कीमती साड़ी!!
कीमती साड़ी!!
"मां देखो दीदी आई है अपने दोनों बेटों के साथ।" सौरभ खुशी खुशी अपनी मां को यह खबर देता है। सुरभि बेटी और बच्चों को देखते हैं वसुधा जी के आंखों से झर झर पानी गिरने लगे। बेटी को देखते ही गले से लगा लिया। पूरे 1 साल बाद सुरभि अपने मायके आई थी। बहुत दिनों से सुरभि को देखने की तमन्ना थी वसुधा जी की। अब वो बहुत बीमार रहती थी। अपने बेटा बहू के साथ वह कानपुर में रहती थी। उनके पति का देहांत कई साल पहले हो चुका था।
वसुधा जी ने अपनी हैसियत के हिसाब से बहुत ही अच्छे घर में शादी की थी सुरभि की। सुरभि की शादी को लगभग 24 साल हो गए थे। सुरभि अपने परिवार भैया, भाभी, मां के साथ खुशी-खुशी एक हफ्ते रही। एक हफ्ते का दिन ना जाने कब बीत गया पता ही ना चला। अब उसके जाने का दिन भी आ गया।
मां ने अपने कमरे में सुरभि को बुलाया और उसको अपनी संदूक में से एक कीमती साड़ी निकाल कर देते हुए बोला "बेटा यह मैंने अपने पेंशन के पैसे से थोड़ा-थोड़ा बचाकर तेरे लिए खरीदी है। तू इसको अपनी 25 वीं शादी की सालगिरह पर जरूर पहनना।" सुधा जी हंसते हुए बोली।
"अरे मां इसकी क्या जरूरत थी। तुम आओगी तब लेकर आना।"
"नहीं बेटा मैं बहुत मन से तेरे लिए लाई हूं। अभी तो तू इसको लेती जा। जब आऊंगी तब तुम लोगों की कुछ और लेकर आऊंगी।" कहकर सुरभि को वह साड़ी वसुधा जी ने पकड़ा दी।
जाते समय भाभी ने भी अपनी तरफ से पायल और बच्चों को भी अपने हैसियत के हिसाब से पैसे दिए। बच्चे बड़े थे पर ननिहाल का प्यार पाकर वह भी बहुत खुश थे।
सुरभि के पति एक बड़े बिजनेसमैन थे। घर में नौकर -चाकरों की लाइन लगी रहती थी। लक्ष्मी की कृपा उनके घर में हमेशा बरसती रहती थी। उनका बिजनेस बहुत ही अच्छा चलता था। घर में सुख- सुविधाओं की कोई भी कमी नहीं थी। दोनों बच्चे भी अच्छे कॉलेज से इंजीनियरिंग व मेडिकल की पढ़ाई कर रहे थे।
कुछ दिनों बाद वसुधा जी की एककाएक तबीयत खराब हुई। और वह भगवान को प्यारी हो गई। किसी ने सोचा भी नहीं था वसुधा जी ऐसे सबको रोता बिलखता छोड़कर चली जाएंगी। पर जो भगवान की मर्जी है वह तो जरूर होता है। ऐसा ही हुआ। उनकी मृत्यु परिवार के लिए एक वज्रपात साबित हुई।
कुछ महीनों बाद सुरभि की 25वीं सालगिरह आ गई। शांति निकुंज सुरभि का आशियाना खूब सारी लाइट्स व फूलों से सजाया गया। आज घर की बड़ी बहू की 25 वीं शादी की सालगिरह थी। सास, जेठानी, नंदे सब इकट्ठा थी खुशी के मौके पर। सब लोग महंगी महंगी साड़ियां, भारी भारी गलो में सेट, कंगन, चूड़ियां पहनकर खानदानी रईस लोगों की तरह तैयार थी।
