कम्बल
कम्बल


अभय के हाथों में कम्बलों का पैकेट देख कर आदिती खुशी से चहकते हुए, वाह अभय सर्दी ने दस्तक देनी शुरू की है और आप हमारे कहें बिना ही हम सबके लिए कंबल ले आए हो। अब तो माँ जी भी हमारे साथ रहेंगी, अत: एक कंबल उनके लिए भी चाहिए।
गायत्री भी कम्बलों के पैकेट की तरफ ललचाई नज़रों से देखते हुए, बेटा यह हल्का गुलाबी रंग का कम्बल मुझे बड़ा पसंद आ रहा है, यह तो तू मुझे ही दे दें। तभी आदिती, माँ जी अब आप कोई बच्ची थोड़ी ना हो, यह तो प्रतिमा के बिस्तर पर खिलेगा। आर्यन, प्रतिमा, आदिती और अभय सभी ने अपनी-अपनी पसंद के कंबल छाँट लिए। तभी अभय अलमारी में से पुराना कम्बल निकाल कर उसे पकड़ाते हुए लो माँ जी आप यह रख लो।
काँपते हाथों से कंबल लेते हुए गायत्री लगभग चौंतीस साल पीछे जाते हुए, अरे! यह तो वहीं कंबल है जो अभय के पिताजी ने उसके जन्मदिन पर उसे तोहफे में दिया था।
लेकिन मातृ वात्सल्य वश उसने यह कंबल अपनी बजाए, अभय को ओढ़ा दिया। गोरे-चिट्टे, गोल-मटोल अभय की खूबसूरती को कंबल का गुलाबी रंग और भी निखार देता। वह उसे कंबल में सुलाते हुए, दो-तीन बार नज़र बट्टू का काला टीका लगा देती थी। विक्रम कई बार उसकी, इस कुर्बानी के लिए उसे झिड़क देते थे। मैं इतने प्यार से यह कंबल तुम्हारे लिए लाया था और तुमने इसके मल-मूत्र की परवाह किए बिना, इसे ओढ़ा दिया।
तभी अभय की आवाज़ से चौंकते हुए, माँ जी अब आप अपने बलगम-खाँसी को तो कंट्रोल कर नहीं पाते हो, इतने महंगे कंबल खराब हो जाएंगे, आपको पता है ड्राई क्लीनिंग कितनी महंगी है । तभी खिसियानी हँसी हँसते हुए गायत्री, हाँ बेटा ! पता है और कंबल को सीने से लगा लेती है।