किनारा भाग - २
किनारा भाग - २
यह कहानी का दूसरा भाग है,कहानी के प्रथम भाग को अवश्य पढ़ें ताकि कहानी को पूरा समझा जा सके )
Recap- पिछले अंक में आपने पढ़ा कि धृति पर मेहरबान एमडी मैडम अपने बंगले की ओर धृति के साथ रवाना हो गईं,अब आगे ।
ऑफिस से लगभग 15 मिनट की दूरी तय करके एमडी मैडम और धृति उनके बंगले तक पहुंच गईं।दरवाज़े पर मौजूद एक सांवले से आदमी ने गाड़ी देखकर दरवाज़ा खोल दिया,गाड़ी अंदर पार्क हो चुकी थी,धृति और मैडम उतर कर अंदर की ओर चली गईं।
मैडम का बंगला एक आलीशान महल था,आधुनिक महल में धृति को थोड़ा सा असहज लगा, धृति एक छोटे घर की रहने वाली लड़की थी लेकिन मैडम ने ग्राउंड फ्लोर पर एक रूम धृति को दे दिया,और कहा कि अपना सामान वगैरह जमा लो,और तैयार होकर मिलो कुछ देर से, मैडम ऊपरी मंजिल पर रहती थी, नीचे पूरा हिस्सा वैसे भी खाली पड़ा था,उसी से जुड़े दो सर्वेंट क्वार्टर थे ।
भवानी, अरे ओ भवानी !
थोड़ी ही देर में मैडम की आवाज़ सुनकर, वो ही मेन गेट पर मिला आदमी दोनों के सामने था।
जी मैडम,भवानी ने कहा।
भवानी, तुम गाड़ी से सामान निकाल कर इनके कमरे में जमा दो,ये अब से यहीं रहेंगी, ये मेरी ऑफिस की दोस्त धृति मैडम हैं जो असम से अाई हुई हैं।
कौन सा कमरा ?भवानी ने पूछा?
जो तुम्हारे क्वॉर्टर से कुछ बगल में है वो कमरा,मैडम ने भवानी को कहा;
जी, कहकर भवानी सामान लेने बाहर की तरफ चला गया,मैडम धृति की तरफ देखने लगी,धृति मैडम को धन्यवाद कैसे कहे,उसके कातर नेत्र मैडम को एक बड़े दिल वाली दोस्त के तरह देख रहे थे, पर मौन थे, मैडम उसे समझ गई,और थोड़ा नजदीक जाके बोली, देखो धृति मैंने कोई अहसान नहीं किया,एक तो तुम मेरे शहर से नजदीक के ज़िले से बाहर इतना दूर नए राज्य में अाई हो,और दूसरा तुम सेमकोम की मेहमान हो,ये मैंने अपनी कंपनी के लिए किया,मुझे अपनी कंपनी से बेहद प्यार है,और मैं अपनी कंपनी को समर्पित होकर ही सुखी रहूंगी जानती हूं, इसलिए तुम बिल्कुल भी मन में मत रखो,की तुम्हे मेरे अहसानों की कीमत चुकानी है,तुम अपने मकसद को पकड़ो और मैं मेरे,देखो धृति मुझे साफ़ साफ़ कहना अच्छा लगा,और हां किसी भी चीज की जरूरत, जब तक यहां हो,मुझे कहना,संकोच नहीं करना।मैडम ने अपनी बात पूरी की।
लगातार मैडम को बड़े गौर से सुन रही धृति,थोड़ी भावनात्मक होती भी तो इससे पहले ही मैडम को समझ चुकी है,मैडम बड़े दिल की मालिक होने के साथ साथ प्रोफेशनल है,जो शायद ड्रामे की जगह सच्चाई पसंद है।
धृति अब क्या बोले, बस बेचारी उनकी तरफ देखकर मुस्कुरा दी,वैसे तो एमडी मैडम, धृति से एकाध ही साल बड़ी होंगी, लगभग 28 साल की,पर उनकी लंबाई धृति से कुछ ज्यादा और रंग थोड़ा सा उजला था,मैडम एक खूबसूरत लड़की थीं,जो आधुनिक लगती थीं,धृति थोड़ी सी मोटी थीं,पर धृति की बनावट आकर्षक और गोल मटोल प्यारी थी।
धृति ने बड़े संकोच से डरते डरते पूछा कि में आपको दीदी कह सकती हूं?
