लघुकथा : पिंजरे का पंछी
लघुकथा : पिंजरे का पंछी
यह कहानी उस पंछी की है जिसको पिंजरे में कैद कर दिया गया था। बेचारा पंछी एक कैदी बन कर रह गया था। अपने परिवार से दूर, अपने मित्रों से दूर। एक समय था जब वह अपने परिवार और सगे संबंधियों के साथ यहां से वहां भ्रमणशील था और जो चाहता खाता जहां चाहता जाता किन्तु आज वह पिंजरे में कैद हो गया है। उसकी आजादी छिन गई थी।
पिंजरा तो आखिर पिंजरा ही होता है चाहे वह कितना ही बड़ा हो या फिर सोने से बना हो। पंछी ने खाना पीना छोड़ दिया, उसका स्वास्थ्य भी गिरने लगा था।
खैर, अब तो उसने मन-ही-मन सोचा कि अब और नहीं, उसने अपनी सोच को सकारात्मक दिशा निर्देश दिया और उस जीवन को स्वीकार किया। धीरे-धीरे उसने मालिक और उसके परिवार वालों से मित्रता कर लिया। खाना पीना शुरू कर दिया, उसके स्वास्थ्य में सुधार भी होने लगा था और अब तो वह रोज़ एक नई बात सीखने लगा।