divya sharma

Tragedy Inspirational

4.1  

divya sharma

Tragedy Inspirational

माँ तेरे आँचल की छाँव

माँ तेरे आँचल की छाँव

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माँ की अंतेष्टि भी हो गई। सब रस्में निपट गई। दे दी गई माँ को आखिरी विदाई। वेदिका पापा की सूनी आँखों को देख रही थी। भैया की खामोशी और चित्रा की मासूमियत। अभी तो माँ की जरूरत थी उसे। माँ की तस्वीर पर चढ़े हार को देखकर वह अपनी रूलाई नहीं रोक पाई। मुँह में पल्लू ठूंस कर वह बाथरूम की ओर भाग पड़ी। कुछ देर वहीं रोती रही। कितना भी मजबूत दिखा ले पर वह कमजोर पड़ रही थी। कैसे होगा सब...अभी तो भैया की शादी भी नहीं हुई। चित्रा भी अभी पढ़ रही है और पापा का ऑफिस घर के काम..सब लोग कितने अकेले रह गए हैं। पर वह क्या करे? कैसे होगा सब। उसे तो वापस जाना ही होगा।

"दीदी! पापा बुला रहे है।"चित्रा ने आवाज़ लगाई।

"आ रही हूं चित्रा।"आँखों को पानी से साफ कर वह बाहर आ जाती है। चित्रा के चेहरे को देखकर वह हल्की सी मुस्कान मुँह पर ले आती है पर अगले ही पल आँखों में ढेर सारा पानी बह जाता है।

"दीदी! क्या होगा अब? मैं कैसे ख्याल रखूंगी पापा का।" गले लग कर चित्रा बोलती है।

"हौसला रखो चित्रा वरना पापा और दुखी होंगे। मैं आती रहूंगी। गुड़िया मेरी मजबूरी है मुझे तो जाना ही होगा।"

वेदिका ने उसे समझाते हुए कहा। चित्रा को साथ ले वह ड्राइंग रूम में आ जाती है। पापा और ध्रुव साथ बैठे थे। भैया खिड़की के पास खड़े थे।

उसे देखते ही करीब आ गए और बोले,"ध्रुव जी! वेदिका का ध्यान रखना। अब उसे समझाने के लिए माँ नहीं है कोई ग़लती हो जाए तो बुरा नहीं मानना।"

"भैया! आप निश्चिंत रहे। ऐसा कुछ नहीं होगा।"ध्रुव ने कहा। भैया की बात सुनकर वेदिका उनके गले लग कर जोर जोर से रोने लगती है।

भैया उसके कंधे पर सहलाते हुए कहते है,

"वेदिका! तुम्हारे ऐसे रोना माँ को अच्छा नहीं लगेगा। अभी यहां होती तो मेरी क्लास ले लेती कि क्यों रूलाया इसे।"

"हाँ भैया! दीदी मम्मी की लाड़ली जो है।"चित्रा ने भी माहौल को बदलने की कोशिश की।

"आप सभी अपना ध्यान रखना। वेदिका आती रहेगी।"इतना कह कर ध्रुव ने वेदिका के पिता के पैर छुए और सामान उठाकर बाहर निकल गए।

"पापा अपना ध्यान रखना।" वेदिका ने पिता को कहा।

"मैं ठीक हूँ। आराम से जाओ।"आँखों की नमी को रोककर उन्होंने वेदिका के सिर पर हाथ रख दिया।पूरे रास्ते वेदिका का मन घर में ही अटका रहा। ध्रुव उसके मन को बहलाने की कोशिश करते रहे पर उसकी आँखों की नमी कम नहीं हो रही थी।


अभी शादी को मात्र दो महीने ही हुए और माँ चली गयी। इतना सब कुछ बदल गया। बचपन की बातें आँखों के सामने घूमने लगी। मम्मी के साथ खेलना, उनका उलझे बालों को प्यार से सुलझाना।

"क्या सोच रही हो वेदिका? इतनी दुखी मत हो। मम्मी की आत्मा को कष्ट होगा।" ध्रुव ने समझाते हुए कहा।

"ऐसे ही बचपन की बातें आँखों के आगे आ गई थी।" वह आँखों को साफ करते हुए बोली।

"देखो! आँखों के पास क्या लग गया तुम्हारे?" ध्रुव ने उसे टोका।

"क्या लगा है? वेदिका ने कार के शीशे को नीचे करके देखा। वह ग्रीस था शायद जो दरवाज़े से उसके हाथ में लग गया था और अब आँख पर।

"ग्रीस लग गया है शायद।" रूमाल से साफ कर वह कुछ याद कर मुस्कुरा गई।

"ध्रुव पता है बचपन में मम्मी ढेर सारा काजल हमारी आँखों में डाल देती थी। वो भी जबर्दस्ती। हम खूब बचते थे पर वह हमें कसकर पकड़ लेती और भर देती आँखों में।"

"मैं बहुत रोती थी और काजल बह जाता था। भैया तब मुझे भूतनी कहते थे और मम्मी से मार खाते थे।"वेदिका इतना कह उदास हो जाती है।

"तभी आँखें इतनी सुंदर है तुम्हारी। भूतनी तो तुम अभी भी हो।"वेदिका को हँसाने के लिए ध्रुव ने कहा।


पर वह उदास थी। घर आ गया था। वह गाड़ी से उतर कर अंदर चली जाती है। कमरे में उसकी सास बैठी थी। उसे देखकर वह उसके नज़दीक आती है।वेदिका उनके पैर छूती है।

"खुश रहो बेटा! जाओ फ्रेश हो जाओ मैं चाय नाश्ता लाती हूँ।"

"माँ आप रहने दीजिए मैं नहा कर बना देती हूं।" वेदिका ने कहा।

"बना लेना लेकिन अभी थकी हो। जाओ जल्दी आओ।"उन्होंने आदेश दिया। वेदिका चुपचाप अपने कमरे में चली जाती है। अलमारी खोल कर वह कपड़े निकालने लगती है।

अलमारी में माँ के हाथ से कढ़ाई की हुई साड़ी नजर आती है। वेदिका उसे निकालकर बिस्तर पर बैठ जाती है और साड़ी को देखने लगती है। उसे याद आता है कि कैसे मम्मी ने उसके लिए इतनी चाव से यह कढ़ाई की थी।

"मम्मी क्यों चली गयी आप! इतनी जल्दी हमें छोड़कर।" वह अपने को रोने से नहीं रोक पा रही थी।

"वेदिका! यह क्या है बेटा? अब तक नहीं नहाई। चलो पहले फ्रेश हो जाओ।"सास ने कहा।

"जी माँ! इतना कह वह खड़ी हो जाती है।

"हिम्मत तो रखनी होगी ना बेटा!,आखिर उस घर को भी सम्भालना है तुम्हें। ऐसे हिम्मत हारोगी तो चित्रा का ध्यान कौन रखेगा?" सास ने कहा।

"पर माँ ! कैसे हिम्मत रखूं।"इतना कह उसकी आँखों में आँसू बरस गए। एक डर भी था कि कहीं सास गुस्सा न हो जाए।

"एक माँ चली गयी तो क्या यह माँ तो जिंदा है। भले ही पैदा नहीं किया तुम्हें पर ममता तो उतनी ही है तुमसे।"वेदिका को गले लगाकर वह भी रो पड़ती है।

सास के गले लग कर वेदिका का दर्द बहने लगता है। उसे महसूस होता है जैसे माँ की आँचल की छांव में वह दोबारा आ गई।



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