किसके भाग्य में क्या बदा है?
किसके भाग्य में क्या बदा है?
इन दिनों कुमुद के मन की थाह लेना मुश्किल था।अब कुमुद उदास थी तो थी....कोई उनसे उनके दुख की बात पूछता तब वह कभी नहीं बताती थी क्योंकि....कुमुदिनी जी ने तो अपने जीवन का यह मूलमंत्र ही बना लिया था कि ...
" दिल की बात दिल में रखना "
इसलिए बस सोने का उपक्रम करने लगी।उन्हें चुप देखकर और गंभीर देखकर रश्मि जी ने भी कह ही दिया ....
" भाभी ! बाकी सारी जो भी बातें हैं , इन सब का खुलासा कल होगा। मुन्ना से भी पूछेंगे और सब मिलकर बैठेंगे और सारी बातें खुलकर करेंगे ।तभी इस समस्या का निदान संभव है।आप फिकर मत करो और सोने की कोशिश करो !"
रश्मि जी की बात सुनकर कुमुदिनी जी थोड़ी सशंकित होकर बोली "वह तो ठीक है जीजी ! लेकिन आप और अशोक जी जरा ध्यान से ही बात करना क्योंकि मुझे लगता है कि....मुन्ना भी थोड़ा-थोड़ा प्राची से डरता है ।"
"पता नहीं मुन्ना को पूरी बात पता है कि नहीं...? लेकिन कुछ कुछ तो वह भी समझता ही होगा और चुप रह जाता होगा। क्योंकि उसे भी लगता होगा कि... अब तो मां से सारा काम तो निकल ही चुका है। अब माँ दुनिया से जाए तो जाए। उसे क्या फर्क पड़नेवाला है....? मकान तो वह अपने नाम करा ही चुका है। उसके पिता के कई सारे एल. आई. सी. वगैरह में कई पॉलिसी थी । कुछ एफ. डी. भी मैच्योर हुए होंगे वह सारे पैसे भी कैसे ना कैसे करके मुन्ना अपने नाम करा ही चुका है ।और जीजी! उनके जीते जी मैंने कभी भी कोई कागज पत्तर नहीं देखा। वह मुझे कितना कहते थे कि..."
" मेरे बैंक वैँक की ... रूपये पैसे की पूरी खबर रखा करो। कभी जो मैं नहीं रहा तो तुम्हारे काम आएगा !"पर...तब तो मैं उनके मुंह पर हाथ रखकर कहती कि.....
" ऐसी बात मत कीजिये । देख लीजियेगा...मैं आपसे पहले जाउंगी। और फिर ... मैं इतराकर कहती थी कि... ' मुझे अपने राजा बेटे पर बहुत भरोसा है । वह हमारे साथ कभी बुरा ना तो कर सकता है ना बुरा होते देख सकता है। आप बिल्कुल निश्चिंत ऱहिए।"
और...मैं तो उनसे हमेशा कहती रहती थी कि मैं आपसे पहले जाऊंगी....तो...आपके भैया हंस पड़ते थे। तब मुझे क्या पता था कि
"मेरे भाग्य में क्या बदा है ...? और हमारा साथ यहीं तक था। हमें क्या पता...कि होनी को क्या होना है...?"अब मैं ही मूर्ख बन गई हूं। अब जो मुन्ना और बहू कहते हैं... वह सब मानना पड़ता हैक्योंकि.... मुझे खुद नहीं पता कि उन्होंने कितने पैसे किस बैंक में और कहां कहां जमा कर रखे थे...? अब सब इनके नाम हो गया है ... तो मैं क्या कर सकती हूं? तभी तो जो रूखी सूखी पकड़ा देती है बहू वही खाकर गुजारा करना पड़ता है!"
वैसे तो रश्मि जी उनकी बात और सुनना चाहती थी। लेकिन तभी उन्होंने बरामदे में किसी की पदचाप सुन ली थी और उन्हें लगने लगा था कि शायद प्राची या प्रमोद में से कोई उनकी बात सुन रहा है।इसलिए उन्होंने थोड़ी जोर से ही कहा था कि अगर कोई बाहर है तो यह बात सुन ले।
" अब बहुत बातें हो चुकी है भाभी ! अब हम लोग कल बात करेंगे। अब सोने की कोशिश करो
आपकी बात सुनकर स्थिति से अनजान कुमुदिनी जी बोली...
" जीजी...और जो आप लोगों ने बहू को कुछ ज्यादा कठोर बातें कह दीं तो ..आप लोग जब चले जाओगे तो आपके पीछे वह मुझे और भी तंग करेगी। चाहे कुछ भी हो .... मुझे रहना तो उनके साथ ही है। अगर आपने कुछ ज़्यादा कह दिया तो कल को हो सकता है दोनों मुझ पर और भी अत्याचार करने लगें। इसलिए कुछ सोच समझकर और मुलायमियत से ही बात करना !"
" ठीक है ... भाभी! बस ... सब कुछ आप मुझ पर छोड़ दो। हम खुलकर सारी बातें करेंगे और बहू और मुन्ना को तो बताना ही पड़ेगा कि वह गलत कर रहे हैं!"अब आप सोने की कोशिश करो !"
पर कुमुदिनी जी की आंखों में नींद नहीं थी। पता नहीं कल क्या होने वाला था....?
कहीं जो जीजी ने मुन्ना और बहू को कुछ ज़्यादा कह दिया तो कहीं आमने सामने वाली लड़ाई ना हो जाए। आज तक वह इस मोहल्ले में बहुत इज्जत के साथ रहती हुई आई थी। अब ऐसी कोई बेज्जती उनसे तो बर्दाश्त नहीं होगी।
क्रमशः
शेष अगले भाग में
