सिर्फ जिस्म नहीं मैं भाग-1

सिर्फ जिस्म नहीं मैं भाग-1

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शॉवर के नीचे खड़ी हो अपने शरीर को तेज हाथों से रगड़ने लगी।हाथों का दबाव लगातार बढता जा रहा था और आँखों से निकलता सैलाब बंध तोड़कर बह रहा था।

शरीर के हर हिस्से पर साबुन मलती शैली शरीर पर लगी उस गंदगी को साफ करने की कोशिश कर रही थी जो पिछले बीस सालों से रोज उससे आ लगती।जिसे वह अपना प्यार समझ रही थी।वह तो असल में कोई था ही नहीं !

पानी की तेज आवाज में उसे कुछ शब्द सुनाई देने लगे...

"औरत की अपनी एक सीमा होती है।उसके कुछ फर्ज होते है उनमें सबसे पहले अपने पति की जरूरतों को समझना भी शामिल है।"यह विवेक की आवाज थी।

"हाँ तो करती तो हूँ सभी जरूरतों को पूरा आपकी !"मासूमियत और अधिकार से वह बोली।

"जरूरतों का दायरा बहुत बड़ा होता है शैली !"विवेक ने कहा।

"हम्म !तो आपकी जरूरतों का दायरा बढ चुका है।हमें बता दीजिए।"

"नहीं समझ पाओगी... छोडो.....अपनी कमर के बढते घेरे को देखो... हाथ लगाने में भी घृणा होने लगी है।"

उसने शॉवर को और तेज कर दिया...... कुछ और आवाज...उसे सुनाई देने लगी....।

आज पूरे दस दिन बाद बेटे के पास से लौटी थी।बिना बताए.....सरप्राइज देना था ....विवेक को..इसलिए आ गई दोपहर को ही।पर्स से चाबी निकाल कर उसने घर का दरवाजा खोला और अंदर गई... कुछ अजीब सी आवाजें उसके कानों से टकराई .....कुछ आवाज जहरीली सी....उसके कमरें से...वह भागी......।

"विवेक !....तुम....तुम.....।"

वह जलती हुई आँखों से उसे देख रहा था।शैली के शरीर पर फफोले उभर आए।उसके सामने उसके बिस्तर पर उसका पति ....दूसरी औरत...घृणा से जल उठी थी वो।

"तुम कल आने वाली थी ना !"लापरवाही से बदन को कपडों से ढकते हुए और मन की बेशर्मी को उखाड कर विवेक बोला।

"मेरे आने का बहुत दुख हो गया ना तुम्हें !"अंगारों सी जलती आँख से उसनें विवेक के साथ खड़ी उस औरत को देखते हुए कहा।

"तुम्हारी बढ़ती जरूरत यही है ना !"

"समझदार हो।जल्दी समझ गई तो इसका मतलब तुम्हें कोई दिक्कत नहीं !" ढिठाई से वह बोला।

"हुँह दिक्कत.....मुझे दिक्कत कैसे हो सकती है क्योंकि हूँ तो मैं जिस्म ही।"इतना कह वह बाथरूम में घुस गई और शॉवर चला उसके नीचें खड़ी हो गई।

वह लगातार अपने शरीर को रगड़ रही थी। तन में एक आग जल रही थी।उसकी आँखों के सामने सब कुछ खत्म हो गया और वह चिल्ला नहीं सकी।क्यों नहीं मुँह नोंच लिया विवेक का....आँखों से बहते आँसुओं का खारापन बढ़ता जा रहा था।उसे अपने जिस्म से दुर्गन्ध आने लगी।शरीर पर पड़े कपड़ों को झटके से फाड़कर वह आईने के सामने खड़ी हो गई।होंठ नीले पड़ चुके थे हाथों की उँगलियाँ गलने जैसी हो गई पर यह आग उसे जला रही थी।

अचानक उसके सीने में जलन होने लगी और वह दोनों हाथों से छातियों को भींच कर वह बैठ गई।तभी उसके हाथ में कुछ खुरदुरापन महसूस हुआ।वह हाथ को उस स्तन के उस हिस्से पर ले गई जहाँ कुछ खुरदुराहट थी।

वह निस्तेज सी हो वापस खड़ी हो गई और शीशे में दोबारा देखा पर यह क्या दिखने लगा...वह लाल जोडें में सेज पर घबराई बैठी हुई है... विवेक उसका घूंघट उठा रहे है... वह डर कर सिमट गई... उसके चेहरे के डर को देख विवेक ने उसकी हथेलियों को अपने हाथों में लेकर चूम लिया।

"शैली !बहुत खूबसूरत हो तुम।मासूम बच्ची सी।हमेशा ऐसी ही रहना।"विवेक ने उसकी आँखों में झांककर कहा।

"मुझे..... मुझे... !"वह हकलाते हुए बोली।

"हाँ,बोलो शैली !अपनी बात कहने के लिए कभी मुझसे डरना नहीं।हम जीवन की हर राह में साथ चलेंगे और बराबर सम्मान के साथ।"विवेक ने मुस्कारा कर कहा।

"एक बात आपसे छिपाई गई है।"वह धीरे से हिम्मत करके बोली।

"क्या बात शैली !देखो अगर शादी से पहले तुम्हारी जिंदगी में कोई था तो मुझे इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।पर अगर तुम अभी भी किसी को चाहती हो तो मुझे बता सकती हो।"

"नहीं.. नहीं.. ऐसी कोई बात नहीं।मेरी जिंदगी में आप ही है।बात कुछ और है।"वह हड़बड़ा कर बोली।

"जरूरी है तो बता सकती हो।"विवेक ने कहा।

"बचपन में मेरे साथ एक ऐक्सिडेंट हो गया था........आग से ...वो...वो..मेरे शरीर के एक हिस्से पर अभी भी गहरा निशान है...।"

शैली ने धीरे से अपने सामने के वस्त्रों को हटा कर खड़ी हो गई....... दायीं छाती पर जलने का गहरा निशान था....।

"तन का दाग है यह जो आवरण में छिप जायेगा।दो लोगों को प्रेम के लिए बेदाग मन चाहिए होता है और वह बेदाग मन तुम्हारा है शैली।"बाँहों में समेट कर विवेक ने उसे सीने से लगा लिया...।

शैली के चेहरे पर एक गर्वित सी मुस्कान खिल गई......

विवेक ने करवट बदली।पर...ये...ये..क्या.... बिस्तर पर वह औरत ...विवेक के साथ.....ये..सब...।।वह पागलों की तरह शीशे को कपडे से साफ करने लगी...।।

दूर से कुछ आवाजें फिर आने लगी....उसने शॉवर बंद किया और सुनने का प्रयास करने लगी....फोन बज रहा था.... ....

अपने को संयत करती हुई शैली गाउन पहन कर बाथरूम से बाहर झांकती है।बिस्तर पर पड़ी सलवटें अभी भी वैसे ही थी।हिकारत से देखकर वह जमीन पर पडे पर्स की तरफ बढ़ती है।मोबाइल अभी भी बज रहा था।

"हैलो !....मम्मा...... हैलो... सुन रहे हो ना ?"

"हैलो ...आवाज नहीं आ रही है क्या माँ !"

"आ...हाँ...बेटा... हाँ ..बोलो विशू... सुन रही हूं।"शैली ने आँखों को साफ करते हुए कहा।

"घर पहुंच गए क्या माँ ?क्लास में था तो फोन नहीं कर पाया पर आप एक मैसेज तो कर देते।"बेटे ने गुस्से से कहा।

"हाँ पहुंच गई थी।गुस्सा मत कर।तेरी क्लास में डिस्टर्ब न हो इसलिए ही तो नहीं किया।"

"क्या डिस्टर्ब माँ !चिंता हो गई थी मुझे।"

"माफ कर दे बेटा।ऐसे अपनी माँ से नाराज नहीं होते।"

"माँ !क्या हुआ है ?आपकी आवाज ....सब ठीक तो है..पापा कहाँ है।"

"कुछ नहीं हुआ है... ठीक हूँ मैं... थक गई हूँ।"

"पापा भी फोन नहीं उठा रहे।घर पर नहीं है क्या वे ?"विशू ने कहा।

"आ...प..प..वो....।"शैली की बात मुँह में ही रह गई।विवेक कमरे के दरवाजे पर ही खड़ा था।

"हाँ..है.. बात करवाती हूँ।"इतना कहकर शैली ने मोबाइल विवेक की ओर बढ़ा दिया और खुद कुछ दूर जाकर खड़ी हो गई।

"हाँ...मेरे शेर...पढाई कैसी चल रही है ?"विवेक ने विशू से पूछा।

"बहुत अच्छी पापा।आप कैसे हो ?"

