किनारा
किनारा
धृति चटर्जी, एक सादा सिंपल लड़की, बिल्कुल सनातन किस्म के सौन्दर्य की धनी अपनी एक गुमशुदा जिंदगी में बिल्कुल घुली सी, अलग थलग सी लगभग 24 साल पुरानी एक संस्था की व्यवस्थापिका थी।
लेकिन आज वही धृति एकदम सजी धजी, कॉटन की साड़ी पहने, मैचिंग की लिपिस्टिक लगाए, कुछ जल्दी ही स्कूल के मेन गेट पर खड़ी है। सुबह के सात बजे हैं,बाबूराम के अलावा और कोई भी गेट पर नहीं है, बाबूराम संस्था का पुराना चपरासी है, जो दस सालों से संस्था का नौकर है।
बाबूराम ! ओ बाबूराम।
धृति ने बाबूराम को आवाज़ दी।
आया मैडम साहब, क्या बात है, बाबूराम ने झुके लहजे में हाथ जोड़ कर कहा।
कल जो नाम लिखे थे उनके हिसाब से सीटिंग प्लान का एक मौखिक अभ्यास तुमने कर लिया ना ?आखिर हमारी इज्जत का सवाल है, विद्यालय में आज एक टीम आ रही है, काफी बड़ी कंपनी ने देश के कुछेक चुनिंदा विद्यालयों में से हमारे इस छोटे से विद्यालय का चुनाव किया है।
धृति आज काफी सजग थी, स्कूल के साथ अनुबंध अपने तरह का एक अलग प्रयोग था, पर आज की बदलती शिक्षा में जरुरी भी बहुत ज्यादा था,इसलिए भी शायद बाबूराम जैसे कम शिक्षित लोग कुछ गलती ना कर दें, धृति ने आदेश ना सही पर चेतावनी नुमा पुनरावृत्ति करनी उचित समझी।
बाबूराम ऑफिस के भीतर चला गया, और रजिस्टर फिर से देख आया। धृति अब सन्तुष्ट थी और आत्मविश्वास बाबूराम में भी पल्लवित हो गया।
अब बाबूराम मुख्य द्वार की रेलिंग से लगे गार्डन की सफाई करने का कहकर चल दिया।
धृति ने अपना फोन निकालकर एक नंबर मिलाया, नंबर स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर विभू सर का था, जो आज की मीटिंग में कुछ सामान वगैरह लाने वाले थे, धृति अच्छे से बस कन्फर्म कर रही थी कि कहीं वो भूल तो नहीं गए हैं,विभू को भूलने की बीमारी थी।
विभू से बात करके धृति अब आश्वस्त है।अब बस कुछ देर से मीटिंग शुरू हो जायेगी।
दसवीं कक्षा के विद्यार्थियों को कम्प्यूटर के माध्यम से कनेक्ट करके स्कूल स्तर पर आईं अाई टी जैसी परीक्षाओं की बुनियादी तैयारी कराने के लिए राजस्थान की एक बड़ी कंपनी ने सॉफ्टवेयर आधारित पाठ्यक्रम का निर्माण किया, जिसको स्कूल स्तर पर कनेक्ट किया जा सकता है, और इसके अनुप्रयोग से एक छत के नीचे सभी वर्गों का भला भी हो सकता है, क्यूंकि हर एक विद्यार्थी आगे की मंहगी कोचिंग सहज नहीं ले सकता, महगांई और फीस बहुत बड़ा कारक है जो विश्राम लाती है।
मशहूर युवा उद्योगपति मिलिंद गौतम जो भारत के सॉफ्टवेयर उद्योग का ध्रुव तारा हैं,उनकी सॉफ्टवेयर कंपनी दिशा दर्शन नाम से इस सॉफ्टवेयर का विकास कर रही है,मिलिंद गौतम ने महज 24 साल की छोटी सी उम्र में "सीनियर प्रोग्रामर क्लब अमेरिका" में अपना संबोधन दिया, और समूचे अमेरिकी समाज को एक भारतीय के आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर अपरिमित ज्ञान से चौंका दिया, उनके बनाए इस सॉफ्टवेयर का उद्देश्य भी जन सेवा करना है,जो उनका और उनकी कंपनी का मुख्य उद्देश्य है,अपने विषद ज्ञान को एक कंपनी की शक्ल देने वाले मिलिंद गौतम उन सैकड़ों लोगों के लिए प्रेरणा है, जो सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में कुछ बड़ा करना चाहते हैं।क्योंकि एक बीस साल के लड़के ने वो कर लिया जो शायद लोग साठ सत्तर सालों में कर सकते हैं, मिलिंद गौतम की बनाई कंपनी सेमकॉम सर्विसेज, भारत की अग्रणी कंपनी तो थी, साथ ही साथ भारत से बाहर के देशों में सर्वाधिक मुनाफा कमाने वाली कंपनी थी।भारत के भीतर एक साल में सर्वाधिक सात कंपनियों का अधिग्रहण करने का रिकार्ड भी सेम - कॉम सर्विसेज ने बनाया था, इन सब के भीतर मिलिंद की अचूक सूझ बूझ थी, जो अपना जलवा बिखेरती चली गई।
