किन्नर
किन्नर


हमारे समाज में किन्नरों की क्या मन:दशा है, ये किसी से छिपी नहीं है।वे कितने दुखी हैं, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल है।एक नव -दम्पति के यहां नये मेहमान के आने की खुशी देखते ही बनती थी। कुछ समय पश्चात् उनके यहां एक बेटी का जन्म हुआ।सब बड़े ही खुश थे। नाचना गाना हुआ ,खाना पीना भी बहुत सुन्दर ढंग से हुआ। नेग न्योछावर भी दिया गया । परंपरा के मुताबिक किन्नर भी आए , उन्हें भी यथोचित भोजन पानी और उपहार दिए गए। किन्नरों ने भी दिल से आशीर्वाद दिया।
धीरे-धीरे समय बीत गया, अब उनके यहां दूसरे बच्चे के आने का इंतजार था।वो समय भी आ गया। दूसरी बेटी का जन्म हुआ।इस बार भी सब ख़ुश थे और पहले की तरह खूब खुशियां मनाई गईं। कोई कहता बेटी लक्ष्मी का रूप है, तो कोई कहता बेटी सरस्वती का रूप है। तो कोई कहता जो हुआ अच्छा हुआ मां-बेटी दोनों ठीक तो हैं न, भगवान की कृपा दृष्टि है।
खैर, समय बीता तीसरी बेटी का जन्म हुआ। पर यह क्या!!इस बार तो खुशियां जैसे पंख लगा कर उड़ गईं थीं। किसी के चेहरे पर
हंसी नहीं थी।सब मायूस हो गये थे।हर बार की तरह इस बार भी किन्नर आए उन्होंने नाचना गाना शुरू किया,पर यह क्या?इस बार किन्नरों को बहुत ही आश्चर्य हुआ कि बच्चों के पिता जी ने उन्हें वहां से भाग जाने के लिए कहा और बोले कि यहां कोई उत्सव नहीं मनाया जाएगा।न ही किसी को नेग न्योछावर दिया जाएगा।
पूछने पर पता चला कि तीसरी बेटी के जन्म पर सब दुखी हैं।तब किन्नरों ने कहा कि बेटी हुई है न कोई किन्नर तो नहीं?जो न ये घर बसा सकते हैं,न किसी और का। बेटी तो कम-से-कम विदा हो कर किसी का घर बसाएगी, एक नई पहचान बनाएगी।
तब बच्चों के पिता जी को बात समझ में आई और वह सोच में पड़ गए कि सच ही तो है, अगर ये बच्चा किन्नर होता तो क्या होता?तुरंत उन्होंने उत्सव मनाने का प्रबंध किया। सभी को यथायोग्य उपहार भी दिए गए।अब किन्नरों को नेग न्योछावर देने की बारी आई तो किन्नरों ने यह कह कर वापस कर दिया कियह भेंट बच्चों की मौसी की तरफ़ से उपहार है जो उसके भविष्य में काम आएगा, और वे वहां से चले गए।