"ठीक हूँ बिल्कुल।फिट और एक्टिव।तुम्हारी माँ की तरह नहीं हूँ जो बयालीस में पचपन साल का नहीं दिखने लगी हो।"व्यंग्य से शैली की तरफ देखकर विवेक ठहाका मारकर हँस पड़ा।शैली के कानों में यह शब्द तीर की तरह लग गए।

अनायास ही उसका हाथ अपने चेहरे की तरफ चला गया जो कि वैसा ही मुलायम था जैसे पहले।

"क्या होगा तुम्हारी माँ को !चिंता मत करो...पढाई पर ध्यान दो।जीवन में कब क्या बदल जाए पता नहीं चलता।"विवेक विशू को समझा रहा था।शैली ने घृणा से उसकी तरफ देखा और रसोई की तरफ मुड़ गई।

आह् !........उफ्फ.... सी........खून की धार उँगली से फूट गई और टपक कर जमीन पर गिरने लगी।

"पागल हो क्या !इतना खून.....देखकर काम नहीं कर सकती हो. ?"... उसकी उँगली को मुँह में डालकर विवेक ने कहा।

"कुछ नहीं हुआ है थोड़ी सी ही तो कटी है।आप भी कमाल करते हो।छोड़िए हाथ।"पति के इस प्यार को देखकर वह निहाल हो गई...।

"क्या नहीं थोड़ा सा !...चलो डॉक्टर के पास।इंजेक्शन लगेगा टिटनेस का।"विवेक ने कहा।

"नहीं... !बिल्कुल नहीं।इंजेक्शन का नाम नहीं लेना।अभी हल्दी लगा लूंगी ठीक हो जायेगा।"उसनें हाथ को वापस खींचते हुए कहा।

"डरपोक !इंजेक्शन के नाम से डर गई।"हँसते हुए वह बोला।

"डरपोक नहीं हूँ मैं... !"गुस्से से आँख दिखाते हुए शैली ने विवेक को कहा।

"हाँ...हाँ...देख रहा हूँ तुम्हारी बहादुरी.....एक चूहे से भी डर जाती हो और कह रही हो डरती नहीं हूँ।"चिढाने की गरज से विवेक बोला।

"तो क्यों बनूं बहादुर... ?आप हो तो मुझे बचाने के लिए।"विवेक के सीने पर धौल जमाते हुए वह बोली।

"क्या सोच रही हो !आत्महत्या करनी है क्या ?वैसे भी तुम्हारे बस का और कुछ है भी नहीं।"

तेज आवाज सुनकर शैली की तिन्द्रा टूट गई.... उसनें सामने देखा... विवेक कुटिलता से मुस्कुरा रहा था।

वह यादों से बाहर आ गई।नम आंखों से उसने विवेक की ओर देखा और सब्जी काटने लगी....

"आह् !...."

मैं सिर्फ जिस्म नहीं-

"ध्यान से !"

सब्जी में खून मत गिरा देना।जाकर पट्टी बांध लेना।"इतना कहकर वह रसोई से निकल गया।

विवेक के इस अचानक बदले व्यवहार को शैली समझ नहीं पा रही थी।दिल और दिमाग में जंग छिड़ गई।कौन से रूप पर विश्वास करें।कुछ घंटों के या बीस साल से जो देखती आई हैं।

कुछ देर तक वह चुपचाप खड़ी रही और तेजी से बेडरूम की ओर बढ़ गई।वह खिड़की पर खड़ा सिगरेट पी रहा था।

"कौन हो तुम ?"वह जोर से चिल्लाई।

लापरवाही से उसनें मुड़कर देखा और वापस अपना मुँह फेर लिया।

वह जिसके नजदीक जाकर दोबारा गुस्से से बोली।

"तुमसे बात कर रही हूं।तुम विवेक नहीं हो सकते।मेरा विवेक इतना नीच नहीं हो सकता।सीधे तरह बताओ कौन हो तुम ?"

"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है।पति को भी नहीं पहचानती !"

"पहचानती हुँ तभी तो कह रही हूं तुम विवेक नहीं हो सकते और ये सिगरेट.... तुम विवेक नहीं हो।"

"बकवास मत करो.........तुम्हें ऐसा क्यों लग रहा है मैं विवेक नहीं हूँ ?...ओह !समझ गया.... जरूर कोई और आ गया है जिंदगी में तुम्हारी... तभी यह नाटक कर रही हो।"

"पर एक बात बताओ !इस उम्र में इस जले हुए जिस्म के साथ किसे फँसा लिया ?"कुटिलता से वह उसके चेहरे को थपथपा कर हँसते हुए बोला और बाहर निकल गया।

यह स्पर्श तो विवेक का ही है और ....जला हुआ जिस्म.......यह तो बस विवेक ही .......इसका मतलब ये......इसका मतलब ....हे भगवान !

यह अजनबी सा आदमी विवेक... नहीं नहीं...

उसका सिर फटने लगा....वह उसके पीछे चल दी...विवेक स्टडी रूम में कुछ फाइल खोले बैठा हुआ था।

शैली को देखते ही झट से फाइल बंद कर देता है..."क्या कर रही हो यहाँ ?"

"क्यों !आज से पहले तो मुझे यहाँ देखकर ऐसा कुछ नहीं पूछा।"

"तुम्हारे साथ फालतू बात करने का समय नहीं है मेरे पास।"फाइल अलमारी में रखकर लॉक लगाते हुए विवेक बोला।

"आज से पहले लॉक की भी जरूरत नहीं पडी...तुम क्यों कर रहे हो विवेक ऐसा ?"

"क्योंकि पहले जैसा अब कुछ नहीं रहा।"कहकर फिर एक बार वह शैली को छोड़ वहाँ से चला गया।

अलमारी के पास फर्श पर कोई कागज गिरा था शायद फाइल से ही गिरा था।

शैली उस कागज को उठाकर देखती है तो वहाँ विवेक की राइटिंग में कुछ लिखा था जिसे पढ़कर उसके चेहरे की उलझन और बढ़ जाती है।

शैली कुछ सोच नहीं पा रही थी कि आखिर हो गया रहा है उसके साथ।दिमाग जैसे शून्य में चला गया।कागज को मुठ्ठी में भींच कर वह लीविंग रूम आ कर सोफे पर पसर जाती है।

तभी फिर से कुछ आवाजें उसके कानों से टकराने लगी।बहुत दूर से..... कुछ बज रहा था......आस पास कुछ नही....सिर्फ अंधेरा.......फिर ये आवाजें.... कहाँ से..... !

"शैली.... शैली...... उठो.....यहाँ क्यों लेटी हो ...अंदर चलो।"विवेक ने उसे झंझोड़ कर उठाया।

"आं...हाँ...ओह्......हाथ हटाओ अपना !"विवेक के हाथों को झटकते हुए शैली ने कहा।

"इन गंदे हाथों को मुझसे दूर रखना.......।"वह गुर्राई।

"क्या हुआ तुम्हें !ऐसे क्यों बोल रही हो।"विवेक ने उसे कंधे से हिला कर कहा।

"मुझे कुछ हुआ है !मुझे... ?"आश्चर्य से आँखे फैला कर उसनें कहा .."यह सवाल खुद को पूछों कि तुम्हें क्या हुआ है।"

"क्या बोल रही हो शैली !मैं तो ठीक हूँ......मुझे लगता है तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है..बेडरूम में चलो।"विवेक ने कहा।

"उफ्फ !कितने रूप है तुम्हारे विवेक ?"उसे धकेल कर पीछे कर देती है और टैरेस पर जाकर फर्श पर ही बैठ जाती है।हथेली को खोलकर एक बार फिर कागज को देखती है......'बस तीन महीने और'...विवेक ने आखिर क्यों लिखा ..बस तीन महीने और !इसका मतलब वह तीन महीने बाद मुझे छोड़ देगा ....या फिर... वो..वो..मुझे. मार..नहीं.. नहीं.. ऐसा नहीं कर सकता....

