खुशियाँ खास दिन की मोहताज नहीं
खुशियाँ खास दिन की मोहताज नहीं
सुमेर ने सुलभा को प्यार से बुलाया तो उसका बेटा सनी भी बोल पड़ा,आओ ना मम्मा ! आज जब पूरा परिवार इकट्ठा है तो इस दिन को खास बना डालें "। सुमेर ने सुलभा से आग्रह किया तो सुलभा बड़े ही अनमने भाव से सबके साथ आकर बैठ गई। पर मन ही मन में आशंकित थी कि त्यौहार के पहले सब ख़ुशी मना रहे हैँ कहीं कोई अपशकुन ना हो। स
पर प्रकट में किसी को ज़ाहिर नहीं होने दिया
दरअसल इस बार सनी अपना जन्मदिन अजमेर में सबके साथ नहीं मना सकता था क्यूँकि होली के अगले दिन ही हैदराबाद में उसके क्लासेस शुरू होनेवाले थे इसलिए वो होली पर भी नहीं रुक सकता था, क्यूँकि होली की सुबह उसकी फ्लाइट थी। दोनों छोटी बहनों सीया और सनाया ने चुपके से सरप्राइज के तौर पर होली के दो दिन पहले ही अपने भैया का जन्मदिन और होली एकसाथ मनाने का सोच लिया था और केक , गिफ्ट ,रंग , गुझिया, दहीबड़े सब सजाकर इकट्ठे हुए थे पर सुलभा थोड़ा नानूकुर कर रही थी तो ज़बरदर्स्ती सुमेर उसे बुला लाया।
सब इतने ख़ुश थे एक साथ। सबसे पहले सनी ने केक काटा फिर सबने आपस में रंग लगाया, पकवान खाए, खिलाए। हालाँकि आज होली नहीं थी पर जब सारे अपने एक साथ हों तो तारिख से ज़्यादा खुशियाँ मायने रखने लग जातीं हैँ।
पर सुलभा का पूर्वाग्रह से डरा हुआ मन उसे खुश नहीं होने दे रहा था।
वैसे देखा जाए तो उसका डर उसकी शंका भी निर्मूल नहीं थी। उसके मायके में छोटे चाचा अनंत को भी इसी तरह नौकरी पर बाहर जाना था इसलिए घरवालों ने उनके जन्मदिन के तीन दिन पहले ही केक वेक कटवाकर धूमधाम से उनका बर्थडे मनाकर भेजा। वो सब बच्चों के प्यारे चाचा थे। सुलभा पर तो उनको विशेष स्नेह था इसके अलावा उसके गणित के ज़टिल से ज़टिल सवाल वो आसानी से हल कर देते और उसको बहुत अच्छे से पढ़ाते भी थे। सुलभा भी अपने चाचाजी से पितृतुल्य स्नेह करती थी।
जिस दिन वो जा रहे थे तब किसको पता उस वक़्त किसको पता था कि वो अब कभी वापस नहीं आएंगे। कि यह उनका आखिरी जन्मदिन था। कहते हैँ, जन्मदिन के पहले जन्मदिन नहीं मनाना चाहिए अपशकून होता है और उस दिन सबकी इसी पुरानी सोच को बल मिला जब चाचा की जन्मदिन वाले दिन ही ट्रेन दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई। बचपन में यह सब सुलभा ने अपने सामने होता देखा था और होली के दिन ही चाची की चूड़ियाँ टूटती देखी थी जिसने उसके बाल मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ी थी। फिर उसने दादी को चाची को कोसते हुए भी सुना था कि। । ।
"क्या ज़रूरत थी जन्मदिन पहले मनाने की, और तो और होली भी पहले खेल लिया। मैं कहती रही अपशकुन होता है, पर मेरी सुनता कौन है। सबने मस्ती की और मेरे बेटे की जान गई। " दादी बोलती जाती और रोती जाती।
होली के दिन ही उसने अपनी चाची के जीवन से सारे रंगों को गायब होते देखा था। । । वैधव्य एक स्त्री के जीवन से सिर्फ पति ही नहीं ले जाता बल्कि उसके जीवन से रंग भी ले जाता है और उसकी खुशियाँ भी फिर दूसरों की मोहताज़ होकर रह जाती हैँ। बचपन की यह बात उसके मन मस्तिष्क पर इस कदर घर कर गई थी कि वो कभी भी खुलकर खुशियाँ नहीं मना पाती थी।
आज भी वो बच्चों की खुशी और पति के आग्रह पर उनके आयोजन में शामिल तो हो गई थी पर अंदर से मन थोड़ा दुविधा में था।
उसकी बेटियाँ बहुत देर से माँ को आधे मन से इस ख़ुशी में शामिल होता देख रहीं थीं और सुमेर भी सुलभा की आशंका को भलीभांति समझ रहे थे।
उस रात जब सनी सबका इतना प्यार और बर्थडे गिफ्ट पाकर ख़ुश होकर सोने चला गया तो सुमेर और दोनों बेटियों ने सुलभा को उदास देखकर समझाना शुरू किया।
शुरुआत सुमेर ने की। "देखो, जब सनी का ज़न्म हुआ था तो वो दिन क्या हमें पहले से पता था?"