असम के एक छोटे से जिले दीफु में संचालित करमा देवी विद्यालय का चुनाव ऑनलाइन इवेंट के तहत किया गया, जो समूचे विद्यालय प्रशासन के लिए खुशी की बात थी।
धृति मूल रूप से बंगाली थी,बरसों पहले धृति के पूर्वज रोजी रोटी की तलाश में चाय के बागान लगाने असम आए और यहीं बस गए,धृति की उम्र 27 साल थी,यूं तो काफी अच्छे अच्छे रिश्ते धृति के जीवन में आए,पर बेचारी मांगलिक थी, और भारत में मंगल से एक स्वाभाविक भय धृति के रूढ़िवादी परिवार को भी है,इसलिए बेचारी अभी भी कुंवारी थी और नौकरी के साथ साथ पीएचडी पूरी कर रही थी।
स्कूल के भीतर अब चहल पहल बढ़ गई, स्टाफ मेम्बर्स और बच्चे आने शुरू हो गए, धृति ने घड़ी में देखा तो 8 बजने में एक मिनट कम था।
धृति भी ऑफिस की तरफ चल दी।
कुछ देर में चमचमाती मर्सिडीज कारों का काफिला स्कूल परिसर में चला आया।
सेमकॉम की तरफ से टीम के लीडर राहुल रस्तोगी ने गाड़ी से उतरकर सभी का अभिवादन किया और एक एक कर के सभी सदस्य ऑफिस की तरफ चले गए, ड्राइवर्स गाडियों के पास ही रहे।
लगभग 3 घंटे बाद -
स्कूल प्रशासन समेत सभी सदस्य सेमकॉम् के सदस्यों को बाहर तक छोड़ने आए, सभी लोग प्रफुल्लित थे,मीटिंग समाप्त थी,टीम लीड राहुल रस्तोगी अगले महीने तक पूरे कैंपस की कनेक्टिविटी करने का वचन देकर चले गए।
सबकुछ ठीक रहा, और इस आयोजन की सफ़लता सबसे ज्यादा धृति के लिए उपलब्धियों भरी थी,धृति को विशेष ट्रेनिंग के लिए नई दिल्ली बुलाया गया, जो सभी के लिए खुशी की बात थी,अपनी संस्था की गौरव बन चुकी धृति बहुत खुश थी, सभी उसे बधाईयां दे रहे थे।
धृति भी उनको प्रतिउत्तर दे रही थी।
काम ख़त्म करके धृति ऑटो में बैठकर अपने घर की ओर चल पड़ी,धृति स्कूल से कुछ दूर रहती थी।
कुछ दिनों बाद -
धृति ने अपना सामान पैक किया, और दिल्ली रवाना हो गई,एक छोटे से शहर की लड़की एक नए शहर में पहुंच कर थोड़ी सी असहज थी पर विशेष ट्रेनिंग के लिए ये जरूरी भी था।
स्थान - पुरानी दिल्ली (कंपनी के रीजनल ऑफिस में )
कंपनी के ऑफिस पहुंची धृति को कुछ देर प्रतिक्षा हेतु कहा गया,धृति वहीं एक सोफे पर बाहर बैठ गई।ऑफिस बहुत ही सादा था बिल्कुल भी नहीं लगता था कि ये कोई मल्टीनेशनल कंपनी है,लेकिन कंपनी तड़क भड़क नापसंद थी और अति सजावटी भोंडेपन से भी कोसों दूर थी।
कंपनी की एमडी पापोरी तालुकदार के निजी सचिव राजेश औलिया ने धृति को अंदर जाने के लिए कहा,मैडम केबिन में पहुंच चुकी थीं।
धृति और एमडी मैडम की बैठक लगभग आधे घंटे चली,संयोग से एमडी मैडम भी गुवाहाटी की थीं,जो दिफू से ज्यादा दूर नहीं था, पर धृति गुवाहाटी भी कम ही आयी गई, पापोरि और धृति दोस्त बन गईं।
कंपनी की तरफ से ट्रेनिंग एरिया में बने कमरों में बाहर से आने वाले लोगों के ठहरने की व्यवस्था थी,लेकिन अपनी विशेष दोस्त बन चुकी धृति को एमडी मैडम ने अपने बंगले में रहने का ऑफर दे दिया।
धृति की खुशी और भी बढ़ गई,धृति अब खुश थी।
वैसे तो मैडम बहुत रईस थीं पर एकदम अकेली थीं,अपनी दुनिया की दो अकेली लड़कियां अपने अपने भविष्य को बनाने में बाहरी दुनिया से कम ही जुड़ती थीं,दो एक जैसे इंसान संयोग से मिल गए, और कुछ देर बाद मैडम और धृति कार से उनके बंगले की तरफ चल दिए।
क्रमशः*