कागज के टूकड़े कर वह वहीं फेंक देती है...

बार बार विवेक और वह औरत ....दोनों.. उस हाल में उसकी आँखों के सामने आ रहे थे और वो...वो..कागज.... ... ये सब... हे भगवान क्या हो रहा है।आँखें बंद कर शैली लेट जाती है।

आसमान पूरा साफ था स्याह काला...कुछ सितारे टिमटिमा रहे थे ..वह ऊपर की ओर देखने लगी...तभी विवेक ने पीछे से आकर बाँहों में घेर लिया।

"क्या देख रही हो ?"

"ऊपर उन सितारों को !इतने सारे होकर भी चाँद के बिना कितने अकेले है।"

"हाँ.....शुक्र है मेरा चाँद मेरे पास है।"गालों पर एक चुम्बन अंकित कर विवेक ने कहा।

"क्या आप भी... कोई देख ले तो !"शर्म से उसके गाल दहक गए।

"डरता हूँ क्या किसी से !देखें तो देखे।बकायदा पति हूँ तुम्हारा।"

वह उसके सीने से लग गई।प्रेम के आगोश में दोनों मगन.....मंद बयार में खोने लगे......।

"बारिश !अचानक से.... ..हड़बड़ा कर वह खड़ी हो गई.....साफ मौसम अचानक कैसे बिगड़ गया ?"

चारों तरफ नजर घुमाई..पर विवेक वहाँ न था.....।

जोर जोर से बिजली कड़कने लगी....डर से खुद को समेटे वह वहीं गठरी बनकर बैठ गई....।

दरवाजे की ओट से विवेक उसे ही देख रहा था.. उसके चेहरे पर मंद मंद मुस्कान छाने लगती है।

"हैलो !"

"हाँ दवाओं का असर अब दिख रहा है।"विवेक किसी को फोन पर बता रहा था।

"हुँ... हाँ..ठीक है मैं ध्यान रखूंगा।"इतना कह कर विवेक ने फोन काट दिया।

एक बार फिर वह टेरेस की तरफ मुड़ा।दरवाजे की ओट से शैली को देखने लगा वह शांत होकर उसी अवस्था में बैठी थी।विवेक वहीं चेयर पर बैठ गया।

डोरबेल की आवाज से उसकी आँख खुली।सुबह हो चुकी थी।घड़ी की तरफ देखा तो आठ बज चुके थे।

वह दरवाजा खोलने के लिए उठता है तो देखता है कि शैली दरवाजा खोल चुकी थी।

"नमस्ते मेमसाब !"

"आ जाओ,आज देर कैसे कर दी कमला ?"शैली ने बाई को पूछा।

"देर कहाँ मेमसाब आठ ही तो बजे है।"कहकर वह रसोई की तरफ बढ़ गई।

"अच्छा एक बात बता कमला !"शैली उसके निकट जाकर पूछा।

"पूछों मेमसाब !"

"मेरे पीछे पिछले दस दिन यहाँ पर कौन आता जाता था ?"शैली ने उससे सवाल किया।

"आपके पीछे !"आश्चर्य से कमला ने शैली को देखा।तभी उसकी निगाह शैली के पीछे खड़े विवेक पर पड़ती है जो उसे चुप रहने का इशारा कर रहा था।

कमला के चेहरे के बदलते भाव को देखकर शैली पलटती है तो विवेक घबरा कर मुड़ जाता है।

शैली के माथे पर शंका के बादल और गहराने लगते है।कमला नजर चुराकर अपने काम में लग जाती है।

विवेक का रहस्यमय व्यवहार उसे समझ नहीं आ रहा था और वह औरत...कौन थी वो।उसका सर फटने लगा।पर अभी भी वह शांत थी क्योंकि सच जानना चाहती थी कि आखिर क्या हो रहा है उसके साथ और कब से !कमला भी उससे कुछ छिपा रही है।पर कोई सबूत उसके पास नहीं इसलिए कुछ नहीं कह सकती।

एक बार फिर से वह कमला को नाश्ता बनाने के लिए कहकर बाहर निकल जाती है और विशू को फोन लगाने लगती है।

पर लगातार ट्राय करने पर भी फोन नहीं लगता।नॉट रिचेबल आता रहा।

मोबाइल को फेंककर वह आँखों को बंद कर सोफे पर अधलेटी हो जाती है।थोड़ी देर में ही उसका फोन बजने लगता है वह लपक कर फोन उठाती है।

"कहाँ था !इतनी देर से फोन कर रही थी क्यों नहीं लग रहा था ?"वह बेटे को डाँटते हुए बोली।

"क्या स्वीच ऑफ कर रखा था।कितनी बार कहा है सुबह उठते ही फोन कर लिया कर सुनता क्यों नहीं है ?"

"चल अच्छा ठीक है नहीं होती गुस्सा।..क्या, ओके बात करवाती हूँ...कमला... कमला.. !"वह आवाज लगाती है।

"जी मेमसाब !"

"साहब को फोन दे दो विशू का फोन है।"मोबाइल उसकी ओर बढाते हुए शैली ने कहा।

"जी देती हूं !"हाथ से मोबाइल लेकर कमला विवेक के पास जाने के लिए मुड़ती है।

"साहब !बाबा का फोन है।"आँखों के आँसुओं को पोछते हुए कमला फोन पकड़ा देती है।

विवेक दो पल खामोशी से वहीं खड़ा रहता है और फोन कान से लगा लेता ।अपने मुँह को साड़ी के पल्ले से दबा कर बंद करके कमला रसोई की ओर दौड़ पड़ती है जैसे रोने की आवाज को रोक रही हो...

कमला की आँखों से आँसू रूक नहीं रहे थे।पिछले पंद्रह साल से वह यहाँ काम कर रही थी।इस घर के प्रति पूर्ण समर्पित।पिछले छ:महीनों से जो तुफान घर पर आया उसके परिणाम बहुत कष्टकारी थे। अपनी मालकिन की हालत को देख देखकर वह बहुत दुखी थी।पर वह कर क्या सकती थी।आँखों को साफ करती वह अपने काम को कर रही थी तभी एक बार फिर शैली की आवाज आई...."कमला !"

उसने पलट कर देखा वह उसके ठीक पीछे थी।

"हाँ मेमसाब !"कमला ने पल्लू से आँखों को साफ करते हुए कहा।

"तुम...तुम रो क्यों रही हो !सच बताओ,क्या चल रहा है यहाँ ?कहीं विवेक ने कुछ तो नहीं कहा।"वह शंकित सी उसकी ओर देखकर बोली।

"नहीं.. नहीं.. मेमसाब, साहब ने कुछ नहीं कहा।प्याज काट रही थी देखिए आप।"उसनें कटी हुई प्याज शैली के सामने करते हुए कहा।

"पक्का !"

