कलम की गुरु
कलम की गुरु
लिखनें का शौक़ मुझे बचपन से था मगर मेरी कलम की परिपक्वता के पीछे जिनका हाथ और साहस हमें दिनों दिन और भी लेखन की गहराई में ले जा रही है वो मेरे जीवन की पहली महिला दोस्त है।
संयोग था अचानक उनसे मेरी मुलाक़ात हुई कुछ मेरी रचनाएँ पढ़ी वो मेरी डायरी से और तारीफ़ की ऐसी पुल बांधी कि हम अपनी कलम से खुद के भाव में बहने लगा..!
शौक़ उसे भी था लिखनें का जिसका हमें कुछ पता नहीं था मगर दोस्ती हुई जब दिल की हम दोनों की लेखनी एक दूसरे को प्रभावित करनें लगी ।
आज वह भी मेरे साथ रहती है हमेशा जबकि मेरी नहीं है ।
कलम की दोस्ती है अपनी एक दूसरे को पढ़ना , सुझाव देना रोज की दिनचर्या है अपनी..!
गजब की शायर है वो लेकिन मुझे हमेशा दो कदम आगे बताकर मेरा हमेशा उत्साह वर्धन करती रहती है ।
उसी के प्रेम का नतीजा है कि कलम मेरी आज तेजी से दौड़ रही है ।
हमनें उससे कह भी दिया हूँ कि ज़िन्दगी में गर् मुझे कभी कोई क़ामयाबी हासिल हुई तो हम सारा श्रेय आपको देंगे
हँसती है तैयार भी है मगर क़िस्मत के हाथों बंधे हम भी तो हैं ।
जो भी हो उसे मैं अपनी कलम की पहली गुरु मानता हूँ और अपना पहला प्यार भी !
