ब्लैक ब्रा
ब्लैक ब्रा
मन में अकुलाहट और घृणा पसर गई। उन शब्दों के तीर उसका पीछा अभी भी कर रहे थे...मन को भेदते ज़ख्म करते। वह छटपटा रही थी हृदय में उठी पीड़ा से। जो भी हुआ उसमें आखिर उसका कसूर क्या था? "मेरी क्या गलती है! मेरा दोष बताओ?"वह नींद में चिल्लाई। "नेहा! उठो...क्या हुआ?"पास में लेटी हुई बड़ी बहन ने उसे झिंझोड़ कर कहा।
"दीदी! मैंंने कुछ नहीं किया था। मैं चुपचाप घर आ रही थी वो लोग..!" नेहा ने कहा। "कौन लोग? क्या हुआ है मुझे बताओ नेहा!" बहन ने उसके हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा।
"वो दीदी आज शाम ..वो ...।" उसके साथ बीती घटना का एक एक दृश्य उसकी आँखों के सामने आने लगा।
शाम धुंधलाने लगी थी। प्रैक्टिकल होने के कारण आज उसे देर हो गई थी। बस स्टैंड पर खड़ी वह बस का इंतजार कर रही थी। आस पास कुछ लड़कियाँ भी थी। तभी कुछ लड़के वहां आकर खड़े हो गए। कुछ और लोग भी इधर उधर से आकर बस का इंतजार करने लगे। तभी एक लड़के ने उसके कंधे पर अपने कंधे से धक्का दिया और आँख से कुछ इशारा किया। नेहा ने घबरा कर अपने दुपट्टे को सीने पर फैला लिया और एक ओर जाकर खड़ी हो गई। उनमें से एक लड़का उसके नज़दीक आ खड़ा हो गया और बोला..."चलती हो?"
"क्या बकवास कर रहे हो।"नेहा ने गुस्से में कहा। "अरे सीधे पूछ रहा हूँ चलती है क्या? माल है मेरे पास... पर हम सबको खुश करना होगा।"
"क्या बोल रहे हो... बदतमीज! फालतू समझा है क्या?"वह जोर से चिल्लाई। उसकी आवाज़ सुनकर वहां खड़े कुछ लोग नज़दीक आ गए और उत्सुकता से देखने लगे। "फालतू क्यों समझेंगे। यहां खड़ी हो तो ग्राहक ही तलाश रही होंगी ना!" उनमें से एक बोला।"कमीने! यहां मैं बस के लिए खड़ी हूँ।और लड़कियाँ भी खड़ी है उन्हें जाकर क्यों नहीं बोला।"
"ओ दिमाग खराब है क्या? हमसे कम्पेयर कर रही है ! अपनी तरह समझा है क्या?" एक लड़की ने उसे घूरते हुए कहा।
"अपनी तरह से क्या मतलब है तुम्हारा? मैं यहां बस के इंतजार में खड़ी हूँ कॉलेज से घर जा रही हूं।" नेहा चिल्लाई। लोग उसकी बात सुनकर इधर उधर हो गए जैसे कोई परेशानी नहीं हुई उन्हें एक लड़की की परेशानी से।
वह लड़के वहाँ से निकल लिए। नेहा आस पास खड़े लोगों का चेहरे देखने लगी। नेहा का गुस्सा बढ़ने लगा। खुद को अपमानित महसूस करती वह एक कोने में सिमट गई। लोगों की घूरती निगाहें उसे घायल कर रही थी।
"कैसी कैसी लड़कियाँ है यार! कॉलेज में पढ़ती है और ये सब काम!" एक आदमी ने कहा।
"हो सकता है वह ऐसी न हो।" किसी की आवाज़ आई।
"क्या ऐसी नहीं हो!" एक महिला की आवाज़ थी..।" इस तरह कोई अपनी ब्रा दिखाता है क्या? देखो इसके कपड़े! काले रंग की ब्रा पूरी दिखाई दे रही है क्यों नहीं गलत समझते वे लड़के इसे।" यह सुनकर नेहा का हाथ पीठ पर चला गया। उसकी ब्रा की स्टेप एक साथ कुर्ते के गले से झांक रही थी। उसने जल्दी से अपने कपड़ों को ठीक किया और तेजी से वहां से भाग पड़ी।
वह तब तक भागती रही जब तक घर नहीं आ गया। अंधेरा हो गया था और मम्मी बाहर ही थी। नेहा को देखते ही वह उसकी ओर बढ़ी.."बहुत देर कर दी बेटा! कहाँ रह गई थी और इतना हांफ क्यों रही है?"
"पैदल आई हूँ मम्मी! बस आ ही नहीं रही थी।"चेहरे की परेशानी को छिपा कर वह सीधे अंदर चली गई।
उसके रोने की आवाज़ हिचकियों में बदल गई।
"दीदी मम्मी को नहीं बताया कुछ ..पर दीदी मेरी क्या ग़लती.. बोलो दीदी... हम लड़कियाँ कभी भी लड़कों को ऐसा नहीं कहती.. फिर वे क्यों। और वहाँ वे लड़कियाँ वे औरतें वे भी सब मुझे ही...।"
इतना कह कर वह बहन की गोद में सर रखकर रोने लगती है। "कोई ग़लती नहीं है तुम्हारी नेहा! गिल्ट फील करना बंद करो। यह देश ही ऐसा हैं यहां पर लड़कियों से हमेशा सावधान रहने की उम्मीद की जाती है। यहां पर अभी भी लड़कियों के अंडरगारमेंट्स छिपा कर रखने का विषय है।"
"मानसिक दिवालिया पन लोगों की बात को मन में लगाए बैठी हो। अभी सो जाओ। इस सोच को बदलने का प्रयास हम ही करेंगे।"
"पर दीदी! क्या ब्रा दिख जाने भर से लड़कियाँ बुरी हो गई? उन लड़कियों ने ऐसा क्यों कहा मुझे।"
"नेहा वे खुद को ही गालियाँ दे रही थी खुद के लिए गड्ढे खोद रही थी। तुम्हें डरना नहीं चाहिए था बल्कि लड़ना चाहिए था।"
"ठीक कहती हो दीदी!"नेहा ने हाँ मे सिर हिलाया और लेट जाती है। बहन उसका सिर सहलाने लगती है। कुछ देर में नेहा को नींद आ जाती है।
"अरे! कितनी बार कहा है कि ऐसे खुले में अपने कपड़े मत टाँगा करो अच्छा नहीं लगता।" नेहा को अंडरगारमेंट्स सुखाते देखकर मम्मी ने टोका।
"ब्लाउज के नीचे कर लो उसे।"ब्लाउज कपड़ों पर डालते हुए माँ ने कहा।
"नहीं माँ! यह कपड़े भी और कपड़ों की तरह ही है। जब पुरूषों के कपड़ों को खुले में सुखा सकती है तो हम क्यों नहीं।" इतना कह कर नेहा ने ब्लाउज हटा दिया।
"कपड़ों पर शर्म भेजने वाले अपनी आँखों में शर्म कब लायेंगे।"
नेहा के चेहरे की कठोरता देख दीदी मुस्कुरा दी।