"हाँ मेमसाब।"आँखों को चुराती हुई कमला ने कहा और ट्रे में नाश्ता लगाकर बाहर निकल गई।शैली उसके पीछे ही चल दी।

शैली नाश्ता करते हुए विवेक को देखती रहती है।वह तनाव में लग रहा था और बार बार मोबाइल की तरफ देख रहा था।तभी एक मैसेज बिलिंग हुआ।विवेक ने तुरंत मोबाइल उठाया और मैसेज देखने लगा।शैली की निगाहें उसके चेहरे पर ही थी।मैसेज पढ़कर विवेक के चेहरे पर मुस्कान आ गई और वह नाश्ते को तेजी से खत्म करने लगा।

उसकी एक एक गतिविधि पर शैली बिल्ली की तरह नजर जमाए कॉफी पी रही थी।विवेक उसके नजदीक आया और माथे पर एक चुबंन अंकित कर बोला.."ध्यान रखना अपना।शाम को जल्दी आऊंगा।"

"तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा विवेक !उसका हाथ पकड़कर शैली ने कहा।

"तुम कहो तो ना जाऊं !पर एक शर्त है।"शरारत से विवेक ने कहा।

"क्या शर्त !"आँखों को फैला कर वह बोली।

"आज...मन कुछ बेचैन है।बेचैनी दूर करनी होगी।"आँखों में आँखें डालकर विवेक ने कहा।

"धत् ! पागल हो ? जानते नहीं हो क्या सातवां महीना चल रहा और तुम..."हथेलियों से चेहरे को ढककर शैली ने शर्माते हुए कहा।

"कमला !दरवाजा बंद कर लो मैं जा रहा हूँ।"

यह आवाज सुन शैली ने चेहरे से हथेली हटा कर दरवाजे की ओर देखा तो विवेक बाहर जा चुका था।वह अपने हाथ को पेट की तरफ ले जाती है लेकिन वह तो ..वह तो खाली है।

मेरा बच्चा.... कहाँ है वो...कहाँ है... "कमला... कमला.... ! "वह चिल्लाने लगती है।

"क्या हुआ मेमसाब !"कमला ने शैली को पकडते हुए कहा।

"मेरा बच्चा.. मेरे पेट में नहीं है कमला... कहाँ गया वो...कहाँ है ?"

"आप शांत हो जाओ मेमसाब... शांत हो जाओ।बाबा तो बहुत बड़ा हो गया है।वो बाहर पढता है.. आप भूल गई क्या ?"

"बाहर पढ़ता है !वो बड़ा हो गया... कब बड़ा हो गया.... ओ...हाँ..मेरा विशू !मेरा विशू...ठीक है.. हाँ...ठीक है।मै शायद सपना देख रही थी।"

"पता नहीं कैसे सपने देखने लगी हुँ मैं !पता नहीं कैसे सपने ?"परेशान हो कर वह उठकर बेडरूम की ओर चल पड़ती है।

शैली बेडरूम में जाकर खिड़की के पास खड़ी हो जाती है और बाहर खिले हुए फूलों को निहारने लगती है।लॉन में खिले गुलाब उसे जैसे अपनी ओर खींच रहे थे।वह बरबस उनकी ओर चल पड़ी।

इस बगीचे में वह पहले कब आई उसे याद नहीं आ रहा था।पर फूलों की सुगंध उसे सकून दे रही थी।वह घास पर बैठ जाती है।

कमला रसोई से उस पर ही नजर रखे थी।एक गिलास में जूस और दवाई लेकर वह भी लॉन की ओर चल दी।

"मेमसाब !" उसने शैली को पुकारा।

"हाँ कमला।"शैली ने चेहरे को ऊपर उठा कर कहा।

"दवाई ले लीजिए आप।"

"दवाई ! !कैसी दवाई कमला ?"उसने प्रश्न किया।

"आप फिर भूल गई ?वीपी की दवाई है ये आपकी।"

"मुझे वीपी की समस्या है ! !पर कब से... ?"वह आश्चर्य से पूछती है।

"छ:महीनों से, लगता है आप बहुत भूलने लगी हो।"कमला ने उसकी हथेली पर दवाओं को रखकर जूस आगे बढा दिया।

शैली चुपचाप दवा खा लेती है।कमला कुछ दूरी बना कर उसे ही देखती रहती है।

"मुझे नींद आ रही है.... बहुत नींद... सर भी घूम रहा है.. कमला.. कमला... मुझे अंदर ले चलो।"वह सिर को पकड़कर कमला को पुकारने लगी।

कमला ने हाथों के सहारे से उसे उठाया और घर के अंदर चली गयी।

बेड़ पर लिटाते ही शैली गहरी नींद में चली जाती है।कमला उसे चादर उडा कर वापस लीविंग रूम में आ जाती है।

कार ड्राइव करते हुए विवेक बार बार घड़ी की तरफ नजर डाल लेता।वह गाड़ी एक हॉस्पिटल के गेट के अंदर मोड़ लेता है।

गेटकीपर एक बड़ा सा सैल्यूट देकर गाडी का दरवाजा खोलता है।विवेक बाहर निकल तेज कदमों से अंदर चला जाता है और एक केबिन के सामने आ कर दो मिनट ठहर जाता है।एक नजर हॉस्पिटल में मौजूद भीड़ की तरफ डालकर केबिन के अंदर घुस जाता है।

उसे देखते ही केबिन में मौजूद वह महिला उसके गले लग जाती है।

दोनों देर तक ऐसे ही एक दूसरे की बाँहों में सिमटे खड़े रहते है।

"बहुत परेशान हो गए हो ना तुम !"महिला ने विवेक से सवाल किया।

"हाँ आरती, अब बर्दाश्त नही हो रहा।आखिर कितने दिन और इंतजार करूँ !तुम्हारे बिना नहीं रह सकता अब मैं।"विवेक ने उसे कसते हुए कहा।

"जहाँ इतना इंतजार कर लिया कुछ दिन और सही।वरना सारी मेहनत पर पानी फीर जायेगा।"आरती ने कहा।

"जानता हूँ सब।पर बस सब्र नहीं हो रहा।तुम अच्छे से जानती हूँ यह सब मेरे लिए कितना मुश्किल हो रहा है।"

"जानती हूं पर कर क्या सकते है।चलो अब तो आज का दिन साथ गुजार लो।गालों को चुमते हुए वह बोली।"

विवेक बाहर डोंट डिस्टर्ब का नोट लगा केबिन बंद कर देता है।

"कितना तड़पता हूँ तुम्हारे लिए तुम नहीं जानती।"उसके होंठो पर चुंबन जड़ते हुए विवेक ने कहा।"

"रह नहीं सकते मेरे बिना ?"आँखों को आँखों में डालकर आरती बोली।

"कैसे रह सकता हूँ।"विवेक की तेज साँसों से आरती के गाल दहकने लगे।

विवेक की शर्ट के बटन खोल उसके सीने पर एक अक्स खींच दिया।वह खोने लगे एक दूसरे में...तभी विवेक का मोबाइल घनघनाने लगा।

"विवेक फोन बज रहा है।"

"बजने दो।"उसनें आरती के बालो को पीछे करते हुए कहा।

"देख तो लो कोई जरूरी फोन होगा।"हाथों से उसे पीछे कर आरती बैठ गई।

"हैलो !...ओह... हाँ...आता हूँ.. बस पंद्रह मिनट में... अभी...।"

"मैं चलता हूँ आरती।शैली उग्र हो रही है। कमला का फोन था।"शर्ट के बटन लगाते हुए वह जल्दी से बाहर की ओर भागता है।

"रूको मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।"आरती ने विवेक को पीछे से पुकारा।

"तुम्हें देखकर कहीं और उग्र न हो जाए।मुश्किल हो जायेगा फिर तो संभालना।"विवेक ने कहा।

"देखा जायेगा।मैं भी चलूंगी।"आरती ने विवेक की बाँह पकड़कर कहा।

"समझा करो यार !डॉक्टर मेहता को कमला को फोन कर दिया था वे भी पहूंच गए होंगे।"आरती को वहीं छोड़ वह तेजी से बाहर निकल गया।

कार की स्पीड लगातार बढाते हुए वह घर की ओर जा रहा था पर ट्रैफिक.......

