किसी नजर को तेरा इंतजार...
किसी नजर को तेरा इंतजार...
चोख पुरावो, माटी रंगावो
मेरे पिया घर आवेंगे.....
राधिका को सारी सहेलियां दुल्हन की तरह सजा रही थी, तभी राधिका की मां साधना आती है, “अरे जल्दी करो! बारात आ गयी है और इसे काला नजर का टीका लगा देना कान के पीछे, मेरी लाडो, बहुत ही प्यारी लग रही है।” और दरवाजा बंद करती हुई चली गई। सब कहने लगी, “राधिका आज तो जीजाजी देखते रह जाएंगे।” राधिका शरमा रही थी। ढोलक बज रही थी, चहल पहल में तभी राधिका के पिता की आवाज आई, “अरे जाओ ठंडा शरबत ले जाओ। नाश्ता सब लगवाओ। गरम कचौडी उतरवाना। गुलाब जामुन भी गरमागरम हो।”
तभी साधना राधिका की माँ दौडी आई, “जी सब इंतजाम हो गया?”साधना ने पति से पूछा।
“हाँ साधना।”
थोडी देर बाद साधना, राधिका वाले कमरे में पहुँची और पसीने पसीने हो रही थी। “क्या हुआ मां? घबरा क्यों रही हो? अरे कुछ नहीं बिटिया, वह कोठरी की चाबी नहीं मिल रही।”
“ओहो यह रखी तो है माँ, मुझे दी थी आपने।”
”हाँ हाँ बिटिया।”गहरी साँस लेते हुए कहा।
राधिका माँ को देख मुस्कुरा दी, “रूको माँ ? अपनी सहेली से बोली चंदा माँ को कुछ खिला।”
”हां हां पर अभी लाई,” चंदा बोली।
“नहीं बहुत काम है,” और साधना चाबी उठाकर कोठरी की तरफ गई और दुसरे कमरे में समधन खडी थी।कुछ रुपए निकालकर अपनी समधन के हाथ में देती हुई बोली, "अचानक आपने मांग कर दी बस दस हजार ही है इक्कीस तो नहीं हो पायेगें।”
“तब तो ऐसी बात नहीं हुई थी,” साधना ने कहा ,"हमने तो आपको पहले ही बता दिया था कि हमारे पास और कुछ देने को नहीं है, सिवाय एक सर्वगुण संपन्न बेटी के अलावा।"
”ऐसा तो सब कहते है। इकलौती लडकी है आपकी! देखिए लड़का भी तो हम हीरा दे रहे है आपको!” और साधना की समधन अपनी पर्स में रखते हुए चली गई।
साधना की आंखों में आंसू थे क्योंकि उन्होंने इतनी मुश्किल से शादी के लिए सारा कुछ इंतजाम किया था, रसम होती है उसके लिए उसने इकट्ठे करके रखे।
पूरी शादी में साधना की समधन कुछ ना कुछ, तीखे प्रहार राधिका की मां पर करती रही। बोली, “हमने तो लड़की की सुंदरता देखकर शादी कर ली। नहीं तो, लाइन लगी थी हमारे लड़के को लड़कियों की।” साधना के दिमाग में समधन के शब्द गुंज रहे थे की, “और आपने तो गरीबी का वास्ता देकर पल्ला झाड़ लिया देने से। और हमारे सूरज को बहुत ज्यादा राधिका पसंद भी थी। नहीं तो, लाखों की शादी हो रही थी। सब चुप थे बस अच्छे से शादी हो जाए।”
साधना के पिता ने समधी जी को एक तरफ ले जाते हुए कहा कि, “जी आपकी अचानक मांग से, हम घबरा गए और हम पर बस इतना ही था बस हमारी लड़की को कभी कोई परेशानी ना हो।”
राधिका के ससूर, “ठीक है, ठीक है,” कहते हुए मुड़ गए। पर राधिका के पिता को अच्छे से महसूस हो गया था कि लालची है। राधिका की चिंता उनके चेहरे पर बहुत उदासी छा गई थी।
राधिका अपनी ससुराल चली गई। पग फेरे के लौट के आने के लिए राधिका का भाई लेने गया और साथ में लेकर आया। राधिका का पति सूरज ने, साधना के माता-पिता से और सांत्वना दी कि राधिका हमारे साथ बहुत खुश रहेगी। सूरज के व्यवहार से साधना और साधना के पति को बहुत सुकून मिला और यह सोच कर कि लड़का अच्छा है। सबके कपड़े देकर विदा कर दिया था।
जैसे ही दोनो घर पहुँचे तभी सूरज की मां आई, “आ गए तुम लोग, अच्छे से खातिर करी या नहीं?”
