कीड़े
कीड़े
"ओहो जानेमन ! क्या लग रही हो। आज तो गसब ढा रही हो। मन कर रहा है भींच लूंं।"
सीमा के कदम रुक गए।
"आ, तेरे होंठों की प्यास बुझा दूँ।"
- और बेशर्मी से हँसने लगा।
"आज तो एक चुम्मा लेकर रहूँगा।"
"अच्छा ! तो तुम्हें मुझे गले लगाना है ?"
"हाँ, आ जा। लगता है तेरा भी जी कर रहा है, फिर क्यों सती सावित्री बनी घूम रही है इतने दिनों से ? कितना समय खराब कर दिया।"
अचानक से एक तेज़ धारदार चीज़ सीमा ने उसके चेहरे पर गाड़ दी। टाँगों के बीच में ज़ोरदार लात मारी। उसकी दर्द से चीख निकल गयी।
"साली ! मुझे मारेगी !"
इससे पहले कि वो संभलता, धारदार चाकू उसके हाथ पर गाड़ दिया।
वह तिलमिलाता हुआ वहीं गिर पड़ा।
"क्या कह रहा था कि मेरा भी जी करता है ! थू है तुझ जैसे गटर के कीड़े पर ! तेरी औकात यह है ! क्या समझा था डर जाऊंगी जैसे और लड़कियों को डराता है ?
साले ! तुझ जैसे बेटे को जन्म देकर तेरी माँ की कोख गाली बन गई। और सुन, ये ना समझ लेना कि मुझे नुकसान पहुंचा देगा। अभी तो ज़िंदा है लेकिन अगली बार ज़िंदा नहीं छोडूंगी। उस दर्द को महसूस कर रोज़, जो राह चलती लड़कियों को महसूस होता है ! वे ऐसे ही तड़पती हैं !"
उसने जूते की नोंक से एक ज़ोरदार लात फिर मर्दानगी पर मारी और चल पड़ी।