भाइयों जितना काबिल नहीं हूँ। मेरी वजह से आपको और पापा को कितनी शर्मिंदगी उठानी पड़ती है।" ऋषभ ने कहा। 

"नहीं बेटा प्रत्येक बच्चा अलग होता है। सफलता का एक मात्र अर्थ अच्छा पैकेज प्राप्त करना नहीं है। तुम जो भी काम करो पूरे मन से करो अपना सर्वोत्तम दो तब भी सफल ही माने जाओगे।" रागिनी ने उस दिन ऋषभ को बड़ी मुश्किल से समझाया था। 

लेकिन आज के वाकिये ने रागिनी की नींद उड़ा दी थी। वह जब सोने के लिए अपने कमरे में आ रही थी तब उसने ऋषभ को किसी से बात करते हुए सुना था कि "आपके पैसे एक सप्ताह में लौटा दूँगा। मेरे मम्मी-पापा को कुछ मत बताना।"

रागिनी को लग रहा था कि "कहीं उसका डर सच तो नहीं हो गया। कहीं ऋषभ गलत संगत में तो नहीं पड़ गया। राकेश को बताया तो वो बिना सोचे-समझे उसे डाँटने लग जाएँगे।"


"मुझे खुद ही ऋषभ से बात करनी होगी।" सोच-विचार करते-करते कब रागिनी नींद के आगोश में चली गयी थी। सुबह तेज़ी से चीख़ते अलार्म से उसकी नींद खुल गयी। उसने फ़टाफ़ट घर के काम निपटाए और राकेश को नाश्ता करवाकर लंच बॉक्स देकर ऑफिस के लिए विदा कर दिया। 

उसने आज ऋषभ को घर पर ही यह कहकर रोक लिया था कि "मेरे साथ बाज़ार चलना कुछ काम है।"

रागिनी ऋषभ के साथ बाज़ार आ गयी थी। रागिनी ने घर के लिए कुछ छोटी-मोटी ख़रीददारी की और उसके बाद ऋषभ के साथ कॉफ़ी शॉप में घुस गयी। ऋषभ को मेनू कार्ड देते हुए रागिनी ने कहा कि "चल मेरे लिए भी तू ही कोई अच्छी सी कॉफ़ी आर्डर कर दे।"

ऋषभ ने कॉफ़ी आर्डर कर दी थी। रागिनी ऋषभ से इधर-उधर की बातें करती रही। फिर उसने ऋषभ से पूछा "बेटा तुने किसी से पैसे तो उधार नहीं लिए? अभी बता देगा तो मैं तेरी मदद कर दूँगी।"

अपनी माँ का अपनत्व पाकर परेशान ऋषभ फूट-फूट कर रोने लगा। उसने बताया कि "मम्मी मैंने सट्टा लगाया था। सोचा था कि उससे अच्छी कमाई करूंगा तो पापा खुश हो जायेंगे। 10,000 /- रूपये उधार लिए थे।"

"बेटा तुझे कितनी बार बोला है कि सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता। सभी बच्चे एक जैसे नहीं होते। तू जैसा भी है मुझे बहुत प्रिय है। तुझे किसी और के जैसा बनने या करने की कतई जरूरत नहीं है। तू जो भी करे चलकर करे उसी में तेरी मम्मी खुश रहेगी। आज तेरे पापा से भी साफ़-साफ़ बात कर लूँगी। ये ले रूपये आगे से ऐसा कुछ मत करना।" रागिनी ने ऐसा कहते हुए ऋषभ को रूपये निकाल कर दिए। 

शाम को रागिनी ने राकेश को पूरी घटना बताते हुए कहा "आप अब तो समझो। हमारा बच्चा किसी बड़ी मुसीबत में भी फँस सकता था। हर व्यक्ति अपने आप में विशिष्ट होता है। अगर मछली की तुलना चिड़िया से करोगे तो उड़ने की क्षमता न होने के कारण मछली को ही कमतर आँकोगे। केवल ज़्यादा पैसे कमाना ही सफलता का मानदंड नहीं होता।"

"मुझे पहले ही तुम्हारी बात समझ जानी चाहिए थी।" राकेश ने कहा।


2-3 साल बाद ऋषभ ने अपना छोटा-मोटा व्यापार शुरू किया. वह बहुत तो नहीं लेकिन एक सामान्य ज़िन्दगी जीने लायक कमा लेता था. जहाँ बड़े भाई अपनी नौकरियों के चलते दूसरे बड़े शहरों में रह रहे थे. वहीँ ऋषभ रागिनी और राकेश के साथ था.

" सबको सब कुछ मिले जरूरी नहीं. किसी को आसमान मिलता है और किसी को ज़मीन. ऋषभ चाहे कम कमा रहा है, लेकिन हमारे साथ है.", रागिनी राकेश को अक्सर मुस्कराकर कहती है.

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