किसान अन्न उगाता है
किसान अन्न उगाता है
कृष्ण थका हारा खेत से लौटा तो हाथ मुँह धोकर आकर सीधा चूल्हे के पास बैठ गया । पत्नी रोटी सेक रही थी । "आज ठंड ज्यादा ही है , रोटी खाकर रजाई में बैठ जाओ ", पत्नी ने कहा । कृष्ण ने जवाब न दिया तो पत्नी ने पूछा ,"क्या हुआ तबीयत तो ठीक है न ? " जवान बेटे की मौत ने दोनों को तोड़ दिया था ।अब तो दोनों बस यूँ ही शाम में एक दूसरे से दुख सुख बतिया लेते थे। "आज जो हुआ वो अच्छा नहीं हुआ।"
"पर हुआ क्या?," पत्नी ने पूछा। कृष्ण ने बताया," जो भी हुआ, पर बहुत बुरा हुआ। अपने देश के, अपने तिरंगे झंडे को झुका देना सही नहीं है। किसान हूँ पर ....देश के झंडे का अपमान नहीं होना चाहिए । माना आंदोलन चल रहा है ,विद्रोह के बहुत सारे तरीके हैं पर तिरंगे झंडे का अपमान ,अपने देश का अपमान ,हर नागरिक का अपमान .....वह भी किसान द्वारा , जो अन्न पैदा करता है ,सारे देश को जीवन देता है ....उसी देश का अपमान" और कहते - कहते कृष्ण का गला भर आया और रो पड़ा।