उसके दिमाग में घमासान मचा हुआ था इन दिनों जो हालात उसकी थी वह ही समझ सकता था।

पता नहीं डॉक्टर पहुंचे होंगे कि नहीं। इतने महीनों से जो मेहनत आरती और वह कर रहे थे कहीं पानी न फिर जाए।

स्टेरिंग पर दबाव बढ़ता जा रहा था।

वह हादसा.. ..काश वह न हुआ होता तो यह मुश्किलें उसकी जिंदगी में आती ही क्यों।

इधर आरती की बेचैनी बढ रही थी। न जाने कौन सी मुसीबत आ जाए।अगर यह ट्रीटमेंट प्रभावी नहीं हुआ तो न जाने कब वह विवेक के साथ आराम से रह सकेगी।विचार का आना जाना लगा हुआ था।आखिरकार वह भी विवेक के पीछे चल दी।वह जल्द से जल्द उसके पास पहूंच जाना चाहती थी।इस समय विवेक को अकेले नहीं छोड़ा जा सकता था।

गेट के अंदर पहुंचते ही विवेक को कमला परेशान खड़ी मिलती है।

"साहब अच्छा हुआ आप आ गए।"

"कैसी है वे ?"

"ठीक है डॉक्टर साहब अंदर ही है पर वे उनके काबू में भी नहीं आ रही है।"कमला ने कहा।

विवेक तेज कदमों से घर के अंदर जा बेडरूम की तरफ बढ़ता है... शैली के चिल्लाने की आवाज साफ सुनाई दे रही थी।बेडरूम का नजारा साफ दिखने लगा।चारों तरफ साड़ियां और सामान बिखरा हुआ था।शैली अलमारी से कपड़ों को निकाल कर फेंक रही थी।

"शैली !"विवेक ने आवाज दी।

"वो ....मार देंंगे मुझे... मालूम है मुझे।हाँ मालूम है.. ये कपड़े मेरे नहीं है.. कहाँ से आए..किसके है।"हाथ में ब्लाउज ले वह फाड़ने की कोशिश करने लगी।

डॉक्टर मेहता चुपचाप खडे थे।उनके चेहरे पर बेचारगी साफ दिख रही थी।

"शैली ! क्या कर रही हो ?"विवेक ने उसके कंधों को हिलाकर कहा।

"कौन...ऐ..कौन हो तुम ?हाथ क्यों लगाया।"विवेक के हाथ को झटककर वह दूर खड़ी हो गई।

"मैं !मुझे नहीं पहचाना ?विवेक हूँ मैं।"

"विवेक... तुम !दिमाग खराब हो गया है क्या ?"शैली ने उसे घूरते हुए कहा।

"कहाँ है मेरे पति ?विशू कहाँ है.. और...और...मैं यहाँ कैसे.. कौन हो तुम लोग।"वह चिल्लाई।

"शैली !"यह मेरा घर है।"आरती ने अंदर आ कर कहा।

"आरती !"डॉक्टर मेहता ने उसे रोकने की कोशिश की।पर हाथ से इशारा कर उसनें दोनों को चुप कर दिया।

"आरती तुम ! यह घर ...फिर मैं यहाँ कैसे ?मेरे पति मेरा बेटा कहाँ है ?"

"तुम शांत हो जाओ पहले।सब बताऊंगी लेकिन पहले पानी पी लो।"पानी का गिलास उसकी तरफ बढा कर आरती ने कहा।

विवेक और डॉक्टर मेहता उसकी तरफ प्रश्नवाचक से बने देखते रहते है।आरती बिल्कुल शांत थी और शैली को देख रही थी।शैली ने चुपचाप पानी हाथ से लेकर पी लिया।

"अब बताओ... यह सब क्या हो रहा है ?ये दोनों कौन है और मेरा बेटा... मेरा बेटा... उफ्फ !सर चक्करा रहा है.... क्या हो रहा है मुझे।"

"तुम आओ यहाँ लेट जाओ।तुम्हारी तबीअत ठीक नहीं है।"आरती ने शैली को बेड पर लिटा दिया और दोनों को बाहर जाने का इशारा कर देती है।कुछ देर में शैली गहरी नींद में चली जाती है।आरती शैली को छोड़कर बाहर आ जाती है।

विवेक और डॉक्टर चिंतित हो चहलकदमी कर रहे थे।

"कमला !तीन कप कॉफी बना लाओ।"आरती ने कमला को कहा और दोनों के निकट चली गयी।

"आज तो मुश्किल हो सकता था अगर नहीं आती तो।उसकी यादाश्त वापस आने लगी है।अब बहुत सतर्कता और सावधानी बरतने की जरुरत है।एक गलती और सब खो देंंगे हम।"आरती ने कहा।

"सही कह रही हो आरती।"विवेक ने समर्थन में जवाब दिया।

"उम्मीद है अब सब सही हो जायेगा।"डॉक्टर मेहता ने लम्बी साँस लेकर कहा और कुर्सी पर पसर गए।

बेचैनी से चहलकदमी करती आरती डॉक्टर मेहता की तरफ मुखातिब होती है..

"आपको विश्वास है डॉक्टर हमें ऐसा करना चाहिए !कोई खतरा हो गया तो ?"कमला को आता देख आरती खामोश हो जाती है और कॉफी की ट्रे हाथ में ले लेती है।कमला के चेहरे पर विरानी देख वह उससे सवाल करती है।

"क्या हुआ कमला !परेशान क्यों हो ?"

"कुछ नहीं दीदी।"कहकर कमला वापस जाने लगती है।

"सुनों कमला।"आरती उसे बुलाती है।

"तुम चाहती हो ना शैली ठीक हो जाए !"

"हाँ दीदी, इतना दुख देखा नहीं जाता।"कमला ने कहा।

"तो मेरा एक काम करोगी !"भेद भरी निगाहों से उसे देखते हुए आरती ने कहा।

विवेक और डॉक्टर मेहता प्रश्नवाचक से उसे देखते रहते है।

"बोलो दीदी क्या करना है ?"कमला ने कहा।

"ठीक है आओ बताती हूँ।उसे साथ ले वह शैली के बेडरूम की ओर बढ़ गई।दोनों वहीं बैठे आरती को जाता देखते रहते है।

"विवेक तुम्हें क्या लगता है यह ट्रीटमेंट सक्सेस होगा ?"डॉक्टर मेहता ने कहा।

"यह बहुत बड़ा रिस्क है उसकी जान को भी खतरा हो सकता है।"

"उम्मीद तो है डॉक्टर !हम अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहे है बाकी देखते है हमें सावधानी रखनी होगी।"विवेक ने जवाब दिया।

कुछ देर बाद कमला और आरती नीचे आ जाते है।

उधर शैली को होश आने लगता है।कमरे में हल्की रोशनी थी।वह उठकर बैठ जाती है।सर को हाथ से पकडे वह अपने पर काबू करने की कोशिश कर रही थी।

"माँ !"पीछे से किसी ने उसे पुकारा और बाँहें गले में डाल दी।

"विशू !कब आया तू !पापा कहाँ है ?कब से इंतजार कर रही हूं दोनों का।"शैली ने विशू की तरफ मुड़ते हुए कहा।

"माँ !मैं तो यहीं था ..देखो मैंने गिटार पर एक नई धुन बनाई है।"

"चल सुना।पर सुन तुझे भूख लगी होगी... रूक अभी जूस मंगवाती हूँ...कमला... कमला !"

"कमला... !"

नीचे बैठे सब लोग शैली की हरकतों को सीसीटीवी कैमरे में देख रहे थे।कमला बेचैन हो ऊपर जाने की कोशिश करती है पर आरती उसका हाथ पकड़ लेती है।तभी शैली बेड से उठती हुई दिखती है..

