खुशी के आँसु
खुशी के आँसु
आठ वर्ष का राजा अपनी माँ को दरवाज़े पर आये बूढ़े बाबा को रोटी खिलाते वा जाते समय एक कटोरी चावल देते अक्सर देखता था। एक दिन वह माँ से पूछ बैंठता है...माँ आप रोज बाबा को रोटी क्यों खिलाती हो, और वह हमारे घर रोज रोटी माँगने क्यों आते हैं। माँ हँस कर कहती है... बेटा रोटी खाने के बाद वह मुझे व आपको ढेर सारा आशीर्वाद देते है। इन आशीर्वाद के लालच से ही मैं उन्हें रोटियाँ खिलाती हूँ। परंतु राजा को माँ की बात समझ नही आई और वह दादी माँ के पास जा पूछता है... दादी माँ रोज बूढ़े बाबा को रोटीयाँ क्यों देती है। दादी ने बड़े प्यार से राजा को समझाते हुए कहा सामर्थ्यवान को हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए। यदि कोई तुम्हारे आगे हाथ बढ़ा कुछ माँगे तो समझो ईश्वर यह चाहता है कि तुम उसकी मदद करो। तभी राजा के पापा कहते है जाओ तैयार हो जाओ दीवाली के मेला घूमने व पटाखे और पूजा का समान खरीदना है। मैं कार निकालता हूँ।
दीवाली के लिये ढेर सारा समान, कपड़े, मिठाई व अन्य समान लेकर वापस लौट ही रहे थे कि फुटपाथ पर ग़रीब बच्चा भीख माँग रहा था, वहीं उसकी माँ फटेहाल पड़ी थी। बच्चा हर आते जाते के तरफ हाथ बढ़ा माँग रहा था। राजा ने झट से अपने नये कपड़े का थैला और मिठाई का डिब्बा उठाया और उसकी ओर दौड़ पड़ा। उसे भागते देख उसके मम्मी,पापा भी पीछे गये। राजा ने कपड़े व मिठाई का डिब्बा उस बच्चे को दे ....भोले पन से कहा... "मेरे पास दूसरे कपड़े है, दादी ने कहा है जब तुमसे कोई हाथ बढ़ा माँगे तो उसकी मदद जरूर करो। माँ तुमने भी तो सुबह मदद की थी ना!!! तुम गुस्सा नहीं हो!!" पापा ने उसे गोद में उठा गले से लगा लिया वहीं माँ की आँखों मे खुशी के आँसू छलक आयें।