नहीं ना। । । पर हम कितने खुश थे। फिर जिस दिन मुझे प्रमोशन मिला क्या वो दिन हमें पता था, हम कितने खुश थे। फिर जब तुमको पिछले साल सर्वश्रेष्ठ लेखिका मिला, क्या तुम्हें वो तारिख पहले से पता था? नहीं ना।
और याद करो, जब तुम्हारे बाबूजी का आकस्मिक निधन हुआ, किसीको पहले से पता था, नहीं ना। मेरे दोस्त अतुल को व्यापार में इतना घाटा हुआ, उसको पता था? नहीं ना।
"और पापा ये जानलेवा कोरोना वायरस सबको इतना परेशान करेगा, किसीको पता था, नहीं ना"। सीया ने अपने पापा की नकल करते हुए कहा तो सब हँस पड़े।
सुमेर ने आगे समझाना जारी रखते हुए कहा, "बस सुलभा, तुम्हारे चाचा के साथ जो हुआ वह एक संयोग हो सकता है , उसे नियति मानकर भूल जाना अच्छा! ज़रा सोचो , जब जीवन, मरण, सुख दुख पर अपना वश नहीं तो अनावश्यक मन में बुरा सोचकर क्यूँ डरना और खुशियों का दरवाजा क्यूँ बंद करना। "
अब बात कुछ कुछ सुलभा की समझ में आ रही थी। उसने प्यार से सुमेर और बच्चियों को देखा और दोनों को प्यार से गले लगा लिया।
"और मैंने क्या बिगाड़ा है मम्मी, मुझे भी तो प्यार करो " सनी बोलते हुए आकर अपनी माँ से लिपट गया।
दरअसल वो पानी पीने उठा था और उसने अनजाने में इन सबकी बातें सुन ली थी।
माँ से लिपटे लिपटे ही सनी बोला, डरो मत मम्मी, जिस बच्चे पर आपके जैसी माँ की ममता का साया होगा उसका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता "। फिर सब आपस में कुछ देर परिवार के अनहद प्यार की गरमाहट को महसूस करते रहे और सुलभा के मन की शंका अपने परिवार के मज़बूत प्रेम के साये तले दूर होती गई।
तभी तीनों बच्चों को मस्ती सूझी।
एक साथ बोल उठे। । ।
"हानि लाभ जीवन मरण
यश अपयश विधि हाथ "
फिर सनाया नाटकीय ढंग से तुलसीदास के श्लोक का अर्थ समझाने लगी।
सुनो वत्स ,
"जब लाभ और नुकसान, जीना मरना
और किसी का नाम, बदनाम यह सब
अपने हाथ में नहीं तो क्यूँ पहले से
नकारात्मक सोचना और डरना!"
उसके बोलने का ढंग इतना मज़ेदार था कि सब हँस पड़े। और सुलभा के मन से भी आशंका के बादल छटने लगे थे। बच्चों की निश्छल हँसी और पति का सान्निध्य पाकर उसे एहसास हो रहा था, ये जो पल है ये सबसे खूबसूरत है। खुशियाँ संजोने के लिए, खुशियाँ मनाने के लिए कोई भी लम्हा किसी खास दिन का मोहताज़ नहीं होता।