तुम मुझे मेरे नाम से बुला सकती हो!
पापोरी ने कहा।
ओके, कहकर धृति उसी कमरे की तरफ चली गई, जहां भवानी सामान व्यवस्थित कर रहा था।
मैडम भी ऊपर की ओर चली गईं ।।
लगभग दो घंटे बाद -
समय - शाम के सात बजे -
मैडम जी !मैडम जी !!
आज खाने में क्या बनाऊं ?
एक अपरिचित महिला का शोर धृति को बाहर खींच लाया!
सामने तीस पैंतीस साल की एक महिला साड़ी ब्लाउज़ पहने खड़ी थी,धृति को देखकर वो थोड़ा सा चौंक गई,की तभी मैडम नीचे उतर आती हैं ।
ये, मेरी नौकरानी कलियां है, धृति।
मैडम ने कलियां का परिचय धृति से कराया,और कलियां को धृति से मिलवाया और बता दिया कि अब से एक लोगो का खाना और बनेगा, कलियां धृति को गौर से देखने लगी ।
मैडम ने कलियां को खाने से आज छुट्टी दे दी,क्यूंकि वो बाहर खिलाने के बहाने धृति के साथ घूमना चाहती थीं,मैडम एक बड़ी खिलाड़ी थीं,जो दिल बहलाने से तोड़ने तक माहिर थीं,शायद यही एक वजह थी कि वो अपनी उम्र से आगे की समझ को पार कर गईं थीं।
कलियां, भवानी की लुगाई थी,दोनों मियां बीवी वहीं बंगले पर रहते थे,मैडम की सेवा करते थे,आज धृति को कलियां और मैडम दो लोग मिल गए,अनजान शहर में परमेश्वर धृति की मदद कर रहा था।
धृति तुम तैयार हो जाओ,आधे घंटे में बाहर की सैर करने चलेंगे।और पैसों की चिंता तुम मत करना,धृति के अंदर एक चमक आ गई,एमडी मैडम कुछ ज्यादा ही मेहरबान थीं।
ओके, रहूंगी कहकर, धृति और मैडम अपने अपने कमरों में। चली गईं।
कलियां किचन में चली गई,और साफ सफाई करने लगी।
कलियां और भवानी, की कोई संतान नहीं थी, कलियां कभी कभार दुखी रहती थी,पर अच्छे दिल की कलियां अपनी मालकिन से अपार स्नेह रखने वाली एक ग्रामीण स्त्री थी,जो अपने मर्द भवानी सहित बंगले की सेफ्टी वाल्व थे,हर काम की हुनरमंद कलियां बिना किसी खास शिक्षा के, हर व्यंजन चाहे विदेशी क्यों ना हो,बनाना जानती थी,उसे गाने का भी शौक था,मैडम कभी कभार कलियां के पास बैठती थीं, या कलियां उनके पैर दबाने आती तब भी मीठा मीठा गुनगुनाती थी,"दिलबर मेरे कब तक मुझे ऐसे ही तड़पाओगे",ये गाना कलियां को बहुत पसंद था,कलियां को मैडम कभी कभी शकीरा और मैडोना के एल्बम सुनाती तो वो उसके बोल अपनी टूटी फूटी बोली में गुनगुनाने लगती,तब मैडम देर तक ठहाके लगाती,और कालियां को दुबारा ना गाने का कहती,कलियां को लोकगीत भी अच्छे से गाना आता था,कलियां मैडम की एक पुरानी और वफादार साथी थी,जो बंगले पर 3 सालों से थी,पहले भवानी बस बंगले पर रहता था, फिर उसकी शादी हो जाने से कलियां भी साथ में बंगले में बने सर्वेंट क्वॉर्टर में रहने लगी,कलियां अपने गांव की अकेली महिला थी जिसकी विदाई मर्सिडीज कार में हुई थी,भवानी से खुश होकर मैडम ने अपनी कार उसे शादी के विदाई समारोह में दे दी थी,मैडम भरे दिल से सबकी मदद करती थीं,बस थोड़ी शंकालु स्वभाव थीं,पर कभी कभी उनमें अकेलापन होता था।