"कमला !कब से आवाज लगा रही हूं सुन क्यों नहीं रही हो ?जूस लेकर आओ विशू को भूख लगी है।"सीढियों के निकट आ उसनें फिर आवाज दी और कमरे में चली गई।

"विशू....विशू...कहाँ गया ये लड़का।सुनता क्यों नहीं है।"शैली खिडकी के पर्दे खोल देती है।तेज रोशनी से कमरा भर जाता है।

"विशू...सुन क्यों नहीं रहा..."आधे शब्द उसके मुँह में ही रह जाते है।दीवार पर विशू की तस्वीर और गिटार टंगा था।वह दो कदम पीछे की ओर चलती है और बैठ जाती है।

शैली की हरकतों पर वह लोग नजर रख रहे थे मन में एक घबराहट थी विवेक कुछ अनमना लग रहा था जबकि आरती के चेहरे पर कठोरता दिख रही थी।

शैली उठती है और बेचैनी से अपने सीने पर हाथ मलने लगती है।इधर उधर तेज कदमों से चलते हुए वह चीजों को फेकने लगती है तभी विवेक ऊपर की ओर कदम बढाता है तो आरती उसका हाथ पकड़ लेती है।

"तुम नहीं विवेक !डॉक्टर मेहता जायेंगे ऊपर।"आरती ने कहा।

समर्थन में गरदन हिला कर डॉक्टर मेहता धीरे धीरे सीढियों को चढ़ने लगते है....

तभी दरवाजा खोल शैली डॉक्टर के सामने आ खड़ी होती है।उसकी साँस जोर से चल रही थी और आँखों में लाली भरी हुई थी वह चुपचाप डॉक्टर मेहता को देखती रहती.. डॉक्टर मेहता उसे देखकर डर जाते है।

नीचे विवेक आरती के पीछे हो जाता है।शैली एक नजर उन दोनों पर और एक नजर डॉक्टर मेहता पर डालती है.....

"भैया.... भैया.... वो.....विशू...वो विवेक....।"इतना कह वह डॉक्टर मेहता के गले लग कर रोने लगती है।

कांधे से लगी वह लगातार रोती रही।डॉक्टर मेहता की आँखों में नमी उबर आई।

"क्यों हुआ ये मेरे साथ... क्यों ?क्या बिगाड़ा था मैंंने किसी का जो ये मेरे साथ हुआ।मेरा बच्चा... मेरा बच्चा।"शैली नीचे बैठकर जोर जोर से रो रही थी।

"विवेक... विवेक कहाँ है ?वे कहाँ है....।"अचानक उठ वह चारों तरफ देखने लगी।

शैली की बेचैनी देख आरती विवेक के ठीक सामने खड़ी हो जाती है।तभी शैली की नजर नीचे खड़ी आरती पर पड़ती है....

"आरती !....आरती....।"वह तेजी से सीढियां उतरने लगती है।

"आरती विवेक कहाँ है ?तुम थी ना वहाँ पर... बताओ...कहाँ है विवेक।आरती के कंधे को जोर से हिलाते हुए शैली ने कहा।

"वो....वो...शैली... वो।"आरती की जुबान जैसे तालु से चिपक गई थी।समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहे।

"शैली !शांत हो जाओ...।"डॉक्टर मेहता ने कहा।

"कैसे.. शांत...कैसे... वो.खबर.. आप चलो अस्पताल जल्दी उन्हें जरूरत है मेरी जल्दी चलो।"

"शैली !सुनो मेरी बात।"डॉक्टर मेहता ने जोर देकर कहा।

"नहीं नहीं.. बाद में... चलो....आरती तुम चलो।"वह भागते हुए गेट तक पहुंच जाती है।

डॉक्टर मेहता और कमला उसके पीछे दौडते है।वह बेतहाशा भाग रही थी।सड़क पर दौड़ती गाडियां और लोग....उसे बस जल्द दोनों के पास पहुंचना था।

घर में विवेक और आरती खामोश खड़े रहते है।

"कितनी सरलता से किसी की जिंदगी बदल जाती है ना आरती !"विवेक ने कहा।

"समझी नहीं विवेक !क्या कहना चाह रहे हो ?"

"कुछ नहीं,चलो जल्दी पता नहीं अब कौन सी मुसीबत आने वाली है।"आरती का हाथ पकड़ वह भी बाहर निकल जाता है।

गाडी निकाल दोनों शैली के पीछे हो लेते है।आरती के चेहरे पर भाव आ जा रहे थे।बेचैनी में अपनी उंगलियों को चटकाने लगती है।विवेक की नजर आरती की उंगलियों पर ही थी।वह समझ रहा था उसके मन की हालत को।

अपने जीवन को सुधारने के लिए दोनों ने बहुत कम्प्रोमाइज किया।वह जो भी कर रहा था उसकी वजह सिर्फ आरती थी....पर न जाने क्यों.. दिलोदिमाग पर शैली..।

वह मासूम सा चेहरा वह आँखें उसे परेशान कर रही थी बहुत कुछ बदलने वाला था ...

"रोको..रोको..गाड़ी।"आरती चिल्लाई।

एक झटके से विवेक ने गाडी रोक दी।आरती तुरंत बाहर निकल कर शैली को संभाले डॉक्टर मेहता और कमला के निकट पहुंच जाती है।

"क्या हुआ ?"

"तुरंत हॉस्पिटल चलना होगा... जल्दी करो।"डॉक्टर ने कहा।

शैली बेहोश थी।विवेक ने तुरंत दरवाजा खोला....

कुछ देर में ही वह हॉस्पिटल में थे।

"मुझे लगता है विवेक आज उन्हें बुला लेना चाहिए।"आरती ने कहा।

"पर आरती......क्या सही होगा ?"विवेक ने कहा।

"दीदी... इतने दिनों से तड़प रहे है साहब।रोज दूर से देखकर चले जाते है।पता नहीं कब खत्म होगी उनके जीवन से परेशानियां।"कमला ने सुबकते हुए कहा।

इंमरजेंसी वार्ड के बाहर तीनों बेचैनी से चहलकदमी करने लगते है।डॉक्टर मेहता अंदर थे।शैली के मस्तिष्क पर भंयकर अटैक आया था... शायद उसे सब याद आ गया था... वह भयानक मंजर..वह तबाही... जिसमें अपनी खुशियों को जलते देखा था उसनें।

"शैली कैसी है ?"विवेक के कंधों पर हाथ रखकर किसी ने पूछा।

"आप..... !आप बैठिए...।"विवेक ने सहारा दे उन्हें बिठाया।

"कैसी है वो ?"उसने दोबारा प्रश्न किया।

"अभी अंदर से कोई खबर नहीं आई।"आरती ने स्पष्ट कहा।

छड़ी का सहारा ले वह दोबारा खड़े हुए और खिड़की से शैली को निहारने लगे।बिल्कुल वैसी लग रही थी जैसे बीस साल पहले.....निर्दोष, मासूम।

डॉक्टर मेहता और उनके सहयोगी शैली को लगातार चेक कर रहे थे।उसकी धडकन बार बार तेज हो रही थी।

अचानक शैली के मष्तिष्क में तेज हलचल होने लगी .......वही आवाज उसे सुनाई दे रही थी ......."मुश्किल है..... अभी तक कोई बॉडी नहीं मिली.... शायद जंगली जानवर खा गए हो !"

"नहीं... ऐसा नहीं हो सकता... आप ढूंढों... भैया बोलो इन्हें... मैं ढूंढ कर लाऊंगी.. मैं लाती हूँ..कुछ नहीं हुआ किसी को... !"शैली चिल्लाने लगी।

"सिस्टर इंजेक्शन रेडी करो तुरंत...।"डॉक्टर मेहता चिल्लाए।

इंजेक्शन लगते ही वह फिर से खामोश हो गई।

धड़कन सामान्य गति से चलने लगी।डॉक्टर मेहता कमरे से बाहर आते है और दरवाजे पर उसे देख ठिठक जाते है।

"आप !पर मैंंने मना किया था शैली के सामने आने के लिए ?"गुस्से में डॉक्टर ने कहा।

"मैं नहीं रोक पाया खुद को।कैसे रोक सकता था... पर मैं उसके सामने नहीं जाऊंगा बिल्कुल नहीं।"डॉक्टर के हाथ को पकड़ वह रो पड़ा।

"मैं आपके दुख को समझता हूँ पर क्या करूँ वह तुम्हें देखकर उग्र हो जाती है और फिर पहचान नहीं पा रही है।उसके लिए उसका विवेक वह है।"डॉक्टर ने आरती के पास खड़े विवेक की तरफ इशारा कर कहा।