सुरभि के लिए उसका पति मानव बहुत ही सुंदर साड़ी खरीद कर ले कर आया। और उसने वह साड़ी सुरभि को पकड़ाई और बोला "आज शाम को तुम्हें यही साड़ी पहननी है।" यह कहते ही वहां से अपने काम पर चला गया। सुरभि कोई जवाब नहीं दे पाई।
शाम को जयमाल का शुभ मुहूर्त आया। फिर सुरभि अपनी मां की दी हुई कीमती साड़ी पहन के और गले में खानदानी हार, मोटे मोटे कंगन, सोने की चूड़ियां, बाजूबंद ,पैरों में सोने की पायल, सोने की बड़े -बड़े झाले, माथे में बड़ी बिंदी और मांग में सिंदूर लगाकर तैयार हुई ।
तभी मानव कमरे में आ गया उसने सुरभि को तैयार देखकर गुस्से में बोला कि यह तुमने कौन सी साड़ी पहनी है? हम लोग के हैसियत के हिसाब से तो बिल्कुल भी नहीं है। तुम इसको अभी बदलो। मैं तुम्हें इतनी प्यारी साड़ी ला कर दिया था ना। "
सुरभि बोली कि मेरे लिए यह बहुत ही कीमती है। यह मेरी मां की निशानी है। इसमें मेरी मां की यादें जुड़ी है। मां ने मुझे दी थी और बोला था कि मैं अपनी 25वीं एनिवर्सरी पर यहीं पहनूँ।" कह सुरभि आंखों में आंसू लिए सुबक सुबक रोने लगी।
"पर इतने बड़े- बड़े बिजनेसमैन व उनके परिवार आएंगे वह देख कर क्या बोलेंगे? कि क्या मैं अपनी बीवी को अच्छा पहना नहीं सकता।" मानव चिंता करता हुआ बोला।
सुरभि ने बोला "नहीं मैं तो यही साड़ी पहनना चाहती हूं।"
मानव को अपना स्टेटस दिखाई दे रहा था और सुरभि को अपनी मां का प्यार भरी निशानी।
तभी उनके कमरे से बाहर से सुरभि की सासू मां गुजर रही थी और उनके कानों में यह बात पड़ी। सुरभि को रोता देख वहां पहुंच गई और उन्होंने मानव को समझाते हुए बोला "नहीं मानव बेटा ....सुरभि का मन है तो उसको यही पहनने दो। उसकी मां की निशानी है।"
" पर.... मां"
"पर वर कुछ नहीं बेटा। जयमाल इसी साड़ी से होगा। उसके बाद रात में फेरों का फंक्शन में चाहे वह तुम्हारी लाई हुई साड़ी पहन ले।" कह कर रोती हुई सुरभि को सासू मां ने चुप कराया। और अपने गले से लगा लिया।
सुरभि भी सासू मां के गले लग "मां" कहकर रोने लगी।
" सुरभि मैं समझती हूं एक बेटी के लिए मां की क्या अहमियत होती है। लोगों को दिखाने से क्या.... औरत का दिल का रास्ता तो प्रेम व भावनाओं से जुड़ा होता है। यदि मां का प्रेम और आशीर्वाद हो तो उसकी तुलना तो किसी से भी नहीं जा सकती।" सुरभि रोए जा रही थी और अपनी सासू मां की बातें सुन रही थी।
मानव ने बोला "ठीक है मां जैसा आप लोग चाहे।"
सुरभि कुछ देर बाद अपनी मां की दी हुई साड़ी पहनकर स्टेज पर पहुंची। और मानव के साथ केक काटा और उनका जयमाल का फंक्शन बहुत अच्छे से संपन्न हुआ। परिवार के सब लोग बहुत ही खुश थे और साथ में सुरभि भी। सुरभि के भैया भाभी भी आए थे। सुरभि की मां तो ना रही पर मां के आशीर्वाद के रूप में उनकी कीमती साड़ी उसके जीवन का एक अनमोल हिस्सा बनकर उसके पास थी।