लगभग आधे घण्टे बाद -
मैडम और धृति तैयार होकर कार से बाहर घूमने चले गए,जाते वक़्त मैडम ने कलियां को ११बजे के आसपास आने का बोला।
स्थान - (गौतम वैली फ्रेंडस क्लब)(कंपनी के बाशिंदों की जगह)
मैडम वैसे तो चाहती तो धृति को कहीं और भी ले जाती लेकिन पार्टी की शौकीन धृति को और मैडम को मस्ती का पूर्व आमंत्रण था,मैडम की ऑफिस प्रतिद्वंदी प्रिया अलगोरा को कंपनी में हाई रैंक मिलने की सेलिब्रेशन थीं,सामने सामने तो प्रिया कंपनी की वफादार थी,जो मिलिंद की करीबी थी,क्यूंकि दक्षिण भारत में कंपनी के कई बड़े प्रोजेक्ट प्रिया ही सम्हाल रही थी,पर मैडम को प्रिया और प्रिया को मैडम पसंद नहीं थी,प्रिया का कोई नैतिक चरित्र नहीं था, ना ही उसमें कोई क्लास थी,वो बस कोडिंग के ज्ञान से थोड़ी विकसित थी,और इसी बात का उसमें घमंड था,प्रिया ड्रग्स लेती थी,जो मैडम को मालूम था,इसलिए उन्हें प्रिया से चिढ़ थी,वहीं दूसरी ओर मैडम का संबंध एक पूर्ववर्ती राज घराने से था,उनके पिता एक रिटायर चीफ सेक्रेटरी थे,मैडम खुद विदेश पढ़कर कंपनी ज्वाइन की थीं,पूर्ण दक्ष होकर भी उनमें प्रिया जैसा छिछोरापन नहीं था,वो शालीन थीं और कंपनी हित उनके लिए सर्वोपरि था,वहीं चालू मक्कार प्रिया निजी हितों की पैरोकार थी।एक हीरा थी तो एक कोयला,पर वो कहते हैं ना कि जो समय सूंघ सके उसके लिए अवसर हमेशा बना रहता है,प्रिया में बस यही खूबी थी,अवसर रूपी शतरंज कैसे खेला जाए।
धृति जिस ट्रेनिंग कोर्स का हिस्सा बनी थीं,उसके टारगेट में हजार स्कूलों का सिस्टम एक्टिवेशन पूरा करने की खुशी को कंपनी के निजी क्लब में आयोजित किया जा रहा था,इस प्रोजेक्ट पर शुरू में राहुल की टीम तेज़ी से काम कर रही थी,राहुल, मैडम के अंडर काम कर रहा था,पर कंपनी मैनेजमेंट में एकदम से साउथ ऑफिस की टीम हावी हो गई,वजह थी प्रिया अलगोरा और उसकी चम्मच मनीषा,जो मध्य भारत में एक्टिवेशन लीड थी,दोनों चुड़ैलें, मैडम और राहुल रस्तोगी की टीम के लिए कंटक बन गई,तभी से शतरंज का खेल शुरू हो गया,मिलिंद की निजी सचिव बनने को लालायित प्रिया और मनीषा दोनों अपने अपने उल्लू सीधा करना जानती थीं,मनीषा मध्य भारत में कंपनी के फाइनेंस ऑडिट विंग की हेड थी,पर प्रिया की तरह वो अनैतिक नहीं थी,ऑफिस पॉलिटिक्स तो उसमे थी,पर उसे धृति की तरह देखा जा सकता है,जो अब विकसित हो चुकी है,मनीषा और प्रिया को देखकर मैडम अंदर से नाखुश थीं,पर प्रोफेशनल लोग बाहर से उजागर नहीं होते,यहीं यहां घट रहा घटनाक्रम है।