"कितना मजबूर हो गया हूँ मैं।अपनी पत्नी के नजदीक नही रह सकता.... मेरी दुनिया में अब बचा भी क्या है काश उस दिन मौत आ जाती।"

"ऐसा मत कहो जीजू !आरती ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कहा।

"आरती !....वह फूट फूटकर रोने लगा।"

"उस दिन मेरी एक गलती से सबकी जिंदगी तबाह हो गई।काश वह मनहूस दिन आता ही नहीं।"

"सब ठीक हो जायेगा मुझे विश्वास है शैली फिर से आपको पहचान लेगी।"वह उसकी हथेलियों को थपथपा कर बोली।

"ठीक होने के लिए बचा ही क्या है।"दीर्घ श्वास छोड़कर उसने कहा और कुर्सी पर टेक लगातार बैठ गया।

आरती की आँखों के सामने वो दिन चलचित्र की तरह घुमने लगा।कितने खुश थे सब उसके शादी के फैसले से।इतने सालों बाद आखिर मैंंने शादी करने का फैसला कर लिया।

"सच कह रही हो आरती !"शैली ने चहकते हुए कहा।"अच्छा नाम तो बता मेरे होने वाले जीजे का।"

"विवेक।"आरती ने हँसते हुए कहा।

"दिमाग खराब है क्या !ऐसा मजाक मुझे बिल्कुल पसंद नहीं है आरती।"आरती के मुँह से विवेक का नाम सुनकर शैली को गुस्सा आ गया।

"अरे !पूरी बात तो सुन लो।उनका नाम भी विवेक ही है और अभी एक महीने पहले ही हॉस्पिटल ज्वाइन किया है।चिंता मत करो दुनिया में सिर्फ जीजू का नाम ही विवेक नहीं है।"

"ओह !मतलब पसंद भी विवेक नाम के शख्स को ही किया।"शैली ने कहा।

"हाँ भई जीजू का असर कुछ ज्यादा ही है मुझपर।"आरती हँस रही थी।

"ठीक है ठीक है पर देख लेना विवेक नाम का कन्फ्यूजन न हो जाए और तुम्हारे विवेक को मैं ले जाऊं।"शैली ने चिढ़ाने के अंदाज में आरती को कहा।

"हुँह रहने दो....बुढा गई हो।मुझे चिंता नहीं है..।हा...हा...हा....।"

"तु ना मिल मुझे बताती हूँ।"इतना कह दोनों सहेलियां हँसने लगी।

"मैं बहुत खुश हूँ आरती।आखिर तुमनें शादी का फैसला कर लिया।पर सब इतनी जल्दी !"शैली ने पूछा।

"जल्दी कहाँ ?पूरे एक महीने से जानती हूँ जनाब को और अब जाकर यह फैसला लिया है अब ज्यादा बातें नहीं करो बहुत काम है आज शाम को होटल ब्लू नाइट में आ जाना।"

"तुम जानती हो ना तुम्हारे सिवा और कोई नहीं है।"भावुक होकर आरती ने कहा।

"ठीक है मैडम ज्यादा इमोशनल न हो।मैं पहले आ रही हूं तेरे जीजू और विशू बाद में आ जायेंगे।"

"ऊँआ... !"एक चुंबन देकर आरती ने फोन रख दिया।

वादे के मुताबिक शैली पहले पहुंच गई थी और आरती के साथ उसकी तैयारियों में लग गई।

शाम को सगाई के लिए सभी मेहमान आ गए पर विवेक और विशू नहीं पहुंचे थे।शैली परेशान हो बार बार फोन कर रही थी पर विवेक फोन नहीं उठा रहा था।आरती भी शैली के साथ परेशान थी।कमला ने बता दिया था कि दोनों दो घंटे पहले निकल चुके थे और साथ में यह भी कि बाबा गिटार लेकर निकले है।

समय निकले जा रहा था।पर विवेक अब तक नहीं आए...लगातार फोन पर बैल जा रही थी पर वह फोन नहीं उठा रहा था।

"डॉक्टर.... डॉक्टर... जल्दी प्लीज....।"नर्स की आवाज सुन आरती यथार्थ में आ गई और डॉक्टर मेहता के साथ कमरें की तरफ भागी।

शैली जोर जोर से हाथ पैर पटक रही थी... आरती को देखते ही हिसंक हो जाती है...

"तुम...तुम...हटो यहाँ से... तुम छिनने आई हो ना मेरे विवेक को ?"

"शैली.... शैली... नहीं शैली... मैं किसी को नहीं छिन रही हूं..तुम्हारा विवेक यहीं है देखो बाहर खड़े है।"आरती ने उसे कहा।

"बुलाओ..जल्दी बुलाओ...मुझे बताना है वो पापा बनने वाले हैं और तुम जाओ यहाँ से...वरना मारूंगी तुम्हें।"उसकी ओर तकिया फेककर शैली ने कहा।

आरती बाहर जाकर विवेक को अंदर भेजती है और खुद जीजू के साथ दरवाजे की ओट ले लेती है।

विवेक को अंदर आते देख शैली उसे गौर से देखने लगती है।फिर अचानक से बोलती है...."आप...आपकी तो सगाई है ना !यहाँ क्या कर रहो हो ?आरती इंतजार कर रही होगी और वो विवेक भी आने वाले होंगे.. पता है आरती पूरी पागल है अपने लिए दुल्हा भी विवेक ही ढूंढा।"इतना कहकर हँसने लगती है...।

शैली के मुँह से ऐसा सुनकर सबके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है।

"हाँ सच में आरती पागल ही है।लेकिन तुम बहुत अच्छी हो शैली।"विवेक ने मुस्कुरा कर कहा।

"अरे ऐसा मत बोलना वरना मार डालेगी आरती मुझे पर ये अब तक विशू को लेकर क्यों नहीं आए ?"कमरे में मौजूद अन्य लोगों की उपस्थिति शायद वह महसूस नहीं कर पा रही थी।डॉक्टर मेहता ने इशारे से नर्स को इंजेक्शन के लिए कहा।

"शैली !अब शांत हो कर यह इंजेक्शन लगवा लो।"डॉक्टर मेहता ने कहा।

"भैया आप !यहाँ क्या कर रहे हो।और मुझे इंजेक्शन क्यों।विवेक कहाँ है ?"शैली ने पूछा।

"कुछ याद रहता है कि नहीं तुम्हें !तुम अस्पताल में हो।सिर दर्द हो रहा था ना तुम्हारा इसलिए ही तो विवेक छोड गए थे।"इंजेक्शन बाँह में लगाते हुए डॉक्टर ने कहा।

"अच्छा.. अच्छा... ओ..वो...मैं..।"शैली नींद के आगोश में चली जाती है।

"अच्छी खबर है विवेक।शैली खतरे से बाहर आ गई है फिलहाल।"डॉक्टर ने बाहर आकर शैली के पति को कहा।

"फिलहाल मतलब ?"उसने पूछा।

"विवेक आप तो जानते हो वह बचपन में भी एक दुर्घटना का शिकार हुई थी।उस एक्सिडेंट का असर कहीं न कहीं उसके मस्तिष्क पर रह गया था और जब आपके साथ वह हादसा हुआ यह शैली के लिए मानसिक आघात बना।"

"इसलिए वह यादाश्त खो चुकी थी।बस दो नाम उसे याद थे आपका और विशू का।"

"उसने अपने आस पास एक काल्पनिक दुनिया बना ली और कल्पना में तुम्हारे चेहरे को भूल गई इसलिए डॉक्टर विवेक को तुम समझने लगी।"

"हाँ डॉक्टर... यह मेरे लिए भी बहुत कष्टदायक है और सबसे ज्यादा आरती और विवेक जी के लिए।"

"ऐसा मत कहो जीजू... कहीं न कहीं मैं भी जिम्मेदार हूँ इन सब दुखों के लिए।"

"वक्त जिम्मेदार है।"आरती के सिर को थपथपा कर डॉक्टर मेहता वहाँ से चले जाते है।

शैली को गहरी नींद में देखकर नर्स कमरे की लाइट बंद कर हल्की रोशनी कर देती है।

पर कुछ समय बाद ही शैली के शरीर में कुछ हलचल होने लगती है।

शैली के कानों में अभी भी कुछ आवाजें सुनाई दे रही थी..........गिटार की आवाज.....

