Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational

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Dr Lakshman Jha "Parimal"Author of the Year 2021

Inspirational

“ खुद पढ़ना है तो अपने बच्चों को पढ़ाओ ”

“ खुद पढ़ना है तो अपने बच्चों को पढ़ाओ ”

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कभी हम बच्चों के शिक्षक बन जाते हैं और कभी बच्चे हमारे गुरु बनकर हमें एक अनोखी शिक्षा प्रदान करते हैं ! मैंने कभी भी अपनी शिक्षक की भूमिका से जी नहीं चुराया ! बच्चों को प्रारम्भिक अवस्था से अपना अनुभव ,अपना संस्कार और अपने गुणों को भरना प्रारंभ कर दिया ! ड्यूटी के बाद सम्पूर्ण समय मेरे बच्चों का होता था !मेरी बिटिया आभा का जन्म 1976 में हुआ था और मेरे दोनों जुड़बा पुत्र राजीव और संजीव का जन्म 1977 में ! चलना भी जब राजीव और संजीव के वश में नहीं था उसी समय 1979 में उनलोगों को मिलिटरी अस्पताल गया (बिहार) ले गया था ! अपनी ड्यूटी के बाद मेरा सारा समय अपने बच्चों में समर्पित रहता था !एक साल ही गया( बिहार) की धरती से जुड़े रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ ! वर्ष 1980 में मेरी पोस्टिंग मिलिटरी अस्पताल पठानकोट पंजाब में हो गई ! सबके सब हमलोग पठानकोट चले गए ! आभा 4 साल की हो गई थी ! उसकी पढ़ाई भी प्रारंभ हो गयी थी ! वहीं मॉडल टाउन में के 0 जी 0 में दाखिला दिलबा दिया था ! ड्यूटी मेरी 2 बजे तक होती थी ! उसके बाद मैं आभा को पढ़ता था ! बस राजीव और संजीव अब कुछ बोलना सीख गए थे ! आभा के साथ उनकी भी मौखिक पढ़ाई हो जाया करती थी !

1981 में फिर मेरा स्थानांतरण हो गया ! मेरी पोस्टिंग मिलिटरी अस्पताल किरकी (खड़की पुणे ) हो गई ! उस समय मिलिटरी अस्पताल का एक सेक्शन अस्पताल देहू रोड में था ! वहाँ से मुझे देहू रोड में टेंपोरारी ड्यूटी भेजा गया ! इंद्राणी दर्शन में मुझे फॅमिली कॉर्टर मिल गया ! छोटा अस्पताल काम कम ! लगातार पोस्टिंग के आधार पर आभा का दाखिला केन्द्रीय विध्यालय देहू रोड हो गया ! राजीव और संजीव डी 0 ओ 0 डी नर्सरी स्कूल में पढ़ने लगे ! और अधिकाशतः उनलोगों को मैं पढ़ाने लगा !मेरी प्रथम प्राथमिकता ड्यूटी और दूसरी प्राथमिकता बच्चों को पढ़ना ! उनको पढ़ना ,मनोरंजन करना ,खेल खेलाना ,रविवार को श्यामल थिएटर में सिनेमा दिखाना ! छूटी के दिनों में जमकर पढ़ाना ,उनके साथ रहना ! इन दिनों मेरी धर्मपत्नी आशा झा का सहयोग भी सराहनीय था ! पढ़ाई के दौरान मुझे कभी -कभी उग्र भी होना पड़ता था ! पर कुछ समय के उपरांत प्रेम के सागर उमड़ पड़ते थे !ठीक एक साल के बाद मुझे वापस मिलिटरी अस्पताल खड़की पुणे आना पड़ा ! आभा का भी मुझे केन्द्रीय विध्यालय देहू रोड से केन्द्रीय विध्यालय गणेशखिंड पुणे स्थानांतरण कराना पड़ा ! बाद में कुछ दिनों के लिए मुझे अड्वान्स मिलिटरी ट्रैनिंग के लिए लखनऊ जाना पड़ा ! और मेरी पत्नी आशा झा ने राजीव और संजीव का भी केन्द्रीय विध्यालय गणेशखिंड पुणे में प्रवेश करा दिया !

मेरी अनुपस्थिति में मेरी धर्मपत्नी ने अपना फर्ज निभाया और उनकी देख -रेख में उन लोगों की पढ़ाई चलती रही !अब इन तीनों को अच्छे नंबर के आधार पर आर्मी स्कालर्शिप मिलना प्रारंभ हो गया ! लखनऊ से लौटने के बाद 1984 में मेरी पोस्टिंग 321 फील्ड एम्बुलेंस चांगसारी गोहाटी असम में हो गई ! मुझे अपने परिवार को नारंगी में रखना पड़ा ! Saturday और Sunday मैं छूटी ले लेता था और बच्चों को खूब पढ़ाता था ! यहाँ पर मैंने एक नया प्रयोग किया ! सब विषयों को मैंने इंग्लिश मीडियम में आभा ,राजीव और संजीव को लिखाना प्रारंभ कर दिया ! मुझे भी दिन रात पढ़ने पड़े ! उनको भाषण देने का हुनर भी मैंने सिखाया ! वहाँ अच्छे नंबर से वे पास होते गए और हरेक साल स्कालर्शिप उन्हें मिलता गया !1987 में मिलिटरी अस्पताल बरेली और 1990 में मिलिटरी अस्पताल जम्मू तक मैंने ही पढ़ाया ! 1993 से 1997 तक मैं शिक्षक बना रहा ! अब उनके कॉलेज के दिन आ गए थे ! सब बच्चों ने अपने -अपने मुकाम को हासिल कर लिया ! मैं और मेरी धर्मपत्नी आज गर्व से कहते हैं कि बच्चों का भविष्य निर्माता माँ और पिता होते हैं ! उनको पढ़ाने से बुजुर्गों का भी ज्ञान बढ़ता है ! मैं तो अपने बच्चों को अपना शिक्षक मानता हूँ ! आज वे हमारे मार्गदर्शक बन गए हैं ! आज जो कुछ सीख पाया उन्हीं के किताबों से ही सीख पाया हूँ


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