”खाना बहुत अच्छा बना था और यह आपके लिए साड़ी और कपड़े मिठाई दी हैं!” सूरज ने कपडे देते हुए कहा।
“बस! साड़ी और कपड़े!” मुँह बनाते हुए कहा।
राधिका की सास गुस्से में जाने क्या क्या बोले जा रही थी कि, “गरीबों के घर पर आयी है।”
सूरज बिल्कुल चुप खड़ा था और सूरज के पिता भी चुप करने को बोलने लगे अपनी पत्नी को।
राधिका आँखों में आँसु लिए यह देखकर हैरान थी, कि जो सूरज उसके माता-पिता को इतनी सांत्वना दे रहा था उसके घर। वह आज एक शब्द भी नहीं बोल रहा। वो बोलना चाह रही थी पर राधिका की मां ने बहुत समझा दिया था कि ससुराल वाले कुछ भी कहे तो तू चुप ही रहना और रिश्ता निभाने की कोशिश करना। नयी गृहस्थी में चुप रहकर ही अपना बनाया जाता है, जवाब देने से बातें बिगडने मे देर नही लगती।इसलिए राधिका चुप ही रही अंदर ही अंदर सुबक रही थी।
जब भी राधिका की सास राधिका को देखती तभी उसकी मायके की बुराई या तानो से शुरुआत होती। राधिका चुपचाप, बातें सुनकर घुटती रहती।
अगले महीने संक्रांति राधिका की सास ने उसे अच्छे से समझा दिया था, सबको कपड़े और चांदी की पायल मुझे और सूरज की बहन को आनी ही चाहिए और बाकी बहुत बड़ी लिस्ट हाथ में थमा दी थी।
राधिका को समझ नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां से यह सब कैसे कहेगी? उसने सूरज से अलग से कहा कि, “सुनिये! मां के पास बिल्कुल भी पैसे नहीं है। अब वह यह सब कैसे करेंगे?” सूरज के पास कोई जवाब नहीं था य। उसने कहा कि, “पता नहीं रीति-रिवाजों का, पर मां ने कहा है तो जरूरी होगा सामान।”
संक्रांत पर सूरज, राधिका को लेकर उसके घर गया। यह उनके घर का रिवाज था कि मायके जाकर संक्रांत का सामान आता था। राधिका के माता-पिता ने अपनी जी जान लगाकर अपने से बढ़कर सामान इकट्ठा किया था। लोटा, बर्तन, मठरी, मिठाई और न जाने क्या-क्या कपड़े। पर जैसे ही राधिका अपनी ससुराल पहुंची तो सामान देखकर सूरज की मां का गुस्सा देखकर को घबरा गई थी।
वो लालची प्रवृत्ति की इंसान थी।कम मिलने की वजह से, बुराइयां उसके माता-पिता की कर रही थी। उनके एक लड़की होते हुए भी, दूसरी लड़की की परिवार को इतना दुखी कर रही थी। जब राधिका आई कमरे में तब समझाया की बात को नजरअंदाज करो।
राधिका की सबसे बुराई करती ऐसी बहू पल्ले पड़ी है, कुछ नहीं आता। क्या सिखाया है इसके घर वालों ने ? राधिका मन उदास हो जाता। पड़ोस में एक शादी में खूब अच्छा दहेज आया और राधिका को वह सब सुनना पड़ा जो वह सुनना नहीं चाहती थी। राधिका ने पलट कर जवाब दिया, “मम्मी जी आपको तो बता दिया था की हम दहेज नहीं दे सकते।”
खूब गुस्सा किया सास ने। रात को फोन करके राधिका के पिता को बुला लिया। अगले दिन जब सूरज और उसके पिता आफिस गये। तब घबराहट मेंनराधिका के पिता सुबह ही पहुँच गये।