कुत्ते के भौंकने की आवाज...वह...उठकर उसी दिशा में चल पड़ती है.... वहाँ अंधेरे में कोई था....

वह नजदीक जाती है और नजदीक....

कोई खिड़की पर बैठा गिटार बजा रहा थ

चेहरे को देखते ही शैली खुशी से रो पड़ती है। "कहाँ चला गया था तू ?कितना ढूंढा तुझे।हर बार ऐसे माँ को परेशान क्यों करता है तू !"शैली ने झिड़कते हुए कहा।

"माँ कहाँ गया था मैं यहीं तो था हमेशा आपके पास।पता है माँ मैंंने गिटार की नयी धून बनाई है सुनोगी आप !"

"हाँ...पर पहले पापा के पास चल उन्हें बहुत चोट लगी है... जल्दी चल...वो...वहाँ पर... वहाँ पर।कहाँ गया ?विशू !फिर कहाँ चला गया.. जल्दी आ बेटा...।"विशू को ना पाकर शैली चिल्लाने लगती है।

"मैम...मैम....उठिए मैम...क्या हुआ ?"नींद में शैली को चिल्लाते देख नर्स उसे उठाने की कोशिश करती है।शोर सुनकर विवेक कमरे में चले आते है।

"शैली !उठो...शैली.... उठो।"कंधों से झिंझोड़ कर वह उसे उठाता है।"विवेक !"उसे देखते ही शैली गले लग जाती है।

"वो विशू बाहर क्यों रह गया ?बुलाओ उसे वो मुझे गिटार की नयी धून सुनाने वाला था बुलाओ ना !"

विवेक खामोशी से शैली को बोलते सुनता रहता है।

"तुम सुन क्यों नहीं रहे हो।वो बाहर है फिर चला जायेगा।"शैली ने विवेक को धक्का देकर कहा।

"नहीं है वो !"विवेक ने शैली को पकड़कर जोर से कहा।"क्यों नहीं आयेगा !गुस्सा है क्या ?जरूर आपने डाँटा होगा।रूको मैं बुलाती हूँ आप बैठे रहना बस...हाँ बैठे रहना...।"वह भागते हुए कैरीडोर में निकल जाती है।रात में हस्पताल में सन्नाटा छाया हुआ था।वह दौड़ती हुई लास्ट में लगी खिड़की के पास जाती है लेकिन वहाँ किसी को न पाकर नीचे बैठ जाती है।

"मुझे पता है तू यहीं है।माँ को बहुत परेशान कर रहा है ठीक है मैं भी नहीं बात करूंगी अब ...बिल्कुल नहीं करूंगी।"

दूर खड़े आरती,डॉक्टर विवेक और शैली के पति नम आँखों से उसे देखते रहते है।"वह रियेक्ट करने लगी है।वह वापस आ रही है जीजू !"आँखों को पूछते हुए आरती ने कहा।

"हाँ....पर समझ नहीं पा रहा हूँ कैसे कहूँ विशू नहीं रहा।"वह बोला।

डॉक्टर विवेक शैली को देखते रहते है।

"विवेक.. विवेक.. क्या सोचने लगे ?"आरती ने कहा।

"कुछ नहीं आरती।सोच रहा हूँ न जाने कितनी कल्पनाओं में जी रही है शैली।उसके दिमाग में कितनी कहानियां आ रही होंगी।"

"हाँ,यह मानसिक आघात उसे सिजोफ्रेनिया का मरीज बना चुका है तभी वह सच स्वीकार नहीं कर पा रही है।"

"उसकी उस काल्पनिक दुनिया में तुम उसके पति हो और मैं उसकी दुनिया उजाड रही हूं।पर अब शायद वह उस दुनिया से वापस आ रही है।"आरती ने कहा।

"लेकिन अभी विशू के सच को पता चलने पर शैली के रियेक्शन पर निर्भर करता है उसका इलाज।"डॉक्टर विवेक ने कहा।

तभी शैली उठकर अपने पति के सामने आकर खड़ी हो जाती है।वह गुस्से से आरती को घूरती है।और बिना कुछ कहे आगे बढ़ने लगती है"शैली.. कहाँ जा रही हो ?विवेक ने हाथ पकड़कर कहा।"फोन करना है।"वह तटस्थ होकर बोलती है।

"फोन !पर किसे वह भी इतनी रात को ?"उसके पति ने कहा।

"ओहो... कितने सवाल करते हो।बेटे को फोन करना है और उसे फोन करने के लिए समय क्यों देखूं !"वह बोली।

"पर..पर...शैली सुनो।"

"क्या सुनूं ?कहा था उसे बुला लो चला जायेगा पर नहीं... सुनते नहीं हो मेरी।अब पूछ तो लूँ कि ठीक से पहुंच गया कि नहीं।अच्छा चलो..अपना फोन दो मुझे।"शैली बिल्कुल सामान्य होकर बोल रही थी।आरती और डॉक्टर विवेक उसकी हरकतों पर नजर रखे हुए थे।

"पर सुनो शैली !"उसके पति ने जोर देकर कहा।

"विशू...विशू अब इस दुनिया में नहीं है।"कहकर वह शैली को पकड़ लेते है।"पागल हो गए हो क्या !कुछ भी बोल देते हो।शर्म कीजिए मुझे परेशान करने के लिए बेटे को ऐसा बोल रहे हो।"गुस्से से वह बोली।

"होश में आओ शैली !याद करो उस एक्सिडेंट को...मेरी किस्मत खराब थी जो मैं बच गया पर विशू...।"वह फफक कर रोने लगता है।

"संभालो अपनेआप को विवेक।लगता है एक्सिडेंट की वजह से आपके दिमाग पर असर हो गया है।विशू की बॉडी मिली आपको !"वह ठीक है और रोज मुझसे बात करता है।आप हस्पताल में इतने दिनों से बिहोश थे आपको नहीं पता कुछ भी।"विवेक को सहारा देकर शैली ने कहा।

"शैली.. विशू नहीं रहा समझो मेरी बात को।"

"जरूर उसनें फिर से शरारत की है।आपको याद है ना उस दिन जब मैं उससे मिलकर आई थी उसने अपने एक्सिडेंट की झूठी खबर हमें दी थी कैसे भाग कर गए थे हम।"वह विवेक को समझाते हुए बोली।

"तड़ाक.."जोर का थप्पड़ शैली के गाल पर मारकर विवेक चिल्लाया ..."शैली.. विशू..मर चुका है !"नहीं.. झूठ है ये..झूठ है... तुम झूठ बोल रहे हो... वो.जिंदा है वह आयेगा... आयेगा वो।"शैली विवेक के गले लग कर फूटफूट कर रोने लगती है।

आरती उनके नजदीक जाती है पर डॉक्टर विवेक उसे रोक लेते है।वह दोनों उन्हें वहीं छोड़कर वापस बैंच पर जाकर बैठ जाते है।डॉक्टर विवेक के चेहरे पर तनाव आने लगता है और वह आरती को देखते है।आरती आँख बंद किए सिर टिकाए अधलेटे थी।

उस दिन सब कितना अच्छा लग रहा था.. जल्द से जल्द वह होटल पहुंचना चाहता था पर शायद किस्मत को कुछ और मंजूर था.. काश उस दिन वह ...अभी डॉक्टर विवेक अपने ख्यालों में ही थे कि उनका मोबाइल बज उठता है।

"हैलो ! कौन ?"

रिप्लाई सुनकर डॉक्टर विवेक की आँखों में भय दिखने लगता है। वह झट से फोन डिस्कनेक्ट कर देते हैं।


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