किनारों पर वापसी
किनारों पर वापसी
"इतनी सारी पुस्तकें एक साथ एक बार में आपने निर्गत(issue/इशु) करवा लिया ?"
पुस्तकालय में अध्ययनरत इशिका का ध्यान बरबस नब्बे-सौ पुस्तकों के ढ़ेर के साथ लगभग पाँच-छ साल की बच्ची अपने अभिभावक के साथ खड़ी ने आकर्षित किया तो इशिका का सवाल पूछना स्वाभाविक हो गया।
"जी ! मेरी बेटी को पढ़ना बहुत पसंद है साथ में विद्यालय से लगभग पाँच-छ: महीने की छुट्टियों के लिए गृह कार्य मिला हुआ है।"
"क्या पाँच-छ: महीनों के लिए भी इतनी पुस्तकें कुछ ज्यादा नहीं है ?" अचंभित थी इशिका।
"अरे ! नहीं... बिलकुल ज्यादा नहीं है।
इतनी पुस्तकें तो यह एक महीने में पढ़ लेती है। विद्यालय से गृहकार्य मिला है, दो पुस्तकों को लेकर समुन्दर के किनारे बैठकर पढ़ें और छुट्टी खत्म होने के बाद कक्षा में पूरे अनुभव को सबसे साझा करें। पुस्तकालय में इंट्री फ्री और पुस्तकें मुफ्त में मिल जाने से हम अभिभावकों को बहुत सुविधा हो जाती है।"
"ग्रेट ! काश भारत में भी यह लहर चलती और बचपन को असामयिक नष्ट होने से बचाया जा सकता।" इशिका कुछ करने की योजना सोच रही थी जब वह भारत वापसी करेगी।