“संभालो अपनी लड़की को, एक तो खाली हाथ आई मायके से और जवाब देती है।” राधिका की सास का तेवर देखकर राधिका के माता-पिता की पैरों तले जमीन खिसक गई।
हाथ जोड़कर खड़े हुए थे राधिका के पिता। “जी बच्ची है बहन जी, हमने तो अपने से ज्यादा किया, संक्रांति पर भी उधार लेकर आपके लिए पायल और सारा सामान जो आपने लिखवाया था।”
राधिका की सास कहने लगी, “पड़ोस में लाखों की शादी हुई है और हमारी किस्मत फूटी थी जो हमने तुम्हारे घर से शादी की। पर हमें क्या पता था कि तुम गरीबी के मारे हो...” और कहती हुई कमरे से बाहर निकल गई और बोली, “तब तक मत भेजना जब तक कुछ पैसा इकट्ठा ना हो जाए। हर त्यौहारों पर देने लायक।”
राधिका ने रो-रो के बिल्कुल अपनी आंखें सूजा ली थी। राधिका के मां-बाप बहुत दुखी थे और बहुत परेशान थे। घर आके उनको ना नींद आ रही थी, कि उनकी नई नवेली दुल्हन जो बन कर गई थी वह आज वापस घर में आ गई है। राधिका की सास ने जब अपने घर जाकर, सबको बताया सूरज और उसके पिता ने कहा कि, “यह तुमने क्या किया? ऐसा नही करना चाहिए था।” सूरज के पिता भी गुस्से से बोले, “मुझे लगा तुम बदल जाओगी। कितनी खुशकिस्मती थी हमारी की राधिका आई, उसके माता-पिता ने बढिया संस्कार दिए है उसे।”
तभी सूरज गुस्से में कमरे से बाहर निकल गया पर वह कुछ अपनी मां से बोला नहीं और अपनी ससुराल फोन करके कह दिया कि मुझे माफ कर दिजिए मेरी माँ की तरफ से। मैं राधिका को लेने आ रहा हूं।
राधिका के माता-पिता की खुशी का ठिकाना नहीं था। वह यही तो चाहते थे कि उनकी लड़की का घर बस जाए। राधिका भी खुशी से फूली नहीं समा रही थी। इंतजार में थी कि सूरज आएगा। राधिका के मन में वह गाना चल रहा था,
"चोख पुरावो माटी रंगावो
मेरे पिया घर आवेंगे"
उनके सूरज ने आकर वादा किया कि आज के बाद से राधिका इस तरह कभी नहीं आएगी और राधिका को लेकर सूरज अपने घर पहुंच गया। राधिका की सास का दोनों को देख कर बुरा हाल था गुस्से में, “तेरी हिम्मत कैसे हुई इस को अपने घर लाने की।”
”राधिका पत्नी है .” सूरज बोला।
”सूरज, तू बोलने भी लगा है! आज तक एक आवाज नहीं निकलती थी और आज इसने सिखा भी दिया बोलना तुझे!”
”इसने कुछ नहीं कहा मां, पर मैंने वचन लिया था इसको खुश रखने का और इसके मां-बाप गरीब जरूर है पर दिल के बहुत अमीर और अगर आप इसे अच्छे से नहीं रखोगे तो मैं दूसरे शहर में अपना तबादला करा लूंगा। मैं आपसे और पापा से दूर होना नहीं चाहता, आपको व्यवहार थोड़ा बदलना होगा।”
सूरज के पिता बोले, “अगर हमारी बेटी के साथ उसके ससुराल वाले ऐसे करें तो आपको कैसा लगेगा?”
राधिका की सास नजरें नीची करके खडी थी, पति और बेटे की बातें शायद समझ आ गयी थी। धीरे से जाकर राधिका को गले लगा लिया।ये कहकर, पूरी कोशिश करूँगी बदलने की!
मौलिक कहानी
अंशु शर्मा