मैडम ने प्रिया को पास जाकर बधाई दी, सूखी सूखी बधाई कहां जमेगी,कहकर प्रिया ने वाइन ऑफर की,जिसे मैडम ने मना कर दिया,धृति पहली बार बड़ी महफ़िल में अाई थी,और वो शराब पीना चाहती थी,पर मैडम के ना कहते ही उसका आत्मविश्वास चला गया।उसने भी प्रिया को बधाई दी,प्रिया ने मैडम से धृति का परिचय पूछा
धृति हमारे स्टूडेंट सर्विस कोर्स में ट्रेनी है,मैडम ने उसका परिचय दिया।
हैलो धृति - "सेम कॉम में स्वागत है"(बदबू प्रिया के मुंह से आ रही थी,वो शायद नशे में थी।)
शुक्रिया,धृति मुस्कुरा दी ।
मनीषा वहीं खड़ी काफी देर से धृति को देख रही थी,ना जाने क्यूं उसे धृति पर मैडम की खास मेहरबानी उत्सुक कर रही थी,पर वो भी क्या कर सकती थी,आज तो किस्मत प्रिया पर मेहरबान है,प्रोजेक्ट की सक्सेस के किस्से हर जगह हैं,भारत के बाल विकास विभाग ने सेम कॉम के कार्यों की प्रशंसा की और प्रिया को प्रत्यक्ष लाभ मिला, कंपनी ने खुश होकर प्रिया को प्रोमोट किया, और कुछ शेयर भी प्रिया के नाम पर कर दिए।
मोहरे अपना काम कितना करेंगे नहीं पता,पर प्रिया पर इतनी मेहरबानी वहां ज्यादा लोगो को पसंद नहीं अाई,असली हकदार को कुछ नहीं मिला, और चालें प्रिया की कामयाब हो गईं,बस मैडम कुछ देर बाद धृति के साथ वापस बंगले की तरफ चल दी।
अगली सुबह
समय - सुबह ९बजे
टाइम्स ऑफ इंडिया की हेड लाइन
मशहूर सीनियर प्रोग्रामर और भारत की सॉफ्टवेयर कंपनी सेम कॉम की साउथ विंग हेड प्रिया अल्गोरा की हत्या।
हेडलाइन्स देख,मैडम के होश उड़ गए,क्युकी अभी कल रात ही प्रिया के साथ उनकी बातें हो रहीं थीं।मैडम अवाक थीं,घबराकर उन्होंने सीधे अपने दोस्त रस्तोगी को फोन घुमाया।
राहुल क्या ये सच है ?
हा,मुझे मनीषा का फोन आया था मैडम,प्रिया मैडम का खून हो गया मैडम।
ओके, कहकर मैडम ने खुद फोन काट दिया,आगे उनसे भी हिम्मत नहीं हो रही थी।
एक
दम से धृति वहीं आ गई
उसके हाथ में वहीं खबर और वहीं सवाल।
मैडम बस धृति को देख रही थी,वो तो कल ही प्रिया को मिली थी।
धृति तुम तैयार होकर ट्रेनिंग एरिया पहुंच जाना, मैं कार भेज दूंगी,मुझे अभी कहीं पहुंचना है।
मैडम बिना नहाए और नाश्ता किये,प्रिया जहां ठहरी थी की तरफ निकल गईं।
क्रमशः*(शेष अगले अंक में )